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समकालीन विश्व में लोकतंत्र

Question
CBSEHHISSH9009346

अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में लोकतंत्र की जरूरत है ताकि-

  • अमीर देशों की बातो का ज्यादा वज़न हो।

  • विभिन्न देशों की बात का वज़न उसकी सैन्य शक्ति के अनुपात में हो।

  • देशों की उसकी आबादी के अनूपात में सम्मान मिले।

  • दुनिया के सभी देशों के साथ सम्मान व्यवहार।

Solution

D.

दुनिया के सभी देशों के साथ सम्मान व्यवहार।

Some More Questions From समकालीन विश्व में लोकतंत्र Chapter

वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ाने में इनमे से किन बातों में मदद मिलेगी? प्रत्येक मामले में अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए।
(क) मेरे देश अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को ज़्यादा पैसे देता है इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरे साथ ज़्यादा समान्यजनक व्यवहार हो और मुझे ज़्यादा अधिकार मिलें।
(ख) मेरा देश छोटा या गरीब हो सकता है लेकिन मेरी आवाज़ को सामान आदर के साथ सुना जाना चाहिए क्योंकि इन फैसलों का मेरे देश पर भी असर होगा।
(ग) अंतराष्ट्रीय मामलों में अमीर देश की ज़्यादा चलनी चाहिए। गरीब देशो की संख्या ज्यादा है, सिर्फ़ इसके चलते अमीर देश अपने हितो का नुकसान नहीं होने दे सकते।
(घ) भारत जैसे बड़े देशो की आवाज़ का अंतराष्ट्रीय संगठनों में ज्यादा वज़न होना ही चाहिएl

नेपाल के संकट पर हुई एक टीवी चर्चा में व्यक्त किए गए तीन विचार इस प्रकार के थे। इसमें से आप किसे सही मानते हैं और क्यों?
वक्ता 1 : भारत एक लोकतान्त्रिक देश है इसलिए राजशाही के खिलाफ़ और लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाले नेपाली लोगों के समर्थन में भारत को ज़्यादा दखल देना चाहिए। 
वक्ता 2 : यह एक खतरनाक तर्क है। हम उस स्थिति में पहुँच जायेंगे जहाँ इराक के मामले में अमेरिका पहुँचा है। किसी भी बाहरी शक्ति के सहारे लोकतंत्र नहीं आ सकता।  
वक्ता 3 : लेकिन हमें किसी देश के आंतरिक मामलों की चिंता ही क्यों करनी चाहिए? हमें वहाँ अपने व्यावसायिक हितों की चिंता करनी चाहिए लोकतंत्र की नहीं। 

एक काल्पनिक देश आनंदलोक में लोग विदेशी शासन को समाप्त करके पुराने राजपरिवारो को सत्ता सौंपते हैl वे कहते है, 'आखिर जब विदेशियों ने हमारे ऊपर राज करना शुरू किया तब इन्ही के पूर्वज हमारे राजा थे यह अच्छा है की हमारा एक मजबूत शासक है जो हमें अमीर और ताकतवर बनने में मदद कर सकता हैl 'जब किसी ने लोकतान्त्रिक शासन की बात की तो वह के सयाने लोगों ने कहा कि यह तो एक विदेशी विचार हैl हमारी लड़ाई विदेशियों और उनके विचारों को देश से खदेड़ने की थीl जब किसी ने मिडिया के आज़ादी की मांग की तो बड़े-बुजुर्गो ने कहा की शासन ज़्यादा आलोचना करने से नुकसान होगा और इससे अपने जीवन स्तर को सुधरने में कोई मदद नहीं मिलेगीl 'आखिर महराज दयावान हैं और अपनी पूरी प्रजा के कल्याण में दिलचस्पी लेते है उनके लिए मुश्किल क्यों पैदा की जाएँ? क्या हम सभी खुशाल नहीं होना चाहते?

उपरोक्त उद्धरण को पढ़ने के बाद चमन, चंपा और चंदू ने कुछ इस तरह के निष्कर्ष निकले:
चमन: आनंदलोक एक लोकतान्त्रिक देश है क्योंकि लोगों ने विदेशी शासको को उखाड़ फेंका और राजा का शासन बहाल किया।

चंपा: आनंदलोक लोकतान्त्रिक देश नहीं है क्योंकि लोग अपने शासन की आलोचना नहीं कर सकते राजा अच्छा हो सकता है और आर्थिक समृद्धि भी ला सकते हैl लेकिन राजा लोकतान्त्रिक शासन नहीं ला सकता।

चंदू: लोगों को खुशाली चाहिए इसलिए वे अपने शासन को अपनी तरफ से फैसले लेना देना चाहते हैl अगर लोग खुश है तो वहाँ का शासन लोकतान्त्रिक ही है।

इन तीनो कथनों के बारे में आपकी क्या राय है? इस देश में सरकार के स्वरूप के बारे में आपकी क्या राय है?

आयेंदे कौन था?

 

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