गिरिजाकुमार माथुर - छाया मत छूना
(i) रात कृष्णा - दुःख-दीनता
(ii) छाया - पुरानी यादें और भविष्य की कामनाएँ
(iii) चंद्रिका – सुख–वैभव
(iv) मृगतृष्णा – धोका/मन का भटकाव
(v) दौड़ना - सांसारिक तृष्णाएँ
(vi) कृष्णा - निराशा/पीड़ा।
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भाव स्पष्ट कीजिये
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
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