मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना-बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना-बुरा तो है
पर सबसे खतरनाक नहीं होता
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना-बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ना-बुरा तो है
मुट्ठियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना-बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता
प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं पंजाबी कवि पाश द्वारा रचित ‘सबसे खतरनाक’ से अवतरित है। यह कविता मूल-रूप से पंजाबी में रची गई है। इसका हिन्दी में अनुवाद चमनलाल ने किया है। इस कविता में कवि ने दिनो-दिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विद्रूपताओं के साथ चित्रित किया है। कवि तटस्थ रहने के प्रति अपनी असहमति जताता है।
व्याख्या-कवि व्यंग्यात्मक ढंग से पुलिस की कार्य-प्रणाली का उल्लेख करते हुए कहता है कि पुलिस की मार खतरनाक तो होती है, पर सबसे अधिक खतरनाक नहीं होती। मेहनत की कमाई का लुट जाना भी इसी श्रेणी में आता है। किसी के साथ गद्दारी करना अथवा लोभवश मुट्ठी गरम करना भी खतरनाक है, पर उतना खतरनाक नहीं जितना अन्य बातें।
इसी प्रकार बिना किसी कारण के पुलिस पकड़ ले जाए तो यह बुरी बात अवश्य है। जब हम सहमकर चुप हो जाते हैं और प्रतिरोध नहीं करते, तब भी बुरा होता है, पर यह स्थिति भी सबसे ज्यादा खतरनाक नहीं होती।
कई अन्य बातें भी बुरी हैं, जैसे- धोखे के शोर-शराबे में सच का गला घोंट देना और चुप रह जाना बुरा है। जुगनू के प्रकाश में पढ़ना भी बुरा है। इसी प्रकार विवशता प्रकट करते हुए अपनी मुट्ठियां भींचकर रह जाना और वक्त को निकालते जाना भी बुरी बात है। यद्यपि ये सब बातें बुरी हैं, पर सबसे अधिक खतरनाक नहीं है। और कई बातें ऐसी हैं जो बहुत ज्यादा खतरनाक हैं। उनसे बचा जाना चाहिए।
विशेष- 1. ‘बैठे बिठाए’ में अनुप्रास अलंकार है।
2. सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग है।