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स्पीति में बारिश

Question
CBSEENHN11012420

कृष्णनाथ के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनका साहित्यिक परिचय दीजिए।

Solution

साहित्यकार कृष्णनाथ का जन्म 1934 ई. में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ।

उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उनका झुकाव समाजवादी आदोलन और बौद्ध-दर्शन की ओर हो गया। वे समाजवादी आदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं तथा लोहिया एवं जयप्रकाश नारायण के साथ काफी समय बिताया। बौद्ध-दर्शन में उनकी गहरी पैठ है। वे अर्थशास्त्र के विद्ववान हैं और काशी विद्यापीठ में इसी विषय के प्रोफेसर भी रहे। अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं पर उनका अधिकार है और दोनों की पत्रकारिता से भी उनका जुड़ाव रहा। हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका कल्पना के संपादक-मंडल में वे कई साल रहे और अंग्रेजी के मैनकाइंड का कुछ वर्षों तक संपादन भी किया। राजनीति, पत्रकारिता और अध्यापन को प्रक्रिया से गुजरते-गुजरते वै बौद्ध-दर्शन की ओर मुड़े। भारतीय और तिब्बती आचार्यों के साथ बैठकर उन्होंने नागार्जुन के दर्शन और वज्रयानी परंपरा का अध्ययन शुरू किया। भारतीय चिंतक जे. कृष्णामूर्ति ने जब बौद्ध विद्वानों के साथ चिंतन-मनन शुरू किया तो कृष्णनाथ भी उसमें शामिल शे  बौद्ध-दर्शन पर कृष्णनाथ जी ने काफी कुछ लिखा है।

कृष्णनाथ ने हिमालय की यात्रा के दौरान उन स्थानों को खोजा, जिनका संबंध बौद्ध-दर्शन और भारतीय मिथकों से है। यहीं उनकी यात्रा--वृत्तांत की अनूठी विधा चमककर सामने आई। वे केवल पर्यटक की तरह यात्रा नहीं करते, बल्कि तत्त्ववेत्ता की तरह वहाँ का अध्ययन करते चलते हैं। वे उस स्थान से जुड़ी समस्त स्मृतियों को उघाड़कर सामने लाते हैं। उनके यात्रा-वृत्तांतों में नवीनता है। प्रमुख रचनाएँ- लद्दाख में राग-विराग? किन्नर धर्मलोक, स्पीति में बारिश, पृथ्वी-परिक्रमा, हिमालय यात्रा, अरुणाचल यात्रा, बौद्ध निबंधावली, हिन्दी और अंग्रेजी में कई पुस्तकों का संपादन।

