शमशेर बहादुर सिंह

Question

‘उषा’ कविता में शमशेर बहादूर सिंह ने प्रातःकालीन आकाश के सौंदर्य का कलात्मक चित्रण किया है। आप संध्याकालीन आकाश की सुंदरता का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

Answer

संध्या के समय का आकाश तांबई व सुरमई बादलो से आच्छादित है। संध्या की कालिमा धीरे-धीरे आसमान से उतर रही है। इस संध्या-सुंदरी का सौंदर्य कालिमा से युक्त है। आकाश मार्ग से अपनी नीरवता सखी के कंधे पर बाँहें डाले संध्या-रूपी यह सुंदरी धीरे- धीरे उतर रही है। चारों ओर आलस्य और निस्तब्धता छा रही है। नीलगमन में फैली कालिमा ऐसी प्रतीत होती है मानो संध्या-रूपी अनिंद्य सुंदरी अपने सौदर्य के स्याम रंग की आभा को और गहरे से गहरा करती जा रही है। आकाश मे एक तारा चमकने लगा है जो संध्या के भाव सौंदर्य और आकर्षण को निगल रहा है।

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Some More Questions From शमशेर बहादुर सिंह Chapter

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने -स्पष्ट करो।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें

नील जल में या

किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे

हिल रही हो।

और .........

जादू टूटता है इस उषा का अब:

सूर्योदय हो रहा है।

कवि ने नीले जल में झिलमिलाते गौर वर्ण शरीर किसे कहा है?

उषा का जादू कब टूटता है?

इस काव्यांश में किस स्थिति का चित्रण हुआ है?

कवि की कल्पनाशीलता पर प्रकाश डालिए।

कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा, कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

नई कविता में कोष्ठक, विराम-चिन्हऔर पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।

अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।

सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों?

● उपमान ● शब्दचयन ● परिवेश