‘कैमरे में बंद अपाहिज’ करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है’-विचार कीजिए।
यह कथन बिल्कुल सच है कि यह कविता करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है। ऊपर से तो करुणा दिखाई देती है कि संचालक महोदय अपंग व्यक्ति के प्रति सहानुभूति दर्शा रहा है, पर उसका वास्तविक उद्देश्य कुछ और ही होता है। वह तो उसकी अपंगता बेचना चाहता है। उसे एक रोचक कार्यक्रम चाहिए जिसे दिखाकर वह दर्शकों की वाह-वाही लूट सके। उसे अपंग व्यक्ति से कुछ लेना-देना नहीं है। यह कविता यह बताती है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले इस प्रकार के अधिकांश कार्यक्रम कारोबारी दबाव के तहत संवेदनशील होने का ढोग भर करते हैं। कई बार उनके प्रश्न क्रूरता की सीमा तक पहुँच जाते हैं। अत: यह कहना उचित ही है कि ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है।