Question
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।।
पाखंडपूर्ण भक्ति में मन की क्या दशा होती है?
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मन एकाग्रचित्त होकर प्रभु भक्ति में न लगकर रसों दिशाओं की ओर घूमता है।
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मन केवल ईश्वर भक्ति करता है।
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मन की एकाग्रहचितता माला फेरने व जीभ चलाने में रहती हैं।
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मन हर पल उस इश्वर को पाना चाहता हैं।
Solution
A.
मन एकाग्रचित्त होकर प्रभु भक्ति में न लगकर रसों दिशाओं की ओर घूमता है।