औपनिवेशिक शहर

Question

उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ कौन सी थीं?

Answer

उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली मुख्य चिंताएँ निम्नलिखित थीं:

  1. एक अन्य विद्रोह की आशंका: वास्तव में 1857 ई० के विद्रोह ने भारत में औपनिवेशिक अधिकारियों को इतना अधिक भयभीत कर दिया था कि उन्हें सदैव विद्रोह की आशंका बनी रहती थी। उनको लगता था कि शहरों की और अच्छी तरह हिफाजत करना जरूरी है और अंग्रेजों को '' देशियों'' (Natives) के ख़तरे से दूर, ज्यादा सुरक्षित व पृथक बस्तियों में रहना चाहिए । पुराने कस्बों के इर्द-गिर्द चरागाहों और खेतों को साफ कर दिया गया। '' सिविल लाइन्स '' के नाम से नए शहरी इलाके विकसित किए गए। इन इलाकों में केवल गोरों को बसाया गया। 
  2. छावनियों की सुरक्षा: छावनियों को भी सुरक्षित स्थानों के रूप में विकसित किया गया। छावनियों में यूरोपीय कमान केअंतर्गत भारतीय सैनिक तैनात किए जाते थे। ये इलाके मुख्य शहर से अलग लेकिन जुड़े हुए होते थे। चौड़ी सड़कों, बड़े बगीचों में बने बंगलों, बैरकों, परेड मैदान और चर्च आदि से लैस ये छावनियाँयूरोपीय लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल थी।
  3. रंग-भेदभाव तथा जाति-भेदभाव के आधार पर शहरों का विभाजन तथा उनमें सार्वजनिक सुविधाओं के अलग-अलग स्तर को बनाए रखना भी नगर-नियोजन की एक चिंता थी। अंग्रेज़ों की दृष्टि में भारतीय असभ्य थे। वे उन्हें अपने क्लबों और सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देना चाहते थे।
  4. सत्ता की ताकत का प्रदर्शन: औपनिवेशिक शासक भारतीय प्रजा पर अपनी शक्ति तथा श्रेष्ठता की धाक जमाना चाहते थे। अत: गोरी बस्तियों में भवन-निर्माण का कार्य यूरोपीय स्थापत्य शैलियों के अनुसार किया गया।
  5. नगर को समुद्र के निकट बसाना 19वीं शताब्दी के नगर-नियोजन की एक प्रमुख चिंता थी। औपनिवेशिक सरकार नगरों को समुद्र के निकट विकसित करना चाहती थी ताकि यूरोपीयों के व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति भली-भाँति की जा सके। भारत का माल सरलतापूर्वक यूरोप में भेजा जा सके और यूरोपीय माल बिना किसी कठिनाई के भारत लाया जा सके।
  6. स्वास्थ्य की चिंता: शहर के भारतीय आबादी वाले भाग की भीड़-भाड़, आवश्यकता से अधिक हरियाली, गंदे तालाबों, बदबू और नालियों की खस्ता हालत आदि भी नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ थीं। यूरोपीयों का विचार था कि दलदली जमीन एवं ठहरे हुए पानी के तालाबों से विषैली गैसें उत्पन्न होती थीं जो विभिन्न बीमारियों का प्रमुख कारण थीं।

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