भक्तिन के जीवन का दूसरा परिच्छेद कैसा रहा? जिठानियों के बेटे खाने को क्या पाते थे?
भक्तिन के जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दु:ख ही अधिक रहा। जब उसने गेहुएँ रंग और बटिया जैसे मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। यह उचित भी था क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चुकी थी और दोनों जिठानियाँ काक-भुशंडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड्कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हो गया था।
जिठानियाँ बैठकर लोक-चर्चा करतीं और उनके कलूटे लड़के धूल उड़ाते; वह मट्ठा फेरती, कूटती पीसती, राँधती और उसकी नन्ही लड़कियाँ गोबर उठातीं, कडे पाथतीं। जिठानियाँ अपने भात पर सफेद राब रखकर गाढ़ा दूध डालतीं और अपने लड़कों को औटते हुए दूध पर से मलाई उतारकर खिलातीं। वह काले गुड की डली के साथ कठौती में मट्ठा पाती और उसकी लड़कियाँ चने-बाजारे की घुघरी चबातीं।