अब कैसे छूटै राम नाम - रैदास
दास्य भक्ति के अंतर्गत भक्त स्वयं को लघु, तुच्छ और दास कहता है तथा प्रभु को दीन दयालु, भक्त वत्सल कहता है। वे स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं। वे स्वयं को मोर जैसा तुच्छ और प्रभु को धने वन जैसा विराट मानते हैं। वे प्रभु को गरीब निवाजु: निडर व दयालु कहते हैं ये सब दास्य भक्ति के भाव हैं।
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