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1940 के प्रस्ताव के ज़रिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की?
23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था। बल्कि, इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता सिंकदर हयात खान ने 1 मार्च 1941 को पंजाब असेम्बली को संबोधित करते हुए ऐलान किया था कि वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें ''यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जगह हिंदू राज होगा... । अगर पाकिस्तान का मतलब यह है कि पंजाब में खालिस मुस्लिम राज कायम होने वाला है तो मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है। '' उन्होंने संघीय ईकाइयों के लिए उल्लेखनीय स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढाले (संयुक्त) महासंघ के समर्थन में अपने विचारों को फिर दोहराया।
कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बँटवारा बहुत अचानक हुआ?
मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी। उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग से विभाजन होने के बीच बहुत ही कम समय - केवल सात साल - रहा। यहाँ तक कि किसी को मालूम नहीं था कि पाकिस्तान के गठन का क्या मतलब होगा और उससे भविष्य में लोगों की जिंदगी किस तरह तय होगी । 1947 में अपने मूल इलाके छोड्कर नयी जगह जाने वालों में से बहुतों को यही लगता था कि जैसे ही शांति बहाल होगी, वे लौट आएँगे।
यहाँ तक कि स्वयं लीग ने भी एक संप्रभु राज्य की माँग ज्यादा स्पष्ट और जोरदार ढंग से नहीं उठाई थी। ऐसा लगता है कि माँग सौदेबाजी में एक पेंतरे के रूप में उठाई गई थी ताकि मुस्लिमों के लिए अधिक रियायतें ली जा सकें। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया। इसकी समाप्ति के बाद सरकार को भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण की बातचीत करनी पड़ी जिसमें अंततः भारत का विभाजन अचानक स्वीकार करना पड़ा। इससे लगता है कि भारत का विभाजन अचानक हुई घटना है।
आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे?
आम लोग इस विभाजन को स्थायी रूप में नहीं देखते थे, उन्हें लगता था कि शांति के स्थापित होते ही, वे अपने-अपने घरों को वापस लौट आएँगे। उन्हें लगता था यह केवल सम्पति और क्षेत्र का ही विभाजन नहीं था, बल्कि एक महाध्वंस था। 1947 में जो मारकाट से बचे कुछ लोग इसे मारी-मारी, मार्शल-लॉ, रौला, हुल्ल्ड़ आदि शब्दों से संबोधित कर रहे थे। कुछ लोग इससे एक प्रकार का ग्रह-युद्ध भी मान रहे थे। विभाजन के दौरान हुई हत्याओं, बलात्कार, आगजनी और लूटपाट की बात करते हुए समकालीन प्रेक्षकों और विद्वानों ने कई बार इसे '' महाध्वंस '' (होलोकॉस्ट) कहा है। कुछ ऐसे भी लोग थे जो स्वयं को उजड़ा हुआ और असहाय अनुभव कर रहे थे। उनके लिए यह विभाजन उनसे बचपन कि यादें छीनने वाला तथा मित्रों तथा रिश्तेदारों से तोड़ने वाला मान रहे थे।
विभाजन के ख़िलाफ़ महात्मा गाँधी की दलील क्या थी?
गाँधी जी प्रारंभ से ही देश के विभाजन के विरुद्ध थे। वह किसी भी कीमत पर विभाजन को रोकना चाहते थे। अतः वह अंत तक विभाजन का विरोध करते रहे। उन्होंने विभाजन के ख़िलाफ़ यहाँ तक कह दिया था कि विभाजन उनकी लाश पर होगा। गाँधीजी को विश्वास था कि देश में सांप्रदायिक नफरत शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी तथा पुन: आपसी भाईचारा स्थापित हो जाएगा। लोग घृणा और हिंसा का मार्ग छोड़ देंगे तथा सभी आपस में मिलकर अपनी समस्याओं का हल खोज लेंगे। 7 सितम्बर, 1946 ई० को प्रार्थना सभा में अपने भाषण में गाँधी जी ने कहा था, ' मैं फिर वह दिन देखना चाहता हूँ जब हिन्दू और मुसमलान आपसी सलाह के बिना कोई काम नहीं करेंगे। मैं दिन-रात इसी आग में जले जा रहा हूँ कि उस दिन को जल्दी-से-जल्दी साकार करने के लिए क्या करूँ। लीग से मेरी गुज़ारिश है कि वे किसी भी भारतीय को अपना शत्रु न मानें... हिन्दू और मुसलमान, दोनों एक ही मिट्टी से उपजे हैं। उनका खून एक है, वे एक जैसा भोजन करते हैं, एक ही पानी पीते हैं, और एक ही जबान बोलते हैं।”
इसी प्रकार 26 सितम्बर, 1946 ई० को महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' में लिखा था, ' किन्तु मुझे विश्वास है कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो माँग उठायी है, वह पूरी तरह गैर-इस्लामिक है और मुझे इसको पापपूर्ण कृत्य कहने में कोई संकोच नहीं है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारे का समर्थक है न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का।
विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है?
भारत का विभाजन 1947 में हुआ जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का अस्तित्व एक नए देश के रूप में जनता के सामने आया। इस विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ माना जाता है। निम्नलिखित तथ्य भी इस बात की पुष्टि करते हैं:
ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया?
ब्रिटिश भारत का बँटवारा निम्नलिखित कारणों से किया गया:
बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?
बँटवारे के समय औरतों को बहुत दर्दनाक अनुभवों से गुज़रना पड़ा। बँटवारे के समय औरतों के बहुत ही कटु अनुभव रहे:
मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है?
मौखिक इतिहास का प्रयोग हम विभाजन को समझने के लिए करते हैं। इन स्रोतों से हमें विभाजन के दौर में सामान्य लोगों के कष्टों और संताप को समझने में मदद मिलती हैं।
मौखिक इतिहास के फायदे:
मौखिक इतिहास के नुकसान:
मौखिक इतिहास और विभाजन के बारे में हमारी समझ का विस्तार: मौखिक इतिहास से विभाजन के बारे में हमारी समझ को काफी विस्तार मिला है। मौखिक स्रोतों से जन इतिहास को उजागर करने में मदद मिलती है। वे गरीबों और कमजोरों के अनुभवों को उपेक्षा के अंधकार से बाहर निकाल पाते हैं। ऐसा करके वे इतिहास जैसे विषय की सीमाओं को और फैलाने का अवसर प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए मौखिक स्रोत से हमने अब्दुल लतीफ के पिता की घटना, लतीफ की भावनाएँ, थुआ गाँव की औरतों की कहानी और सद्द्भावनापूर्ण प्रयासों की कहानियों को जाना।
डॉ खुशदेव सिंह के प्रति कराची में गए मुसलमान आप्रवासियों की मनोदशा को समझ पाए। शरणार्थियों के द्वारा किए गए संघर्ष को भी मौखिक स्रोतों द्वारा समझा जा सकता है। इस प्रकार इस स्रोत से इतिहास में समाज के ऊपर के लोगों से आगे जाकर सामान्य लोगों की पड़ताल करने में सफलता मिलती है। सामान्यत: आम लोगों के वजूद को नज़र -अंदाज कर दिया जाता है या इतिहास में चलते- चलते जिक्र कर दिया जाता है।
बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली?
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रारंभ से ही विभाजन का विरोध करती रही थी। किन्तु अंत में परिस्थितियों से विवश होकर उसे अपनी सोच बदलनी पड़ी और विभाजन के लिए तैयार होना पड़ा। कांग्रेस की सोच में बदलाव के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार है:
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