बच्चन द्वारा रचित कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है, का प्रतिपाद्य लिखिए।
यह कविता बच्चन के काव्य-संग्रह ‘एक गीत’ में संकलित है। अपनी पहली पत्नी श्यामा की अकाल मृत्यु से खिन्न कवि एक लंबे अंतराल के बाद पुन: कवि-कर्म की ओर प्रवृत्त होता है और अपनी पत्नी के बिछोह का दर्द अपनी कविताओं में उँडेल देता है। यह कविता पत्नी की अकाल मृत्यु से उत्पन्न दु:ख, वेदना, पीड़ा और एकाकीपन के बोध की अभिव्यक्ति है। कवि को लगता है कि उसकी पत्नी पारलौकिक जगत से उसे आमंत्रित कर रही है, दिशा-बोध दे रही है। वह उसे कर्म-पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है।
इस कविता में कवि कहता है कि काल की गति बड़ी ही विलक्षण है। पता ही नहीं चल पाता कि दिन कब ढल गया। यात्री के मन में घर पहुँचने का उत्साह है अत: वह तेजी से कदम बढ़ाता है। रात्रि गहन और लंबी है। उसे भय है कि कहीं जीवन-पथ में ही काल-रात्रि न आ जाए। अत: दिन भर का थका-माँदा पथिक रात के अंधकार के आने से पहले ही अपनी मंजिल पर पहुँच जाना चाहता है।
कवि देखता है कि पक्षियों को भी संध्या के समय अपने-अपने घोंसलों में पहुँचने की जल्दी है। उसे घोंसलों में प्रतीक्षारत अपने शावकों के पास पहुँचने की आतुरता है। अत: उनके पंखों में ताजगी और सस्फूर्तउड़ान का अनुभव है जो उसे दिन ढलने से पहले ही घोंसलों में पहुँचने का उपक्रम करने को प्रेरित करता है।
लेकिन कवि स्वयं निराश है। उसके घर में ऐसा कोई नहीं है जो उसकी प्रतीक्षा कर रहा हो, कोई उससे मिलने के लिए व्याकुल नहीं है, फिर भला वह घर लौटने की जल्दबाजी क्यों करे! एक आलस्य एवं विषाद का अहसास उसे घेर लेता है। उसका मन कुंठा से भर जाता है तब वह अपनी कर्म-गति में शिथिलता का अनुभव करने लगता है। उसका हृदय मृत पत्नी को याद करके विह्वल हो उठता है। वह देखता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढल जाएगा, फिर पूरी रात उसे पत्नी की स्मृति मथने लगेगी। इसी कष्टकारक विछोह की आत्मस्मृतिमूलक अभिव्यंजना ही इस कविता में व्यक्त हुई है। कवि के आत्मपीड़न की अभिव्यक्ति ही इस कविता का प्रतिपाद्य है।