उपन्यास,समाज और इतिहास
(i) वह गैर-गोरे लोगों को बराबर का इंसान नहीं बल्कि अपने से हीनतर जीव मानता है।
(ii) वह एक 'देसी' को मुक्त कराकर अपना गुलाम बना लेता है।
(iii) वह औपनिवेशिक लोगों को आदिमानुस, बर्बर और इन्सान से कमतर मानता है और उन्हें सभ्य और पूर्ण इन्सान बनाना अपना कर्तव्य मानता है।
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निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-
उड़िया उपन्यास
उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन में आए ऐसे कुछ सामाजिक बदलावों की चर्चा करें जिनके बारे में टॉमस हार्डी और चार्ल्स डिकेन्स ने लिखा है।
उन्नीसवीं सदी के यूरोप और भारत, दोनों जगह उपन्यास पढ़ने वाली औरतों के बारे में जो चिंता पैदा हुई उसे संक्षेप में लिखें। इन चिंताओं से इस बारे में क्या पता चलता है कि उस समय औरतों को किस तरह देखा जाता था?
औपनिवेशिक भारत में उपन्यास किस तरह उपनिवेशकारों और राष्ट्रवादियों, दोनों के लिए लाभदायक था?
इस बारे में बताएँ कि हमारे देश में उपन्यासों में जाति के मुद्दे को किस तरह उठाया गया। किन्हीं दो उपन्यासों का उदहारण दें और बताएँ कि उन्होंने पाठको को मौजूदा सामाजिक मुद्दों के बारे में सोचने को प्रेरित करने के लिए क्या प्रयास किए।
बताइए कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह की कोशिशें की गई।
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