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अक्क महादेवी

Question
CBSEENHN11012326

वचनों की सप्रसंग व्याख्या करें :

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

Solution

प्रसंग- प्रस्तुत ‘वचन’ कर्नाटक की प्रसिद्ध भक्त कवयित्री अक्का महादेवी द्वारा रचित है। यह वचन मूल रूप से अग्रेजी में लिखा गया है और इसका हिन्दी में अनुवाद केदारनाथ सिंह ने किया है। इस वचन में कवयित्री ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव व्यक्त करती है। वह भौतिक वस्तुओं के प्रयोग से स्वयं को बचाए रखना चाहती है। वह अपने ‘अहं’ को गलाना चाहती है ताकि वह निस्पृह स्थिति में आ जाए।

व्याख्या-कवयित्री अपने प्रभु को जूही के फूल के समान कोमल बताती है। लेकिन कठोर एवं अभावग्रस्त जीवन बिताने की कामना करती है। वह चाहती है कि उसके ईश्वर उससे भीख मँगवाने जैसा तुच्छ कार्य तक करवाएँ। उसे इसमें कोई ऐतराज नहीं होगा। वह भगवान से ऐसा कुछ चमत्कार करने को कहती है जिससे वह अपने घर को भूल जाए अर्थात् घर की मोह-ममता उसे सता न सके।’ वह इस स्थिति के लिए भी तैयार है कि जब वह दूसरों से भीख पाने के लिए अपनी झोली फैलाए और उसे भीख मिले ही नहीं। यदि? कोई मुझे कुछ देना भी चाहे तो वह मुझ तक न पहुँचकर बीच में ही गिर जाए। यदि मैं उस नीचे गिरी वस्तु को उठाने के लिए नीचे झुकूँ तो अचानक कोई कुत्ता आकर झपट्टा मार दे और उस वस्तु को मुझसे छीनकर ले भागे।

भाव यह है कि कवयित्री भौतिक वस्तुओं के अभाव को सहर्ष झेलने को तैयार है। वह तो केवल ईश्वर की अनुकम्पा की कामना करती है। उपर्युक्त वर्णित स्थितियाँ उसके अहंकार को पूरी तरह नष्ट कर देंगी, अत: वरण करने योग्य हैं।

Some More Questions From अक्क महादेवी Chapter

‘अपना घर’ से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?

दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों?

क्या अक्क महादेवी को ‘कन्नड़ की मीरा’ कहा जा सकता है? चर्चा करें।

हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का 

दिये गये वचन का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
 

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

दिये गये वचन का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

इन काव्य-पंक्तियों में व्यक्ति को लोभ, मद, मोह तथा ईर्ष्या की भावना त्यागने का संदेश दिया गया है। ये वासनाएँ व्यक्ति को ईश्वर-प्राप्ति के लक्ष्य से भटकाती हैं, अत: त्याज्य हैं। कवयित्री अवसर न चूकने की बात भी कहती है। कवयित्री भगवान शिव का संदेश लोगों को बताती है।

-‘मद मत कर मदहोश’ में ‘म’ वर्ण की आवृत्ति है, अत: अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

-‘चन्न मल्लिकार्जुन’ शब्द का प्रयोग ‘शिव’ के लिए हुआ है। इससे कवयित्री का शैव-प्रेम प्रकट होता है।

-भाषा सरल एवं सुबोध है।

निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख