विष्णु खरे
आपके विचार से मूक और सवाक् फिल्मों में से किसमें ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?
हमारे विचार से मूक फिल्मों में ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है क्योंकि इनमें भाषा का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए ज्यादा-से-ज्यादा मानवीय होना पड़ता है। सवाक् फिल्मों के कॉमेडियन चार्ली तक नहीं पहुँच पाए। इसकी पड़ताल होनी बाकी है। मूक फिल्मों में सिर्फ हाव-भाव से ही अपनी बात कही जाती है जबकि सवाक् फिल्मों में आधा काम तो संवाद ही कर देते हैं। मूक अभिनय से दूसरों को हँसाना तो और भी कठिन काम है।
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लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?
चैप्लिन ने न सिर्फ़ फि़ल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने और वर्ण व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?
लेखक ने कलाकृति और रस के इसके संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण ने सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?
जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को। कैसे संपन्न बनाया?
चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?
चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हंसता है?
आपके विचार से मूक और सवाक् फिल्मों में से किसमें ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?
सामान्यत: व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते हैं। कक्षा में ऐसी घटनाओं का जिक्र कीजिए जब-
(क) आप अपने ऊपर हँसे हो ;
(ख) हास्य करुणा में या करुणा हास्य में बदल गई हो।
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