एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त
भाव पक्ष -मंदिर की शोभा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि ऊँचे पर्वत चोटी पर एक विस्तृत और विशाल मंदिर खड़ा था। उसके सोने के कलश की किरणों से चमकते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे सूर्य की खिली हुई किरणों का स्पर्श सुनहरे कमल खिल उठे हो। मंदिर का सारा आँगन धूप-दीप की सुंगध से भरा हुआ था अर्थात महक रहा था। मंदिर के भीतर और बाहर सभी स्थान पर वहाँ मनाए जा रहे उत्सव की प्रसन्नता भरी आवाज गूँज रही थी।
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