गिरिजाकुमार माथुर - छाया मत छूना
श्री गिरिजा कुमार माथुर छायावादी काव्य धारा से प्रभावित थे और उनकी कविता में प्रेम-सौंदर्य और कल्पना की अधिकता है पर कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कल्पना की उड़ान से बहुत दूर होकर अपनी मानसिक सबलता का परिचय दिया है, कोरी कल्पनाएँ जीवन में किसी काम की नहीं होती। इनसे सुखों की अनुभूति होती है लेकिन जीवन का वास्तविक सुख प्राप्त नहीं होता। जीवन में सुख-दुःख तो दोनों आते हैं लेकिन दुःख की घड़ियों में हम सुखों को याद करके अपनी पीड़ा को बढ़ा लेते हैं। जीवन में केवल मधुर सपने नहीं हैं। इसमें कठोरता भी बसती है। हमें पुरानी बातों को भुलाकर भविष्य की ओर मजबूत कदमों से बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण।
जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम अपने लक्ष्य की ओर अपनी दृष्टि जमाएं रखें और आगे बढ़ते जाएं न कि पिछले सुखों को याद कर-कर आसू बहाते रहें।
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