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विचारक विश्वास और इमारतें

Question
CBSEHHIHSH12028282

वैष्णववाद और शेववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।

Solution

लगभग 600 ईसा पूर्व से 600 ई० के मध्य वैष्णववाद और शैववाद का विकास हुआ। इसे हिंदू धर्म या पौराणिक हिंदू धर्म भी कहा जाता है। इन दोनों नवीन विचारधाराओं की अभिव्यक्ति मूर्तिकला और वास्तुकला के माध्यम से भी हुई । इस संदर्भ में मूर्तिकला और वास्तुकला के विकास का परिचय निम्नलिखित है:

  1. मूर्तिकला: बौद्ध धर्म की महायान शाखा की भाँति पौराणिक हिंदू धर्म में भी मूर्ति-पूजा का प्रचलन शुरू हुआ। भगवान विष्णु व उनके अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया। अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियाँ बनाई गईं। प्राय: भगवान् को उनके प्रतीक लिंग के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेकिन कई बार उन्हें मानव रूप में भी दिखाया गया । विष्णु की प्रसिद्ध प्रतिमा देवगढ़ दशावतार मंदिर में मिली है। इसमें उन्हें शेषनाग की शय्या पर लेटे हुए दिखाया गया है। कुंडल, मुकुट वा माला आदि पहने हैं। इसके एक और शिव तथा दूसरी और इंद्र की प्रतिमाएँ है। नाभि से निकले कमल पर ब्रह्मा विराजमान हैं। लक्ष्मी विष्णु के चरण दबा रही हैं। वराह पृथ्वी को प्रलय से बचाने के लिए दाँतों पर उठाए हुए हैं। पृथ्वी को भी नारी रूप में दिखाया गया है। गुप्तकालीन शिव मंदिरों में एक-मुखी और चतुर्मुखी शिवलिंग मिले हैं।
  2. वास्तुकला: वैष्णववाद और शैववाद के अंतर्गत मंदिर वास्तुकला का विकास हुआ। संक्षेप में, शुरुआती मंदिरों के स्थापत्य (वास्तुकला) की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार है:

    1. मंदिरों का प्रारंभ गर्भ-गृह (देव मूर्ति का स्थान) के साथ हुआ। यह चौकोर कमरे थे। इनमें एक दरवाजा होता था, जिसमें उपासक पूजा के लिए भीतर जाते थे। गर्भ-गृह के द्वार अलंकृत थे।

    2. धीरे धीरे गर्भ ग्रह के ऊपर एक ऊँचा ढांचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था।

    3. शुरुआती मंदिर ईंटों से बनाए गए साधारण भवन हैं, लेकिन गुप्त काल तक आते-आते स्मारकीय शैली का विचार उत्पन्न हो चुका था, जो आगमी शताब्दियों में भव्य पाषाण मंदिरों के रूप में अभिव्यक्त हुआ। इनमें ऊंची दीवारें, तोरणद्वार और विशाल सभास्थल बनाए गए, यहाँ तक कि जलापूर्ति का प्रबंध भी किया गया।

       

    4. पूरी एक चट्टान को तराशकर मूर्तियों से अलंकृत पूजा-स्थल बनाने की शैली भी विकसित हुई। उदयगिरी का विष्णु मंदिर इस शैली से बनाया गया। इस संदर्भ में महाबलीपुरम् के मंदिर भी विशेष उल्लेखनीय है।

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Some More Questions From विचारक विश्वास और इमारतें Chapter

साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए।

निम्नलिखित संक्षिप्त अभिलेख को पढ़िए और उत्तर दीजिए:
महाराज हुविष्क (एक कुषाण शासक) के तैंतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दिन त्रिपिटक जानने वाले भिक्खु बल की शिष्या, त्रिपिटक जाननेवाली बुद्धमिता के बहन की बेटी भिक्खुनी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित की।

(क) धनवती नेअपने अभिलेख की तारीख कैसे निश्चित की?
(ख) आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति क्यों स्थापित की?
(ग) वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती हैं?
(घ) बे कौन-से बौद्ध ग्रंथों को जानती थीं?
(ढ़) उन्होंने ये पाठ किससे सीखे थे?

आपके अनुसार स्त्री पुरुष संघ में क्यों जाते थे?

साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती है?

चित्र 1 और चित्र 2 में साँची से लिए गए दो परिदृश्य दिए गए हैं। आपको इनमें क्या नज़र आता है? वास्तुकला,पेड़-पौधे और जानवरों को ध्यान से देखकर तथा लोगों के काम-धंधों को पहचान कर यह बताइए कि इनमें से कौन-से ग्रामीण और कौन-से शहरी परिदृश्य हैं?

वैष्णववाद और शेववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।

स्तूप क्यों और कैसे बनाए जाते थे? चर्चा कीजिए।