मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। अशोक के अभिलेखों में इनमें से कौन-कौन से तत्त्वों के प्रमाण मिलते हैं?
मौर्य साम्राज्य भारत में प्रथम ऐतिहासिक साम्राज्य था। मगध महाजनपद ने अन्य जनपदों पर अधिकार स्थापित कर साम्राज्य का निर्माण किया। साम्राज्य की अवधारणा चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में फलीभूत हुई। बिंदुसार तथा सम्राट्अ शोक इस साम्राज्य के अन्य प्रमुख शासक रहे। मौर्य साम्राज्य के अभिलक्षणों की जानकारी हमें उस काल के ग्रंथों तथा अशोक के अभिलेखों से मिलती है। मौर्य साम्राज्य के प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित प्रकार हैं:
- राजा: मौर्य राज्य भारत में प्रथम सर्वाधिक विस्तृत और शक्तिशाली साम्राज्य था । साम्राज्य में समस्त शक्ति का स्रोत सम्राट था । वास्तव में राजा और राज्य का भेद कम रह गया था। अर्थशास्त्र में लिखा है कि 'राजा ही राज्य' है। वह सर्वाधिकार संपन्न था। वह सर्वोच्च सेनापति व सर्वोच्च न्यायाधीश था।
- मंत्रि परिषद् चाणक्य ने कहा है, ''रथ केवल एक पहिए से नहीं चलता इसलिए राजा को मंत्रियों की नियुक्ति करनी चाहिए और उनकी सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिए । मंत्रि परिषद् के सदस्यों को अमात्य कहा जाता था । सबसे प्रमुख मंत्री थे- प्रधानमंत्री, पुरोहित और सेनापति । समाहर्ता (वित्त मंत्री) और संधिधाता (कोषाध्यक्ष) अन्य महत्त्वपूर्ण मंत्री थे।'
- प्रांतीय प्रशासन-विस्तृत साम्राज्य को पाँच प्रांतों (राजनीतिक केंद्रों) में बाँटा हुआ था।
- उत्तरापथ - इसमें कम्बोज, गांधार, कश्मीर, अफगानिस्तान तथा पंजाब आदि के क्षेत्र शामिल थे। इसकी राजधानी तक्षशिला थी।
- पश्चिमी प्रांत - इसमें काठियावाड़ - गुजरात से लेकर राजपूताना-मालवा आदि के सभी प्रदेश शामिल थे। इसकी राजधानी उज्जयिनी थी।
- दक्षिणपथ-इसमें विंध्याचल से लेकर दक्षिण में मैसूर (कर्नाटक) तक सारा प्रदेश शामिल था। इसकी राजधानी सुबर्णगिरी थी।
- कलिंग- इसमें दक्षिण -पूर्व का उड़ीसा का क्षेत्र शामिल था, जिसमें दक्षिण की ओर जाने के महत्त्वपूर्ण स्थल व समुद्री मार्ग थे। इसकी राजधानी तोशाली थी।
- प्राशी (पूर्वी प्रदेश)-इसमें मगध तथा समस्त उत्तरी भारत का प्रदेश था। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। यह प्रदेश पूर्ण रूप से सम्राट् के नियंत्रण में ही था।
प्रांतों का शासन-प्रबन्ध राजा का प्रतिनिधि (वायसराय) करता था, जिसे कुमार या आर्यपुत्र कहते थे।
- नगर का प्रबन्ध: मैगस्थनीज़ केअनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों की एक परिषद् करती थी, जो 6 उपसमितियों में विभाजित थी।
- पहली समिति - यह शिल्प उद्योगों का निरीक्षण करती थी । शिल्पकारों के अधिकारों की रक्षा भी करती थी।
- दूसरी समिति- यह विदेशी अतिथियों का सत्कार, उनके आवास का प्रबंध तथा उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने का कार्य करती थी। उनकी चिकित्सा का प्रबंध भी करती थी।
- तीसरी समिति - यह जनगणना तथा कर निर्धारण के लिए, जन्म-मृत्यु का ब्यौरा रखती थी।
- चौथी समिति-यह व्यापार की देखभाल करती थी। इसका मुख्य काम तौल के बट्टों तथा माप के पैमानों का निरीक्षण तथा सार्वजनिक बिक्री का आयोजन यानी बाजार लगवाना था।
- पाँचवीं समिति- यह कारखानों और घरों में बनाई गई वस्तुओं के विक्रय का निरीक्षण करती थी। विशेषत: यह ध्यान रखती थी कि व्यापारी नई और पुरानी वस्तुओंको मिलाकर न बेचें। ऐसा करने पर दण्ड की व्यवस्था थी।
- छठी समिति- इसका कार्य बिक्री कर वसूलना था। जो वस्तु जिस कीमत पर बेची जाती थी, उसका दसवां भाग बिक्री कर के रूप में दुकानदार से वसूला जाता था । यह कर न देने पर मृत्यु दण्ड की व्यवस्था थी।
- असमान शासन व्यवस्था: मौर्य साम्राज्य अति विशाल साम्राज्य था । साम्राज्य में शामिल क्षेत्र बड़े विविध और भिन्न-भिन्न प्रकार के थे। इसमें अफगानिस्तान का पहाड़ी क्षेत्र शामिल था, वहीं उड़ीसा जैसा तटवर्ती क्षेत्र भी था। स्पष्ट है कि इतने बड़े तथा विविधताओं से भरपूर साम्राज्य का प्रशासन एक-समान नहीं होगा।
- आवागमन की सुव्यवस्था: साम्राज्य के संचालन के लिए भू-तल और नदी मार्गों से आवागमन होता था। इनकी सुव्यवस्था की जाती थी। राजधानी से प्रांतों तक पहुँचने में भी समय लगता था। अत: मार्ग में ठहरने व खान-पान की व्यवस्था की जाती थी। अशोक ने मार्गों पर सराएँ बनवाईं, कुएँ खुदवाए तथा पेड़ लगवाए।