एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त
भाव पक्ष- सुखिया के पिता मंदिर में पूजा के फूल लेने गए तो भक्तों ने उन्हें अछूत कहकर पकड़ लिया। अभी वह मंदिर के गिन से मुख्य द्वार तक भी नहीं पहुँच पाया था कि अचानक ही वह आवाज मेरे कानों में सुनाई पड़ी-यह अछूत मंदिर में कैसे आया था? इसे पकड़ लो, देखो, कहीं भाग न जाए। यह धूर्त साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर कैसा भले मनुष्यों जैसा बना हुआ है।
Sponsor Area
Sponsor Area
Sponsor Area