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शमशेर बहादुर सिंह

Question
CBSEENHN12026234

‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथन को स्पष्ट कीजिए।

Solution

‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन आकाश की पवित्रता के लिए कवि ने उसे ‘राख से लीपा हुआ चौका’ कहा है। जिस प्रकार चौके को राख से लीपकर पवित्र किया जाता है, उसी प्रकार प्रात:कालीन उषा भी पवित्र है।

आकाश की निर्मलता के लिए कवि ने ‘काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’ का प्रयोग किया है। जिस प्रकार काली सिल को लाल केसर से धोने से उसका कालापन समाप्त हो जाता है और वह स्वच्छ निर्मल दिखाई देती है, उसी प्रकार उषा भी निर्मल, स्वच्छ है। उज्ज्वलता के लिए कवि ने ‘नील जल में किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो’ कहा है। जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीरी कांतिमान और सुंदर (उज्ज्वल) लगता है, उसी प्रकार भोर की लाली में (सूर्योदय में) आकाश की नीलिमा कांतिमान और सुंदर लगती है।

Some More Questions From शमशेर बहादुर सिंह Chapter

कवि काली सिल और लाल केसर के माध्यम से क्या कहना चाहता है?

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने -स्पष्ट करो।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें

नील जल में या

किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे

हिल रही हो।

और .........

जादू टूटता है इस उषा का अब:

सूर्योदय हो रहा है।

कवि ने नीले जल में झिलमिलाते गौर वर्ण शरीर किसे कहा है?

उषा का जादू कब टूटता है?

इस काव्यांश में किस स्थिति का चित्रण हुआ है?

कवि की कल्पनाशीलता पर प्रकाश डालिए।

कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा, कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

नई कविता में कोष्ठक, विराम-चिन्हऔर पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।

अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।