भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii Chapter 14 विभाजन को समझना
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    NCERT Solution For Class 12 इतिहास भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii

    विभाजन को समझना Here is the CBSE इतिहास Chapter 14 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 इतिहास विभाजन को समझना Chapter 14 NCERT Solutions for Class 12 इतिहास विभाजन को समझना Chapter 14 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 इतिहास.

    Question 1
    CBSEHHIHSH12028362

    1940 के प्रस्ताव के ज़रिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की?

    Solution

    23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था। बल्कि, इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता सिंकदर हयात खान ने 1 मार्च 1941 को पंजाब असेम्बली को संबोधित करते हुए ऐलान किया था कि वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें ''यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जगह हिंदू राज होगा... । अगर पाकिस्तान का मतलब यह है कि पंजाब में खालिस मुस्लिम राज कायम होने वाला है तो मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है। '' उन्होंने संघीय ईकाइयों के लिए उल्लेखनीय स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढाले (संयुक्त) महासंघ के समर्थन में अपने विचारों को फिर दोहराया।

    Question 2
    CBSEHHIHSH12028363

    कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बँटवारा बहुत अचानक हुआ?

    Solution

    मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी। उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग से विभाजन होने के बीच बहुत ही कम समय - केवल सात साल - रहा। यहाँ तक कि किसी को मालूम नहीं था कि पाकिस्तान के गठन का क्या मतलब होगा और उससे भविष्य में लोगों की जिंदगी किस तरह तय होगी । 1947 में अपने मूल इलाके छोड्कर नयी जगह जाने वालों में से बहुतों को यही लगता था कि जैसे ही शांति बहाल होगी, वे लौट आएँगे।
    यहाँ तक कि स्वयं लीग ने भी एक संप्रभु राज्य की माँग ज्यादा स्पष्ट और जोरदार ढंग से नहीं उठाई थी। ऐसा लगता है कि माँग सौदेबाजी में एक पेंतरे के रूप में उठाई गई थी ताकि मुस्लिमों के लिए अधिक रियायतें ली जा सकें। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया। इसकी समाप्ति के बाद सरकार को भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण की बातचीत करनी पड़ी जिसमें अंततः भारत का विभाजन अचानक स्वीकार करना पड़ा। इससे लगता है कि भारत का विभाजन अचानक हुई घटना है।

    Question 3
    CBSEHHIHSH12028364

    आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे?

    Solution

    आम लोग इस विभाजन को स्थायी रूप में नहीं देखते थे, उन्हें लगता था कि शांति के स्थापित होते ही, वे अपने-अपने घरों को वापस लौट आएँगे। उन्हें लगता था यह केवल सम्पति और क्षेत्र का ही विभाजन नहीं था, बल्कि एक महाध्वंस था। 1947 में जो मारकाट से बचे कुछ लोग इसे मारी-मारी, मार्शल-लॉ, रौला, हुल्ल्ड़ आदि शब्दों से संबोधित कर रहे थे। कुछ लोग इससे एक प्रकार का ग्रह-युद्ध भी मान रहे थे। विभाजन के दौरान हुई हत्याओं, बलात्कार, आगजनी और लूटपाट की बात करते हुए समकालीन प्रेक्षकों और विद्वानों ने कई बार इसे '' महाध्वंस '' (होलोकॉस्ट) कहा है। कुछ ऐसे भी लोग थे जो स्वयं को उजड़ा हुआ और असहाय अनुभव कर रहे थे। उनके लिए यह विभाजन उनसे बचपन कि यादें छीनने वाला तथा मित्रों तथा रिश्तेदारों से तोड़ने वाला मान रहे थे। 

    Question 4
    CBSEHHIHSH12028365

    विभाजन के ख़िलाफ़ महात्मा गाँधी की दलील क्या थी?

