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राजा किसान और नगर

Question
CBSEHHIHSH12028264

मौर्य काल में विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा कीजिए।

Solution

मौर्य काल में राजत्व का एक नया विचार जोर पकड़ने लगा । यह नया विचार या सिद्धांत दिव्य राजत्व का सिद्धांत था । इस सिद्धांत के तहत राजा अपने आपको ईश्वर से जोड़ने लगे। स्रोतों से जानकारी प्राप्त होती है कि शासकों ने अपने आपको देवता या देवताओं से उत्पन्न बताया । इस माध्यम से वे प्रजा में अपना रुतबा बहुत ऊँचा कर लेना चाहते थे। प्रजा के दिलो-दिमागों में अपना नेतृत्व स्थापित करना चाहते थे। उल्लेखनीय है कि धर्म या धार्मिक रीतियों का प्रयोग कर, स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि या दैवीय उत्पत्ति बताकर प्रजा में राजा के प्रति आस्था पैदा करना शासकों की प्राचीन काल से ही रणनीति रही थी । उत्तरवैदिक काल में शासक अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए यज्ञों का सहारा लेते थे। यह यज्ञ बहुत-से ब्राह्मणों द्वारा लंबे समय तक करवाए जाते थे। इन यज्ञों में राजसूय यज्ञ (राज्यारोहण पर), वाजपेय (शक्तिप्रदपेय) तथा अश्वमेध यज्ञ प्रमुख थे जिसके माध्यम से राजाओं को दैवीय शक्तियाँ प्राप्त होती थीं। मौर्य शासक अशोक ने भी दैवीय सिद्धांत का सहारा लिया । वह अपने आपको 'देवानाम्प्रियदर्शी' (देवों का प्यारा) की उपाधि से विभूषित करता है। मौर्योतर काल में कुषाण शासकों ने भी बड़ी-बड़ी उपाधियों को धारण किया तथा दिव्य राजत्व को अपनाया । कुषाणों ने मध्य एशिया से मध्य भारत तक के विशाल भू-क्षेत्र पर लगभग प्रथम सदी ई०पू० से प्रथम ई० सदी तक शासन किया। उनके द्वारा प्रचलित दैवत्व की परिकल्पना उनके सिक्कों और मूर्तियों से बेहतर रूप में अभिव्यक्त होती है।
मथुरा (उत्तरप्रदेश) के समीप माट के एक देवस्थान से स्थापित की गई। कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
इसी प्रकार की मूर्तियाँ अफगानिस्तान में एक देवस्थान से प्राप्त हुई हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि देवस्थानों में विशाल मूर्तियों की स्थापना का विशेष उद्देश्य रहा होगा । वस्तुत: वे अपने आपको 'देवतुल्य' प्रस्तुत करना चाहते होंगे। उल्लेखनीय है कि कुषाण शासकों ने भारतीय धर्मों (शैव, बौद्ध, वैष्णव आदि) को अपनाया तथा इन धर्म के प्रतीकों को अपने सिक्कों पर भी खुदवाया। विम ने अपने सिक्कों पर शिव की आकृति, नंदी और त्रिशूल आदि का प्रयोग किया। कुषाण शासकों ने 'देवपुत्र' की उपाधि धारण की। ऐसा करने की प्रेरणा कुषाणों को चीनी शासकों से मिली होगी जो स्वयं को 'स्वर्गपुत्र' मानते थे।

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