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तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
विश्वामित्र ने अपने आप से कहा था कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा था। अब तक वह साधारण क्षत्रियों पर बिना हारे विजय प्राप्त करता आया था और उसे ऐसा लगने लगा था कि वह सभी क्षत्रियों को युद्ध में हरा सकता था। ये राम-लक्ष्मण गन्ने से बनी खांड नहीं हैं बल्कि फौलाद के खाँडे हैं जिन्हें हराना इनके लिए संभव नहीं। मुनि इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे हैं।
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“सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने बाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
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