गीत-अगीत - रामधारी सिंह दिनकर
इसमें शुक पर प्रकृति के प्रभाव को कवि दर्शाते हुए कहता है मनुष्य ही नहीं पशु पक्षी भी प्राकृतिक सौंदर्य से चहचहाने लगते हैं। जब सूर्य की प्रात: कालीन किरण शुक के अंगों को छूती है तो वह मधुर स्वर से गाने लगती है। किंतु शुकी का स्वर स्नेह में ही भीगकर रह जाता है वह अपने भावों द्वारा अपने गीत को व्यक्त नहीं कर पाती।
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