निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
हे सजीले हरे सावन
हे कि मेरे पुण्य-पावन
तुम बरस लो, वे न बरसें
पाँचवें को वे न तरसे।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने खड़ी बोली की छंदमुक्त कविता का प्रयोग किया है। तत्सम, तद्भव शब्दावली के साथ स्थानीय शब्दों के प्रयोग सार्थक रूप से हुए हैं। कवि ने सावन के लिए ‘सजीले’ और ‘हरे’ विशेषणों के साथ ‘पुण्य-पावन’ पदावली का भी प्रयोग किया है। ‘पुण्य-पावन’ में अनुप्रास और ‘बरसने’ में यमक अलंकार का प्रयोग है। भाषा सरल, सहज और जनसाधारण के योग्य है। कवि ने सावन के लिए सजीले और हरे विशेषणों का प्रयोग करके संदेशवाहक का मान बढ़ाया है, साथ ही उसे पुण्य’ पावन कहकर सम्बोधित किया है। कवि सावन को तो खूब बरसने की स्वीकृति देता है परन्तु पिता की अश्रुधारा सहन नहीं होती। इसलिए कवि सावन को ऐसी बात कहने से मना करता है कि उसके पिताजी को क्लेश हो और उनकी आँखों में आँसू आएँ। कवि यह भी नहीं चाहता कि पिता जी पाँचवें पुत्र भवानी से मिलने के लिए आतुर हो जाएँ।