    Solution

    गाँधी जी प्रारंभ से ही देश के विभाजन के विरुद्ध थे। वह किसी भी कीमत पर विभाजन को रोकना चाहते थे। अतः वह अंत तक विभाजन का विरोध करते रहे। उन्होंने विभाजन के ख़िलाफ़ यहाँ तक कह दिया था कि विभाजन उनकी लाश पर होगा। गाँधीजी को विश्वास था कि देश में सांप्रदायिक नफरत शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी तथा पुन: आपसी भाईचारा स्थापित हो जाएगा। लोग घृणा और हिंसा का मार्ग छोड़ देंगे तथा सभी आपस में मिलकर अपनी समस्याओं का हल खोज लेंगे। 7 सितम्बर, 1946 ई० को प्रार्थना सभा में अपने भाषण में गाँधी जी ने कहा था, ' मैं फिर वह दिन देखना चाहता हूँ जब हिन्दू और मुसमलान आपसी सलाह के बिना कोई काम नहीं करेंगे। मैं दिन-रात इसी आग में जले जा रहा हूँ कि उस दिन को जल्दी-से-जल्दी साकार करने के लिए क्या करूँ। लीग से मेरी गुज़ारिश है कि वे किसी भी भारतीय को अपना शत्रु न मानें... हिन्दू और मुसलमान, दोनों एक ही मिट्टी से उपजे हैं। उनका खून एक है, वे एक जैसा भोजन करते हैं, एक ही पानी पीते हैं, और एक ही जबान बोलते हैं।”
    इसी प्रकार 26 सितम्बर, 1946 ई० को महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' में लिखा था, ' किन्तु मुझे विश्वास है कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो माँग उठायी है, वह पूरी तरह गैर-इस्लामिक है और मुझे इसको पापपूर्ण कृत्य कहने में कोई संकोच नहीं है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारे का समर्थक है न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का।

    Question 5
    CBSEHHIHSH12028366

    विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है?

    Solution

    भारत का विभाजन 1947 में हुआ जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का अस्तित्व एक नए देश के रूप में जनता के सामने आया। इस विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ माना जाता है। निम्नलिखित तथ्य भी इस बात की पुष्टि करते हैं: 

    1. नि:संदेह, यह विभाजन स्वयं में अतुलनीय था, क्योंकि इससे पूर्व किसी अन्य विभाजन में न तो सांप्रदायिक हिंसा का इतना तांडव नृत्य हुआ और न ही इतनी विशाल संख्या में निर्दोष लोगों को अपने घरों से बेघर होना पड़ा।
    2. दोनों देशों की जनता के बीच बड़े पैमाने पर मारकाट तथा आगजनी हुई। सदियों से एक-दूसरे के साथ भाई-चारे से रहने वाले लोग ही आपस में एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए।
    3. विद्वानों के अनुसार विभाजन के परिणामस्वरूप लगभग 1 करोड़ 50 लाख लोग अगस्त, 1947 से अक्टूबर, 1947 के बीच सीमा पार जाने को विवश हुए। विश्व इतिहास में ऐसा कष्टदायक विस्थापन नहीं मिलता।विस्थापन का अर्थ हैं लोगों का अपने घरों से उजड़ जाना। 
    4. दोनों ओर के कट्टरपंथियों के मन में एक-दूसरे के प्रति सदा के लिए ज़हर भर गया। पाकिस्तान तथा भारत के कट्टरपंथी आज भी समय-समय पर एक-दूसरे के विरुद्ध ज़हर उगलते रहते हैं।
    5. विद्वानों के अनुसार विभाजन के परिणामस्वरूप होने वाली हिंसा इतनी भीषण थी कि इसके लिए विभाजन, बँटवारे अथवा 'तक़सीम जैसे शब्दों का प्रयोग करना सार्थक प्रतीत नहीं होता।

    Question 6
    CBSEHHIHSH12028367

    ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया?

    Solution

    ब्रिटिश भारत का बँटवारा निम्नलिखित कारणों से किया गया:

