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अक्क महादेवी

Question
CBSEENHN11012320

वचनों की सप्रसंग व्याख्या करें:

हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का

Solution

‍‍रस्तुत वचन शैव आंदोलन से जुड़ी कवयित्री अक्क महादेवी द्वारा रचित है। कर्नाटक में जन्मी इस कवयित्री ने चन्न मल्लिकार्जुन अर्थात् शिव की आराधना की। यह ‘वचन’ मूल रूप से अंग्रेजी में रचा गया है और इसका हिन्दी अनुवाद केदारनाथ सिंह ने किया है। इस वचन में कवयित्री इंद्रियों पर नियत्रंण का सदेश देती जान पड़ती है। उसका ढंग उपदेशात्मक न होकर प्रेमभरा मनुहार है।
व्याख्या-कवयित्री भूख से न मचलने के लिए कहती है और प्यास से कहती है कि तू तड़प मत। भूख-प्यास मचल-तड़प कर व्यक्ति की साधना में बाधा पहुँचाती हैं, अत: साधक को भूख-प्यास पर नियंत्रण करना आवश्यक है। नींद भी व्यक्ति को सताती है और क्रोध की प्रवृत्ति भी उसके मन में उथल-पुथल मचाती है। इनसे बचना साधक के लिए आवश्यक है। लोभ व्यक्ति को ललचाकर चित कर देता है। नशा भी व्यक्ति को उन्मत्त बना देता है। ईर्ष्या की भावना व्यक्ति को जलाती है। कवयित्री इससे बचने के लिए कहती है। कवयित्री जड़ और चेतन प्राणियों को सावधान करते हुए कहती है कि वह भगवान शिव का संदेश लेकर आई है। हमें इस पावन अवसर को चूकना नहीं चाहिए।
भावार्थ यह है कि हमें प्रभु भक्ति के लिए अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना आवश्यक है। व्यक्ति भूख-प्यास, नींद, क्रोध, मोह-मद, ईर्ष्या आदि कुप्रवृत्तियों के वशीभूत होकर भगवान शिव से दूर होता चला जाता है। अत: इन पर नियंत्रण आवश्यक है।

Some More Questions From अक्क महादेवी Chapter

अक्क महादेवी का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।

वचनों की सप्रसंग व्याख्या करें:

हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का

वचनों की सप्रसंग व्याख्या करें :

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

लक्ष्य-प्राप्ति में इंद्रीयाँ बाधक होती हैं-इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।

‘ओ चराचर! मत चूक अवसर’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है? ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।

‘अपना घर’ से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?

दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों?

क्या अक्क महादेवी को ‘कन्नड़ की मीरा’ कहा जा सकता है? चर्चा करें।

हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का 

दिये गये वचन का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।