गीत-अगीत - रामधारी सिंह दिनकर
गा-गाकर बह रही निर्झरी,
पाटक मूक खड़ा तट पर है।
गीत, अगीत, कौन सुदंर है?
भाव पक्ष- प्रस्तुत पंक्तियों में प्रकृति सौंदर्य के अतिरिक्त जीव-जन्तुओं के ममत्व, मानवीय राग और प्रेमभाव का सजीव चित्रण करते हुए कवि कहते है कि गीत और अगीत दोनों में से कौन अच्छा है। नदी वियोग के गीत गाती हुई तीव्र प्रवाह से प्रवाहित होती है। अपने मन की व्यथा को हल्का करने के लिए किनारों से संवाद करती है। बहता हुआ पानी जब किनारों से टकराता है तो उससे एक प्रकार की गूंज उठती है। नदी के किनारे पर लगा हुआ गुलाब सोचने लगता है कि यदि मुझे ईश्वर स्वरों का वरदान देते तो भी अपनी आपबीती नदी की गति की तरह सृजन कर डालता। (सारे संसार को पतझड़ के दु:ख भरे दिनों की पीड़ा) अर्थात नदी गीत गाते हुए अर्थात् कल-कल की ध्वनि करते हुए प्रवाहित हो रही है और किनारे पर खड़ा हुआ गुलाब चुप है। गीत और अगीत में से कौन सुन्दर प्रतीत होता है। परन्तु मेरी पीड़ा मन ही में रह जाती है।
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