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राजा किसान और नगर

Question
CBSEHHIHSH12028265

वर्णित काल में कृषि के तौर-तरीकों में किस हद तक परिवर्तन हुए?

Solution

600 ई०पू० से 600 ई० के लंबे कालखंड में भारत में अनेक परिवर्तन आए। इन परिवर्तनों का प्रमुख आधार कृषि प्रणाली का विकसित होना था। इस काल में शासक अधिक मात्रा में कर वसूल करना चाहते हैं। करों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए किसान उपज बढ़ाने के उपाय ढूँढने लगे। शासकों ने भी इसमें योगदान दिया। उन्होंने सिंचाई कार्यों को बढ़ावा दिया। फलत: कृषि के तौर-तरीकों में निम्नलिखित बदलाव आए:

  1. सिंचाई कार्य- मौर्य शासकों ने खेती-बाड़ी को बढ़ाने की ओर विशेष ध्यान दिया। राज्य किसानों के लिए सिंचाई व्यवस्था/जल वितरण का कार्य करता था । मैगस्थनीज ने 'इंडिका' में लिखा है कि मिस्र की तरह मौर्य राज्य में भी सरकारी अधिकारी जमीन की पैमाइश करते थे। नहरों का निरीक्षण करते थे जिनसे होकर पानी छोटी नहरों में पहुँचता था। जूनागढ़ अभिलेख से पता चलता है कि चंद्रगुप्त मौर्य के एक गवर्नर पुष्यगुप्त ने सौराष्ट्र (गुजरात) में गिरनार के पास सुदर्शन झील पर एक बाँध बनवाया था जो सिंचाई के काम आता था। पाँचवीं सदी में स्कंदगुप्त ने भी इसी झील का जीर्णोद्धार करवाया था । कुँओं व तालाबों से सिंचाई कर कृषि उपज बढ़ाई जाती थी। नहरों का निर्माण शासक या संपन्न लोग ही करवा पाते थे। परंतु कुओं-तालाबों के निर्माण में समुदाय तथा व्यक्तिगत प्रयास भी प्रमुख भूमिका निभाते थे।
  2. हल से खेती-कृषि उपज बढ़ाने का एक उपाय हल का-प्रचलन था। अधिक बरसात वाले क्षेत्रों में हल के लोहे के फाल' का प्रयोग प्रचलन में आया । इसकी मदद से मिट्टी को गहराई तक जोता जाने लगा। उल्लेखनीय है कि गंगा व कावेरी की घाटियों के उपजाऊ क्षेत्र में छठी सदी ई० पू० से लोहे वाले फाल सहित हल का प्रयोग होने लगा था । प्राचीन पालि ग्रंथों में कृषि केलिए लोहे के औजारों का उल्लेख है। अष्टाध्यायी में भी आयोविकर कुशि (लोहे की फाल) का उल्लेख है। उत्तरी भारत में इस संबंध में कुछ पुरातात्विक साक्ष्य भी मिलते हैं। इसका परिणाम कृषि क्षेत्र में वृद्धि, कृषक बस्तियों का प्रसार और उत्पादन का बढ़ना है, जिसका लाभ राज्य को भी मिला।
  3. धान रोपण की विधि की शुरुआत- कृषि क्षेत्र में पैदावार बढ़ाने में एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपाय धान रोपण की शुरुआत है। भारत में धान रोपण की शुरुआत 500 ई०पू० में स्वीकार की जाती है। धान लगाने की प्रक्रिया के लिए रोपण और रोपेति जैसे शब्दोंका प्रयोग किया गया है। सालि का तात्पर्य उखाड़कर लगाए जाने वाली जाड़े की फसलों से है। पालि ग्रंथों में इस प्रक्रिया को बीजानि पतितापेति के नाम से जाना जाता है। ज्ञातधर्म कोष में प्राकृत वाक्यांश उक्साय निहाए का अर्थ है ''उखाड़ना और प्रतिरोपित करना'' प्रतिरोपण की इस प्रणाली से पैदावार बड़ी। इससे गाँवों में परिवर्तन आया।

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