धूल - रामविलास शर्मा
(क) पाठ-धूल, लेखक-राम विलास शर्मा।
(ख) हमारी सभ्यता धूल के संसर्ग से इसलिए बचना चाहती है क्योंकि वह आसमान को छूने की इच्छा रखती है।
(ग) इस गद्यांश में आज की सभ्यता पर कटु व्यंग्य है। आज का सभ्य, सुशिक्षित वर्ग धूल-मिट्टी से घृणा करता है। वे बनावट- श्रृंगार और नकली साज-सज्जा को महत्त्व देते है। वे ऊपरी चमक-दमक को ही सौन्दर्य मानते है।
(घ) अपनी महानता को संसार में दिखाने के लिए समाज के सभ्य लोग भूल से भरे शिशु को अपनी गोद में उठा लेते है, इस प्रकार जब वे मैले-कुचैले बच्चों को गोद में उठाते हैं तो लोग उनकी प्रशंसा करते है।
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