साखियाँ एवं सबद
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
कबीरदास ने प्रस्तुत दोहों के माध्यम से धार्मिक एकता तथा साम्प्रदायिक सद्धभावना के विचार को व्यक्त किया है। कबीर ने अपने विचारों द्वारा जन मानस की आँखों पर धर्म तथा संप्रदाय के नाम पर पड़े परदे को खोलने का प्रयास किया है। उन्होंने हिंदु- मुस्लिम एकता का समर्थन किया तथा धार्मिक कुप्रथाओं जैसे मूर्तिपूजा का विरोध किया है। ईश्वर मंदिर, मस्जिद तथा गुरुद्वारे में नहीं होते हैं बल्कि मनुष्य की आत्मा में व्याप्त हैं। कबीर ने हर एक मनुष्य को किसी एक मत, संप्रदाय, धर्म आदि में न पड़ने की सलाह दी है। ये सारी चीजें मनुष्य को राह से भटकाने तथा बँटवारे की और ले जाती है अत:कबीर के अनुसार हमें इन सब चक्करों में नहीं पड़ना चाहिए।
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कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है?
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
अंतिम दो दोहों के माध्यम से से कबीर ने किस तरह की संकीर्णता की ओर संकेत किया है?
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढता फिरता है?
कबीर ने ईश्वर को 'सब स्वाँसों की स्वाँस' में क्यों कहा है?
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
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