    1. फूट डालों और शासन करो की नीति: ब्रिटिश शासकों ने शुरू से ही 'फूट डालों और शासन करों' की नीति का अनुसरण किया। अंग्रेज़ो ने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच घृणा पैदा करके उन्हें आपस में खूब लड़वाया। 1905 ई. में बंगाल का विभाजन, 1906 ई.में मुस्लिम लीग की स्थापना और 1909 ई. में सांप्रयदायिक चुनाव प्रणाली का प्रारम्भ और विस्तार अंग्रेज़ों की फूट डालों और शासन करो की नीति के उदाहरण थे।
    2. मुस्लिम लीग के प्रयास: 1906 ई. में मुसलमानों ने मुस्लिम लीग नामक संस्था की स्थापना भी कर ली। जिसके कारण हिन्दू और मुस्लिम में भेदभाव बढ़ने लगा। मुस्लिम लीग में सांप्रदायिकता फैलानी आरंभ कर दी। 1940 ई.तक हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव इतना बढ़ गया कि मुसलमानों ने अपने लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान की माँग की।
    3. कांग्रेस की कमज़ोर नीति: मुस्लिम लीग की माँगे दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं और कांग्रेस इन्हें स्वीकार करती रही। कांग्रेस ने लीग के प्रति तुष्टिकरण की जो नीति अपनाई वह देश की अखंडता के लिए घातक सिद्ध हुई। कांग्रेस की इसी कमज़ोर नीति का लाभ उठाते हुए मुसलमानों ने देश के विभाजन की माँग करनी आरंभ कर दी।
    4. सांप्रदायिक तनाव: मुस्लिम लीग के संकीर्ण सांप्रदायिक दृष्टिकोण ने हिन्दू-मुसलमानों में मतभेद उत्पन्न करने और अन्ततः पाकिस्तान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग ने 'सीधी कार्यवाही' प्रारम्भ कर दी और सारे देश में सांप्रदायिक दंगे होने लगे। इन दंगों को केवल भारत-विभाजन द्वारा ही रोका जा सकता था।
    5. लॉड माउंटबेटन के प्रयास: मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान के निर्माण के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही प्रारंभ कर दिए जाने के कारण सम्पूर्ण देश में हिंसा की ज्वाला धधकने लगी थी। अत: लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल को विश्वास दिला दिया कि मुस्लिम लीग के बिना शेष भारत को शक्तिशाली और संगठित बनाना अधिक उचित होगा। कांग्रेसी नेताओं को गृहयुद्ध अथवा पाकिस्तान इन दोनों में से किसी एक का चुनाव करना था। उन्होंने गृहयुद्ध से बचने के लिए पाकिस्तान के निर्माण को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार, अनेक कारणों के संयोजन ने देश के विभाजन को अपरिहार्य बना दिया था।

    Question 7
    CBSEHHIHSH12028368

    बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?

    Solution

    बँटवारे के समय औरतों को बहुत दर्दनाक अनुभवों से गुज़रना पड़ा। बँटवारे के समय औरतों के बहुत ही कटु अनुभव रहे:

    1. उनके साथ बलात्कार हुए, उनको अगवा किया गया, बार-बार बेचा-खरीदा गया, अनजान हालात में अजनबियों के साथ एक नयी जिंदगी बसर करने के लिए मजबूर किया गया।
    2. महिलाएँ मूक एवं निरीह प्राणियों की तरह इन अत्याचारों से गुज़रती रहीं। उन्हें गहरे सदमे झेलने पड़े। इन सदमों के बावजूद भी कुछ औरतों ने अपने नए पारिवारिक बंधन विकसित किए। लेकिन भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने इनसानी संबंधों की जटिलता के बारे में कोई संवेदनशील रवैया नहीं अपनाया।
    3. बँटवारे के दौरान बरामदगी की पूरी प्रक्रिया में जिन औरतों के बारे में फैसले लिए जा रहे थे उनसे इस बार भी सलाह नहीं ली गई। उन्हें अपनी जिंदगी के संबंध में फैसला लेने के अधिकार से वंचित किया गया। एक अनुमान के अनुसार महिलाओं की बरामदगी के अभियान में कुल मिलाकर लगभग 30,000 औरतों को बरामद किया गया। इनमें से 8000 हिन्दू व सिख औरतों को पाकिस्तान से तथा 22,000 मुस्लिम औरतों को भारत से बरामद किया गया। यह अभियान 1954 तक ज़ारी रहा।
    4. बँटवारे के दौरान ऐसे बहुत से उदाहरण सामने आए जिनमें परिवार के पुरुषों ने ही परिवार की इज्जत की रक्षा के नाम पर अपने परिवार की स्त्री सदस्यों को स्वयं ही मार डाला अथवा उन्हें आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया। इन पुरुषों को यह भय रहता था कि शत्रु उनकी औरतों - माँ, बहन, बेटी को नापाक कर सकता था। इसलिए पुरुषों ने परिवार की मान मर्यादा को बचाने के लिए खुद ही उनको मार डाला।
    5. उर्वशी बुटालिया ने अपनी पुस्तक दि अदर साइड ऑफ साइलेंस में रावलपिंडी जिले के थुआ खालसा गाँव के एक ऐसे ही दर्दनाक हादसे का जिक्र किया है। बताते हैं कि बँटवारे के समय सिखों के इस गाँव की 90 औरतों ने दुश्मनों के हाथों में पड़ने की बजाय अपनी मर्ज़ी से कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी थी। उन्हें असहनीय पीड़ा और संताप से गुज़रना पड़ता था।

    Question 8
    CBSEHHIHSH12028369

    मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है?

