Sponsor Area

राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

Question
CBSEHHIPOH12041305

भारत को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू जी ने किन तर्कों का इस्तेमाल किया? क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी है?

Solution

नेहरू जी ने भारत को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए हैं:

  1. धर्म और राजनीति का क्षेत्र अलग-अलग है। यदि इन दोनों को मिलाया गया तो देश में सांप्रदायिकता फैल जाएगीं जो के लिए घातक सिद्ध होगी।
  2. लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म की पालना करने का अधिकार व स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  3. भारत में अल्पसंख्यकों में सुरक्षा का विश्वास जगाना होगा जिससे भारत की विश्व में प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
  4. धर्म सांप्रदायिकता को जन्म देता है और सांप्रदायिकता विकास के रास्ते में बाधा बनती है। इसलिए धर्म-निरपेक्षता जरुरी है। 

नेहरू जी का धर्म-निरपेक्षता में विश्वास था। उनका दृष्टिकोण मुख्य रूप से निरपेक्षतावादी और वैज्ञानिक था। इसलिए उन्हें रहस्यवाद से सदैव चिढ़ थी। उन्होंने सदैव रूढ़िगत प्रथाओं और परंपराओं का विरोध किया। उनका किसी अज्ञात सर्वोपरि शक्ति में विश्वास नहीं था। नेहरूजी की धर्म-निरपेक्षता में पूण निष्ठा. थी उनकी धर्म-निरपेक्ष निष्ठा को उनके ही शब्दों में अभिव्यक्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा था, ''मूलत: मैं इसी विश्व में, इसी जीवन में दिलचस्पी रखता हूँ, किसी अन्य विश्व या एक भावी जीवन में नहीं। आत्मा जैसी कोई वस्तु है या नहीं, अथवा मृत्यु के उपरांत भी कोई जीवन है या नहीं, मैं नहीं जानता। यद्यपि ये महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं किंतु मुझे तनिक भी परेशान नहीं करते।''नेहरूजी की धर्म-निरपेक्षता का अंदाजा इस बात सेलगाया जा सकता है कि उन्होंने भारत में धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना का समर्थन किया। परंतु उनकी धर्म-निरपेक्ष धारणा का यह अर्थ नहीं लगाना चाहिए कि वे धर्म-विरोधी थे या फिर वे नास्तिक या अधर्मी थे। नेहरू जी न तो धर्म-विरोधी थे, न नास्तिक थे.और न ही अधार्मिक थें। वस्तुत: नेहरू जी ने धर्म और ईश्वर जैसे शब्दों का कुछ विशेष अर्थ बताया है। धर्म का अर्थ मंदिर में नियमित रूप से जाकर पूजा करना नहीं है या फिर माला जपना नहीं है। धर्म का अर्थ है किसी के प्रति दुर्भावना न रखना और सबसे प्रेम करना, अपने कर्म के प्रति जागरूक होना। अपने व्यक्तिगत सुखों या हितों की चिंता किए बिना दूसरे के लिए कर्म करना सच्चा धर्म है। एक सच्चा धार्मिक व्यक्ति प्रत्येक कर्म निष्काम भाव से करता है। उसकी कर्म के फल के प्रति कोई आसक्ति नहीं होती। नेहरूजी में यह सब गुण थे। उनका सर्वस्व बलिदान तो विश्व विख्यात हे। वे सदैव दीन-दुखियों की सहायता के लिए तैयार रहते थे।

नेहरू जी ने धर्म-निरपेक्षता का न केवल प्रचार किया बल्कि नेहरू जी अपने प्रधानमंत्री रहने के कार्यकाल में धर्म-निरपेक्षवाद के विचार पर दृढ़ रहे और उन्होंने उन सभी व्यक्तियों का विरोध किया जो भारत को एक हिंदूराष्ट्र बनाने के पक्ष में थे। वे अल्पसंख्यकों और मुसलमानों को भारत में समान दर्जा प्रदान करने के पक्ष में थे। उन्होंने भारत को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाने में गाँधी जी का अनुसरण किया। उनका विचार था कि भारत सबके लिए है, न कि कैवल हिंदुओं के लिए । नेहरूजी कीं धर्म-निरपेक्ष धारणा संकीर्ण न होकर व्यापक व उदार थी । उन्होंने अपनी धर्म-निरपेक्षता की धारणा को कैवल धार्मिक मामलों तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे सामाजिक जीवन के अन्य क्षेत्रों तक भी ले गए। उनका विचार था कि हमारी सामाजिक सहिंताएँ, हमारे सामाजिक नियम, विवाह, उत्तराधिकार, न्याय, दीवानी व फौजदारी नियम आदि धर्म-निरपेक्ष होने चाहिएं। अर्थात् इन पर धार्मिक प्रभाव नहीं होना चाहिए। वे सभी भारतवासियों के लिए एक-सा कानून चाहते थे। इस दिशा में उन्होंने हिंदू कानून कें संहिताकरण का कदम भी उठाया। वे भारत में से जाती-पाति को समाप्त करना चाहते थे।

निष्कर्ष: संक्षेप में, नेहरूजी के राजनीतिक विचार किसी विशिष्ट 'वाद' छाए पर आधारित न होकर व्यावहारिक हैं। वे एक यथार्थवादी तथा मानवतावादी थे। वे एक बहुत बड़े व्यक्तिवादी थे। प्रजातंत्र, समानता, स्वतंत्रता, धर्म-निरपेक्षता एवं समाजवाद में उनका दृढ़ विश्वास था।

Sponsor Area

Some More Questions From राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Chapter

भारत को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू जी ने किन तर्कों का इस्तेमाल किया? क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी है?

आज़ादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अंतर क्या थे?

राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था? इसकी प्रमुख सिफारिश क्या थी?

कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में 'कल्पित समुदाय' होता है और सर्वमान्य विश्वास, इतिहास, राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एकसूत्र में बँधा होता है। उन विशेषताओं की पहचान करें जिनकेआधार पर भारत एक राष्ट्र है।

नीचे लिखे अवतरण को पढ़िए और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

राष्ट्र- निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषा समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा। जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज से, वह अपने आप में बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य को जिस कच्ची सामग्री में राष्ट्र निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बटे हुए और क़र्ज़ तथा बीमारी से दबे हुए थे।

(क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच समानताओं का उल्लेख किया है, उनकी एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए।

(ख) लेखक ने यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच की समानता का उल्लेख नहीं किया हैं। क्या आप दो असमानताएँ बता सकते हैं।

(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र-निर्माण के इन दो प्रयोगों में कितने बेहतर काम किया और क्यों?