-->

शमशेर बहादुर सिंह

Question
CBSEENHN12026243

निम्नलिखित काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए-
नील जल में या
किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे
हिल रही हो।
और-
जादू टूटता है इस उषा का अब:
सुर्योदय हो रहा है।

1. कवि ने इस काव्याशं में किसकी झलक प्रस्तुत की है?
2. नीले जल में कवि की कल्पना को स्पष्ट करो।
3. काव्याशं के शिल्प-सौदंर्य पर प्रकाश डालिए।


Solution

1. इन पंक्तियों में सूर्योदय की वेला के प्राकृतिक सौंदर्य की मनोहारी झलक प्रस्तुत की गई है। आकाश में क्षण-क्षण परिवर्तित होते सौंदर्य के रूप-चित्रण में कवि को सफलता प्राप्त हुई है।
2. कभी लगता है कि नीले जल वाले सरोवर में किसी गोरी नायिका का शरीर झिलमिला रहा है। कवि की कल्पना अत्यंत नवीन है। सूर्योदय होने पर उषा का यह जादू टूटने लगता है।
3. कवि ने उषाकालीन वातावरण को हमारी आँखों के सामने साकार रूप में उपस्थित कर दिया है। ‘गोर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो’ में उपमा अलंकार है। उत्प्रेक्षा और मानवीकरण अलंकारो का प्रयोग है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।

Some More Questions From शमशेर बहादुर सिंह Chapter

कवि ने भोर के नभ की तुलना किससे की है और क्यों?

कवि काली सिल और लाल केसर के माध्यम से क्या कहना चाहता है?

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने -स्पष्ट करो।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें

नील जल में या

किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे

हिल रही हो।

और .........

जादू टूटता है इस उषा का अब:

सूर्योदय हो रहा है।

कवि ने नीले जल में झिलमिलाते गौर वर्ण शरीर किसे कहा है?

उषा का जादू कब टूटता है?

इस काव्यांश में किस स्थिति का चित्रण हुआ है?

कवि की कल्पनाशीलता पर प्रकाश डालिए।

कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा, कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

नई कविता में कोष्ठक, विराम-चिन्हऔर पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।