प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?
हो जाय न पथ में रात कहींमंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ हिंदीकाव्य-जगत में हालावादी कवि हहरिवंशरायबच्चन के गीत ‘एक गीत’ से अवतरित है। उनका यह गीत उनके काव्य- सग्रह ‘निशा निमत्रंण’ में संकलित है। अपनी पहली पत्नी श्यामा की अकाल मृत्यु से खिन्न कवि एक ललंबेअतंराल कै बाद पुन: कविता-कर्म की ओर प्रवृत होता है और पत्नी-बिछोह का दर्द अपनी कविताओं में उउँडेलदेता है। ‘निशा’ शब्द प्रकारांतर से ‘श्यामा’ (पत्नी) का ही अर्थ-व्यंजक है। कवि को लगता है कि उसकी पत्नी इस जगत से दूर जाकर, पारलौकिक जगत से उसे आमत्रित कर रही है। प्रस्तुत कविता में कवि इसी अपरूप प्रेरणा को बल देते हुए कहता है कि काल की गति बड़ी विलक्षण है।
व्याख्या: कवि कहता है कि यह पता नहीं चल पाता कि दिन कब ढल गया। रात्रि गहन और लंबी है। पथिक कौ भय है कि कही जीवन-पथ में ही काल-रात्रि न आ जाए। दिन भर का थका-माँदा पथिक रात के अंधकार के, विषाद के आने से पहले अपनी मंजिल पर पहुँच जाना चाहता है। कवि को लगता है कि दिन बहुत जल्दी ढल रहा है। कुठा और निराशा से घिरे व्यक्ति के जीवन में दिन भी जल्दी जल्दी ढल जाता है। कहीं जीवन-पथ पर चलते चलते रात न हो जाए इसलिए सूर्य के प्रकाश को क्षीण होते देखकर दिन भर की यात्रा से थका हुआ यात्री तेजी से अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाता है। यह सोचकर कि अब मजिल दूर नही है, उसके पैरों की गति और भी तेज हो जाती है अँधेरा होने पर उसे अपनी यात्रा बीच में ही रोकनी पड़ेगी और वह गंतव्य तक नहीं पहुँच जाएगा। यही कारण है कि शरीर थका होने पर भी उसका मन उल्लास, आशा और उमंग से भरा हैं। और उसके चरणों की गति स्वत: तेज हो गई है।
1. मनुष्य के मन की कुंठा को अभिव्यक्ति मिली है।
2. समय की परिवर्तनशीलता और गतिशील होने को दर्शाया गया है।
3. जीवन को बिंब के रूप में उभारा है।
4. ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
5. भाषा सहज, सरल एवं भावानुकूल है।