गलता लोहा
मोहन! थोड़ा दही तो ला दे बाजार से।
मोहन! ये कपड़े धोबी को दे तो आ।
मोहन! एक किलो आलू तो ला दे।
ऊपर के वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए हैं। इन वाक्यों में आप सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए ।
- आप! बाजार से थोड़ा दही तो ला दें।
- आप! ये कपड़े धोबी को तो दे आएँ।
- आप! एक किलो आलू तो ला दें।
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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
प्राइमरी स्कूल की सीमा लांघते ही मोहन ने छात्रवृत्ति प्राप्त कर त्रिलोसिंह मास्टर की भविष्यवाणी को किसी हद तक सिद्ध कर दिया तो साधारण हैसियत वाले यजमानों की पुरोहिताई करने वाले वंशीधर तिवारी का हौसला बढ़ गया और वे भी अपने पुत्र को पड़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का स्वप्न देखने लगे। पीढ़ियों से चले आते पैतृक धंधे ने उन्हें निराश कर दिया था। दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे। मोहन पद्य-लिखकर वंश का दारिद्रय मिटा दे, यह उनकी हार्दिक इच्छा थी । लेकिन इच्छा होने भर से ही सब-कुछ नहीं हो जाता।
1. मास्टर त्रिलोसिहं की किस भविष्यवाणी को मोहन ने सच सिद्ध कर दिया और कैसे?
2. किसका और क्यों हौसला बढ़ गया?
3. उनकी क्या इच्छा थी?
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
वर्षा के दिनों में नदी पार करने की कठिनाई को देखते हुए वंशीधर ने नदी पर के गाँव में एक यजमान के घर पर मोहन का डेरा तय कर दिया था। घर के अन्य बच्चों की तरह मोहन खा-पीकर स्कूल जाता और छुट्टियों में नदी उतार पर होने पर गांव लौट आता था। संयोग की बात, एक बार छुट्टी के पहले दिन जब नदी का पानी उतार पर ही था और मोहन कुछ घसियारों के साथ नदी पार कर घर आ रहा था तो पहाड़ी के दूसरी और भारी वर्षा होने के कारण अचानक नदी का पानी बढ़ गया। पहले नदी की धारा में झाड़-झंखाड़ और पात-पतेल आने शुरू हुए तो अनुभवी घसियारों ने तेजी से पानी को काटकर आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन किनारे पहुँचते-न-पहुँचते मटमैले पानी का रेल। उन तक आ ही पहुंचा। वे लोग किसी प्रकार सकुशल इस पार पहुंचने में सफल हो सके। इस घटना के बाद वंशीधर घबरा गए और बच्चे के भविष्य को लेकर चिन्तित रहने लगे।
1. वंशीधर ने कहाँ किसका डेरा डाला और क्यों?
2. एक दिन क्या घटना घटी?
3. एक दिन क्या घटना घटी?
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
आठवीं. कक्षा की पढ़ाई समाप्त कर छुट्टियों में मोहन गांव आया हुआ था। जब वह लौटकर लखनऊ पहुंचा तो उसने अनुभव किया कि रमेश के परिवार के सभी लोग जैसे उसकी आगे की पड़ाई के पक्ष में नहीं हैं। बात घूम-फिरकर जिस ओर से उठती वह इसी मुद्दे पर थरूर खत्म हो जाती कि हजारों-लाखों बीए., एमए मारे-मारे बेकार फिर रहे हैं। ऐसी पढ़ाई से अच्छा तो आदमी कोई हाथ का काम सीख ले। रमेश ने अपने किसी परिचित के प्रभाव से उसे एक तकनीकी स्कूल में भर्ती कर। दिया। मोहन की दिनचर्या में कोई विशेष अंतर नहीं आया था। वह पहले की तरह स्कूल और घरेलू कामकाज में व्यस्त रहता। धीरे- धीरे डेढ़-दो वर्ष का यह समय भी बीत गया और मोहन अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए कारखानों ‘और फैक्टरियों के चक्कर लगाने लगा।
1. मोहन ने लखनऊ लौटकर क्या अनुभव किया?
2. मोहन को कहाँ दाखिल कराया गया?
3. मोहन की स्थिति क्या हो गई?
कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।
घनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था?
मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
मास्टर त्रिलोकसिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है और क्यों?
क. किसने किससे कहा?
ख. किस प्रसंग में कहा?
ग. किस आशय से कहा?
घ. क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?
क. किसके लिए कहा गया है?
ख. किस प्रसंग में कहा गया है?
ग. यह पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है?
गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फर्क है? चर्चा करें और लिखें।
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