गिरिजाकुमार माथुर - छाया मत छूना
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनेक मधुर स्मृतियां सदा ही मन में छिपी रहती हैं जो समय-समय पर प्रकट होती रहती हैं। जब वे याद आती हैं तब अनायास ही होंठों पर मुस्कान बिखर जाती है। जब मैं छोटा था तब मेरी बुआ जी मेरे लिए मेरे जन्म दिन पर एक साथ दस उपहार लेकर आई थीं। मैंने हैरान होकर उनसे पूछा था कि एक साथ इतने उपहार वे क्यों ले आई थीं। उन्होंने मुस्कराकर कहा था कि वे पिछले दस वर्ष से विदेश में थी और मेरे जन्म दिन पर वे मुझे उपहार नहीं दे पाई थीं। इसलिए पिछले दस वर्षो के दस उपहार मुझे एक साथ दे रहीं थी। उपहार भी एक से बढ़कर एक सुंदर। मैं खुशी से झूम उठा था और आज भी मुझे वह घटना ऐसी लगती है जैसे उसे घटित हुए कुछ ही देर हुई हो। मैं इस घटना को कभी नहीं भूल सकता।
एक बार मैं पैदल ही स्कूल जा रहा था। एक नन्हा-सा पिल्ला मेरे पीछे-पीछे चलने लगा। मुझे उसका अपने पीछे आना अच्छा लगा। जब मैं स्कूल पहुँच गया तो स्कूल के चौकीदार ने उसे भगा दिया। छुट्टी के बाद जैसे ही मैं बाहर निकला वैसे ही न जाने कहाँ से वह भागता हुआ आया और फिर मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आया। यह क्रम अगले दिन भी ऐसे चला और इसके बाद महीना भर मेरा और उसका स्कूल जाना-आना एक साथ हुआ। इसके बाद मुझे नहीं पता कि अचानक वह पिल्ला कहां चला गया। मैंने उसे ढूंढने की कोशिश की पर फिर वह मुझे कहीं नहीं दिखाई नहीं दिया। इस घटना को अनेक वर्ष बीत चुके हैं पर मुझे उसकी मधुर स्मृति कभी नहीं भूलती।
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