उमाशंकर जोशी

Question

रस का अक्षयपात्र से कवि ने रचनाकर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है?

Answer

रस का अक्षयपात्र-एक ऐसा पात्र जिसका रस कभी समाप्त न होता हो। कभी नष्ट न होने वाला। रस का अक्षयपात्र कभी खाली नहीं होता। रस जितना बाँटा जाता है, उतना ही भरता है। कविता का रस चिरकाल तक आनंद देता है। यह रचनाकार्य की शाश्वतता को दर्शाता है।

इस कथन के माध्यम से कवि ने रचनाकर्म की इन विशेषताओं की ओर इंगित किया है-

- साहित्यिक रचना का रस अलौकिक होता है।

- साहित्य का रस कभी चुकता नहीं अर्थात् समाप्त नहीं होता।

- साहित्य की रस- धारा असंख्य पाठकों को रसानुभूति कराती रहती है और कम न होकर बढ़ती है।

- उत्तम साहित्य कालजयी होता है।

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Some More Questions From उमाशंकर जोशी Chapter

बगुलों के पंख

नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,

चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।

कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,

तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।

हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।

उसे कोई तनिक रोक रक्खो।

वह तो चुराए लिए जातीं मेरी आँखें

नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।



कवि ने आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते सफेद बगुलों की तुलना किससे की है?

‘वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें’-काव्य-पंक्ति के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि की आँखें कौन और किस प्रकार चुराए लिए जा रहा है?

‘उसे कोई तनिक रोक रक्खो’-काव्य-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

छोटे चौकोने खेत को कागज़ का पन्ना कहने में क्या अर्थ निहित है?

रचना के संदर्भ में अँधड़ और बीज क्या है?

रस का अक्षयपात्र से कवि ने रचनाकर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है?

शब्द के अंकुर फूटे

पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

रोपाई क्षण की

कटाई अनंतता की

लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।

शब्दों के माध्यम से जब कवि दृश्यों, चित्रों, ध्वनि-योजना अथवा रूप-रस-गंध को हमारी ऐंद्रिक अनुभवों में साकार कर देता है तो बिंब का निर्माण होता है। इस आधार पर प्रस्तुत कविता से बिंब की खोज करें।