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मेरा छोटा- सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती
किताबों वाले कमरें में रहने के पीछे लेखक के मन में पुस्तकों का वह संकलन था जो उसके बचपन से लेकर आज तक संबंधित था। जब उन्हें अस्पताल से घर लाया गया तो उन्होनें ज़िद की थी कि वे अपने आपको उनके साथ जुड़ा हुआ अनुभव कर सकें। उनके प्राण इन हजारों किताबों में बसे हुए थे। जो पिछले चालीस-पचास बरस में धीरे-धीरे जमा होती गई थीं।
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