मेरा छोटा- सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती
लेखक स्कूल की किताबों के अतिरिक्त बाकी किताबें ज्यादा पढ़ता था। वह कक्षा की किताबें नहीं पढ़ता था। माँ को चिंता थी कि कहीं वह साधु बनकर घर से भाग न जाए। उनका मानना था कि जीवन में यही पढ़ाई काम आएगी। माँ कि चिंता को मिटाने के लिए लेखक ने पिता के कहने पर पाठ्य-पुस्तकों का अध्ययन करना आरम्भ कर दिया। तीसरी चौथी कक्षा में अच्छे अंक लाकर माँ की चिंता दूर कर दी। जब पाँचवी कक्षा में प्रथम आए तब माँ ने आँसू भरकर उन्हें गले से लगा लिया।
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