निर्मला पुतुल
इस अविश्वास भरे दौर में बचाने को बहुत कुछ बचा है-इससे कवयित्री का आशय यह है कि यदि संथाली समाज अपनी बुराइयों को दूर कर ले तो उसका मूल स्वरूप बहाल हो सकता है। अभी उनका परिवेश, उनकी भाषा, संस्कृति में अधिक बिगाड़ नहीं आया है। शहरी सम्यता का प्रभाव भी अभी सीमित मात्रा में है। अत: यहाँ के मूल चरित्र को बचाए रखना पूरी तरह से संभव है। इसे बचाना ही होगा।
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भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?
दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?
निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए-
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने,
आओ-मिलकर बचाएँ।
बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?
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