‘दत्ता जी राव की सहायता के बिना ‘जूझ’ कहानी का ‘मैं’ पात्र वह सब नहीं या सकता जो उसे मिला।’ टिप्पणी कीजिए।
अथवा
कहानीकार के शिक्षित होने के संघर्ष में दत्ता जी राव देसाई के योगदान को ‘जूझ ‘ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
‘मैं’ अर्थात् लेखक पाठशाला जाने के लिए तड़पता है। उसे उसके पिता ने स्कूल जाने से रोक दिया है। पिता को मनाने में लेखक व उसकी माँ भी सफल नहीं हो पाते। उनके लिए गाँव के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति दत्ता साहब ही अंतिम उपाय बचे थे। लेखक और उसकी माँ उनसे सहायता लेने के लिए उनके पास जाते हैं। उनसे दबाव डलवाने के लिए वे झूठ का भी सहारा लेते हैं। दत्ताजी राव के कहने पर लेखक के पिता उसे पड़ाने के लिए तैयार हो जाते हैं। पाठशाला में लेखक अन्य बालकों के संपर्क में आता है। मराठी के एक अच्छे अध्यापक के संपर्क में आकर वह कविता रचने लगता है। इस प्रकार लेखक दत्ताजी राव की सहायता के बिना वह सब कुछ नहीं पा सकता था, जो उसे मिला।