एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त
भाव पक्ष- सुखिया के पिता कहते है कि मेरे हाथ का (पुजारी द्वारा दिया गया) सारा-का-सारा प्रसाद वही बिखर गया। मैं अपने हाहाकार दुखी मन से सोचने लगा कि हाय मेरी अभागी बेटी! अब ऐसी स्थिति में देवी का यह प्रसाद तेरे पास तक कैसे पहुँचा पाऊँगा क्योंकि वह तो बिखर कर उन देवी के भक्तों द्वारा कुचला जा चुका था। पिता का हृदय दुखी हुआ और पश्चाताप करने लगा कि हाय बेटी! मैं तुझे अंतिम बार भी गोद में नहीं ले सका। न ही देवी के प्रसाद का एक फूल ही लाकर दे सका। कैसा अभागा पिता हूँ जो अपनी संतान की अंतिम इच्छा भी पूरी न कर सका। वे लोग मुझे न्यायालय ले गए। सात दिन की कारावास की सजा हुई क्योंकि मेरे द्वारा देवी का अपमान किया गया था।
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