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समकालीन दक्षिण एशिया

Question
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दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस (सार्क) की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। दक्षिण एशिया की बेहतरी में 'दक्षेस' (सार्क) ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सके, इसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?

Solution

इसमें कोई दो राहें नहीं कि विश्व के लगभग सभी राष्ट्र आर्थिक उन्नति के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। अनेक संघर्षों के बावजूद दक्षिण एशिया के देश आपस में दोस्ताना रिश्ते तथा सहयोग के महत्त्व को पहचानते हैं। इसलिए आपसी सहयोग को बनाने एवं बढ़ाने के विचार से दक्षिण एशिया के सात देशों ने दक्षेस (SAARC) की स्थापना की। इसकी शुरुआत 1985 में हुई।

सन् 2004 में सार्क देशों ने 'साफ्टा' (सफ्ता) समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार समस्त दक्षिण एशिया को 'मुफ्त व्यापार क्षेत्र' बना दिया गया। इस सहयोग को और अधिक बढ़ाने के लिए सार्क के 12वें शिखर सम्मेलन में साफ्टा को वर्ष 2006 से लागू करने की अनुमति दे दी।

आर्थिक क्षेत्र में सहयोग में (सार्क) की भूमिका:

  1. दक्षिण एशियाई क्षेत्र की जनता के कल्याण एवं उनके जीवन स्तर में सुधार लाने में ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।
  2. इसने क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को गति देने अथवा सदस्य देशों की सामूहिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि करना का भी काम किया है।
  3. विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में पारस्परिक सहायता में तेजी लाना; समान लक्ष्यों और उद्देश्यों वाले अंतरराष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग स्थापित करना; अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समान हितों के मामलों में सदस्य देशों के मध्य सहयोग की भावना को मजबूती प्रदान करना, तथा; अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग स्थापित करना। इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति में सार्क की भूमिका अहम है।

सार्क की सीमाएँ:

  1. सार्क की सफलता में सदैव भारत-पाक के कटु संबंध, भारत बांग्लादेश के मध्य गंगा पानी के बंटवारे का मुद्दा, भारत श्रीलंका में तमिल प्रवासियों की समस्या आदि अनेक मुद्दे हैं, जो इसके कार्यों में रुकावट पैदा करते आ रहे है।
  2. सार्क देशों में भारत की सैन्य क्षमता, कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, औद्योगिक प्रगति, तकनीकी विकास आदि ने भारत की सार्क देशों में बिग ब्रदर की स्थिति बना दी है जिसके तहत सार्क के सदस्य देश भारत जैसे बड़े देश पर पूर्ण विश्वास नहीं रख पा रहे हैं।
  3. सार्क सदस्य देशों में अत्याधिक विविधताएँ भी इन सदस्य देशों की एकता में बाधक है उदहारण स्वरूप पाकिस्तान में सैनिक तंत्र, नेपाल और भूटान में राजतंत्र, भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा मालदीव में लोकतंत्र है। इतना ही नहीं इसमें तीन इस्लामिक देश है, दो बौद्ध है , एक हिंदू तथा एक धर्म-निरपेक्ष देश है इन विविधताओं के चलते अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह देश आपस में सहयोग की बजाय टकराव की स्थिति में आ जाते हैं।

सार्क की सफलता के लिए सुझाव:

  1. सार्क के सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय मंचों पर टकराव व संघर्ष के बजाय पारस्परिक सहयोग एवं सर्वसम्मत दृष्टिकोण को अपनाएँ।
  2. द्वि-पक्षीय एवं बहु-पक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  3. सांस्कृतिक संपर्क एवं एक- दूसरे देश के लोगों के आवागमन को प्रोत्साहन देने का कार्य भी किया जाना चाहिए।
  4. सार्क के सदस्य देशों को सहयोग के नए क्षेत्र, जैसे उद्योग, व्यापार, मुद्रा, ऊर्जा आदि क्षेत्रों को ढूंढने का प्रयास करना चाहिए और सामूहिक आत्म-निर्भता की ओर भी अग्रसर होना चाहिए।

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दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस (सार्क) की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। दक्षिण एशिया की बेहतरी में 'दक्षेस' (सार्क) ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सके, इसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?

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