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अक्क महादेवी

Question
CBSEENHN11012340

इन काव्य-पंक्तियों में व्यक्ति को लोभ, मद, मोह तथा ईर्ष्या की भावना त्यागने का संदेश दिया गया है। ये वासनाएँ व्यक्ति को ईश्वर-प्राप्ति के लक्ष्य से भटकाती हैं, अत: त्याज्य हैं। कवयित्री अवसर न चूकने की बात भी कहती है। कवयित्री भगवान शिव का संदेश लोगों को बताती है।

-‘मद मत कर मदहोश’ में ‘म’ वर्ण की आवृत्ति है, अत: अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

-‘चन्न मल्लिकार्जुन’ शब्द का प्रयोग ‘शिव’ के लिए हुआ है। इससे कवयित्री का शैव-प्रेम प्रकट होता है।

-भाषा सरल एवं सुबोध है।

Solution

Some More Questions From अक्क महादेवी Chapter

अक्क महादेवी का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।

वचनों की सप्रसंग व्याख्या करें:

हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का

वचनों की सप्रसंग व्याख्या करें :

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

लक्ष्य-प्राप्ति में इंद्रीयाँ बाधक होती हैं-इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।

‘ओ चराचर! मत चूक अवसर’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है? ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।

‘अपना घर’ से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?

दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों?

क्या अक्क महादेवी को ‘कन्नड़ की मीरा’ कहा जा सकता है? चर्चा करें।

हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का 

दिये गये वचन का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।