-->

शमशेर बहादुर सिंह

Question
CBSEENHN12026224

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने -स्पष्ट करो।

Solution

प्रात:कालीन आसमान काली स्लेट के समान लगता है। उस समय की सूर्य की लालिमा ऐसे लगती है जैसे काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दी हो। कवि आकाश में उभरे लाल-लाल धब्बों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है।

Some More Questions From शमशेर बहादुर सिंह Chapter

कवि काली सिल और लाल केसर के माध्यम से क्या कहना चाहता है?

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने -स्पष्ट करो।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें

नील जल में या

किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे

हिल रही हो।

और .........

जादू टूटता है इस उषा का अब:

सूर्योदय हो रहा है।

कवि ने नीले जल में झिलमिलाते गौर वर्ण शरीर किसे कहा है?

उषा का जादू कब टूटता है?

इस काव्यांश में किस स्थिति का चित्रण हुआ है?

कवि की कल्पनाशीलता पर प्रकाश डालिए।

कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा, कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

नई कविता में कोष्ठक, विराम-चिन्हऔर पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।

अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।