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बस की यात्रा
जब लेखक ने बस के चलने पर उसके किसी भी हिस्से का आपसी सहयोग न देखा तो उसे गाँधीजी के ‘असहयोग आंदोलन’ अर्थात् भारतीयों अंग्रेजों का साथ न देना याद आ गया। और बस का सही रूप में न चलना, बार-बार रुक कर विरोध करना, लेखक को ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ की याद दिलाता है। जिसमें गाँधीजी ने अंग्रेजों द्वारा नमक पर टैक्स लगाने पर दांडी यात्रा करके, समुद्री नमक बनाकर उनके कानून को तोड़ा था। इसीलिए लेखक ने कहा कि यह बस गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन के वक्त जवान रही होगी अर्थात् अपने- आप को स्वतंत्र करवाने के सभी दावपेंच जानती है। लेखक का कहना पूर्णतया उचित है।
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बस, वश, बस तीन शब्द हैं - इनमें बस सवारी के अर्थ मैं, वश अधीनता के अर्थ मैं, और बस पर्याप्त (काफी) के अर्थ में प्रयुक्त होता है, जैसे-बस से चलना होगा। मेरे वश में नहीं है। अब बस करो।
• उपर्युक्त वाक्य के समान तीनों शब्दों से युक्त आप भी दो-दो वाक्य बनाइए।
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