रस का अक्षयपात्र से कवि ने रचनाकर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है?
रस का अक्षयपात्र-एक ऐसा पात्र जिसका रस कभी समाप्त न होता हो। कभी नष्ट न होने वाला। रस का अक्षयपात्र कभी खाली नहीं होता। रस जितना बाँटा जाता है, उतना ही भरता है। कविता का रस चिरकाल तक आनंद देता है। यह रचनाकार्य की शाश्वतता को दर्शाता है।
इस कथन के माध्यम से कवि ने रचनाकर्म की इन विशेषताओं की ओर इंगित किया है-
- साहित्यिक रचना का रस अलौकिक होता है।
- साहित्य का रस कभी चुकता नहीं अर्थात् समाप्त नहीं होता।
- साहित्य की रस- धारा असंख्य पाठकों को रसानुभूति कराती रहती है और कम न होकर बढ़ती है।
- उत्तम साहित्य कालजयी होता है।