सम्मान-लोहिया सम्मान।

Some More Questions From स्पीति में बारिश Chapter

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
स्पीति हिमालय प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक ही है। इनमें बहुत योगायोग नहीं है। ऊँचे दरों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी कम रहा है। अलंध्य भूगोल यहां इतिहास का एक बड़ा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल--स्पीति का योग प्राय: ‘वायरलेस सेट’ के जरिए, जो केलंग और काजा के बीच खड़कता रहता है। फिर भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं कर रहा है? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला है? लेकिन सिवाय वारयरलेस सेट पर संदेश भेजने के वह कर भी क्या सकता है? वसंत में भी 170 मील जाना-आना कठिन है। शीत में प्राय: असंभव है।
1. स्पीति कहाँ स्थित है? इसका इतिहास में बहुत कम उल्लेख क्यों है?
2. अब किस क्षेत्र में सुधार हुआ है? इससे केलग के बादशाह को क्या भय लगा रहता है?
3. यहाँ के मौसम का आवागमन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
लाहुल-स्पीति का प्रशासन ब्रिटिश राज से भारत को जस का तस मिला। अंग्रेजों को यह 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाबसिंह के जरिए मिला। अंग्रेज इनके जरिए पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में प्रवेश चाहते थे। तिब्बत में अंग्रेजी साम्राज्य के दूरगामी हित भी थे। जो भी हो, 1846 में कुल्लु लाहुल, स्पीति ब्रिटिश अधीनता में आए। पहले सुपरिंटेंडेंट के अधीन थे। फिर 1847 में वे कांगड़ा जिले में शरीक कर दिए गए। लद्दाख मंडल के दिनों में भी स्पीति का शासन एक नोनो द्वारा चलाया जाता था। ब्रिटिश भारत में भी कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से यह नोनो कार्य करता रहा। इसका अधिकार- क्षेत्र केवल द्वितीय दरजे के मजिस्ट्रेट के बराबर था। लेकिन स्पीति के लोग इसे अपना राजा ही मानते थे। राजा नहीं है तो दमयंती जी को रानी मानते हैं।
1. लाहुल स्पीति का शासन किसको, किससे कब मिला?
2. अंग्रेज स्पीति के जरिए क्या लाभ उठाना चाहते थे? उनका कार्य कौन करता था?
3. स्पीति के लोग किसे राजा-रानी मानते थे?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
इस व्यथा की कथा इन पहाड़ों की ऊँचाई के आँकडों में नहीं कही जा सकती। फिर भी जो सुंदरता को -इंच में मापने के अभ्यासी हैं वे भला पहाड़ को कैसे बख्श सकते हैं। वे यह जान लें कि स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। जिसे वे हिमालय जानते हैं-स्केटिंग, सौंदर्य प्रतियोगिता, आइसक्रीम और खोले- मठुरे का कुल्लू-मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, श्रीनगर वह सब हिमालय नहीं है। हिमालय का तलुआ है। शिवालिक या पीरपंचाल या ऐसा ही कुछ उसका नाम है यह तलहटी है। रोहतांग जोत के पार मध्य हिमालय है। इसमें ही लाहुल-स्पीति की घाटियां हैं। इन घाटियों की औसत ऊंचाई नापी गई है। श्री कनिंघम के अनुसार लाहुल की समुद्र की सतह से ऊंचाई 10,235 फीट है। स्पीति की 12,986 फीट है। यानी लगभग 13,000 फीट तो औसत ऊंचाई है।
1. स्पीति के बारे में क्या जानना आवश्यक है?
2. क्या हिमालय नहीं है?
3. लाहुल-स्पीति की घाटियाँ कहाँ हैं? इनकी ऊँचाई क्या है?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
मध्य हिमालय की जो श्रेणियां स्पीति को घेरे हुए हैं उनमें से जो उत्तर में हैं उसे बारालाचा श्रेणियों का विस्तार समझें। बारालाचा दर्रे की ऊँचाई का अनुमान 16,221 फीट से लगाकर 16,500 फीट का लगाया गया है इस पर्वत- श्रेणी में दो चोटियों की ऊँचाई 21,000 फीट से अधिक है। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। इसका क्या अर्थ है? कहीं यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर तो नहीं है? ‘ओं मणि पसे हुं’ इनका बीज मंत्र है। इसका बड़ा माहात्म्य है। इसे संक्षेप में माने कहते हैं। कहीं इस श्रेणी का नाम इस माने के नाम पर तो नहीं है? अगर नहीं है तो करने जैसा है। यहां इन पहाड़ियों में माने का इतना बाप हुआ है कि यह नाम उन श्रेणियों को दे डालना ही सहज हैं।
1. बारालाचा श्रेणियों के बारे में क्या बताया गया है?
2. दक्षिण की श्रेणी क्या कहलाती है?
3. लेखक को माने नाम पड़ने का क्या कारण प्रतीत होता है?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
मैं ऊंचाई के माप के चक्कर में नहीं हूं। न इनसे होड़ लगाने के पक्ष में हूं। वह एक बार लोसर में जो कर लिया सो बस है। इन ऊंचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। हां, कभी-कभी उनका मान-मर्दन करना मर्द और औरत की शान है। मैं सोचता हूँ कि देश और दुनिया के मैदानों से और पहाडों से युवक-युवतियां आएं और पहले तो स्वयं अपने अहंकार को गलाएँ-फिर इन चोटियों के अहंकार को चूर करें। उस आनंद का अनुभव करें जो साहस और कूवत से यौवन में ही प्राप्त होता है। अहंकार का ही मामला नहीं है। ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं। युवक-युवतियां किलोल करें तो यह भी हर्षित हों। अभी तो इन पर स्पीति का आर्तनाद जमा हुआ है। वह इस युवा अट्टहास की गरमी से कुछ तो पिघले। यह एक युवा निमंत्रण है।
1. लेखक क्या नहीं चाहता और क्यों?
2. लेखक क्या चाहता है? क्या?
3. माने की चोटियों की उदासी क्यों है और इसे कैसे दूर किया जा सकता है?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
यह पावस यहां नहीं पहुंचता है। कालिदास की वर्षा की शोभा विंध्याचल में है। हिमालय की इन मध्य की घाटियों में नहीं है। मैं नहीं चानजानता इसका लालित्य लाहुल-स्पीति के नर-नारी समझ भी पाएंगे या नहीं। वर्षा उनके संवेदन का अंग नहीं है। वह यह जानते नहीं हैं कि ‘बरसात में नदियां बहती हैं, बादल बरसते, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे- भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछुड़ी हुई स्त्रियां रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर चुप मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं।’

अगर कालिदास यहाँ आकर कहें कि ‘अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करे’, तो शायद स्पीति के नर-नारी यही पूछेंगे कि यह देवता कौन है? कहाँ रहता है? यहाँ क्यों नहीं आता?
1. कहाँ पावस नहीं पहुँचता? इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
2. यहाँ के लोग क्या नहीं जानते?
3. कालिदास आकर क्या कहेगे?

इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता। क्यों?

स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते हैं?

लेखक माने श्रेणी का नाम बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर करने के पक्ष में क्यों हैं?

ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं - इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से क्या आग्रह किया है?