    Solution

    मौखिक इतिहास का प्रयोग हम विभाजन को समझने के लिए करते हैं। इन स्रोतों से हमें विभाजन के दौर में सामान्य लोगों के कष्टों और संताप को समझने में मदद मिलती हैं।

    मौखिक इतिहास के फायदे:

    1. मौखिक इतिहास हमें विभाजन से संबंधित अनुभवों एवं स्मृतियों को और अधिक सूक्ष्मता से समझने में सहायता मिलती हैं।
    2. इन स्मृतियों के माध्यम से इतिहासकारों को विभाजन जैसी दर्दनाक घटना के दौरान लोगों को किन-किन शारिक और मानसिक पीड़ाओं को झेलना पड़ा, का बहुरंगी एवं सजीव वृतांत लिखने में सहायता मिलती हैं।
    3. मौखिक इतिहास विभाजन के दौरान जनसामान्य और विशेष रूप से महिलाओं द्वारा झेली जाने वाली पीड़ा को समझने में हमे महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है।

    मौखिक इतिहास के नुकसान:

    1. अनेक इतिहासकारों के विचारानुसार मौखिक जानकारियों में सटीकता नहीं होतीं। अतः उनसे घटनाओं के जिस क्रम का निर्माण किया जाता है, वह अकसर सही नहीं होता। 
    2. मौखिक इतिहास के खिलाफ यह भी तर्क दिया जाता है की व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर किसी सामान्य निष्कर्ष पर पहुँचना सरल नहीं होता।
    3. इतिहासकारों के मतानुसार मौखिक विवरणों का संबंध केवल सतही मुद्दों से होता है। यादों में संचित किए जाने वाले छोटे-छोटे अनुभवों से इतिहास की विशाल प्रक्रियाओं के कारणों को ढूंढ़ने में में कोई महत्त्वपूर्ण सहायता नहीं मिलती।

    मौखिक इतिहास और विभाजन के बारे में हमारी समझ का विस्तार: मौखिक इतिहास से विभाजन के बारे में हमारी समझ को काफी विस्तार मिला है। मौखिक स्रोतों से जन इतिहास को उजागर करने में मदद मिलती है। वे गरीबों और कमजोरों के अनुभवों को उपेक्षा के अंधकार से बाहर निकाल पाते हैं। ऐसा करके वे इतिहास जैसे विषय की सीमाओं को और फैलाने का अवसर प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए मौखिक स्रोत से हमने अब्दुल लतीफ के पिता की घटना, लतीफ की भावनाएँ, थुआ गाँव की औरतों की कहानी और सद्द्भावनापूर्ण प्रयासों की कहानियों को जाना।
    डॉ खुशदेव सिंह के प्रति कराची में गए मुसलमान आप्रवासियों की मनोदशा को समझ पाए। शरणार्थियों के द्वारा किए  गए संघर्ष को भी मौखिक स्रोतों द्वारा समझा जा सकता है। इस प्रकार इस स्रोत से इतिहास में समाज के ऊपर के लोगों से आगे जाकर सामान्य लोगों की पड़ताल करने में सफलता मिलती है। सामान्यत: आम लोगों के वजूद को नज़र -अंदाज कर दिया जाता है या इतिहास में चलते- चलते जिक्र कर दिया जाता है।

    Question 9
    CBSEHHIHSH12028370

    बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली?

    Solution

    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रारंभ से ही विभाजन का विरोध करती रही थी। किन्तु अंत में परिस्थितियों से विवश होकर उसे अपनी सोच बदलनी पड़ी और विभाजन के लिए तैयार होना पड़ा। कांग्रेस की सोच में बदलाव के लिए निम्नलिखित  परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार है:

    1. कांग्रेस मंत्रिमंडल व लीग में मतभेद: 1937 के चुनावों में सफलता के पश्चात कांग्रेस ने प्रांतों में सरकार बनाई परंतु कुछ प्रांतों में यह स्थिति थी कि कांग्रेस सत्ता पक्ष में तथा मुस्लिम लीग के सदस्य विपक्ष में थे। फलत: लीग व कांग्रेस में दूरियाँ भी बढ़ीं। यहाँ तक की जब 22 अक्टूबर 1939 को कांग्रेस सरकारों ने त्यागपत्र दिया तो लीग ने मुक्ति दिवस मनाया।
    2. पाकिस्तान प्रस्ताव: 1937 के पश्चात जिन्ना की राजनीती पूरी तरह से उग्र-संप्रदायिकता की राजनीति थी। उन्होंने कांग्रेस राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध जहर उगलना शुरू कर दिया था। उन्होंने दुष्प्रचार किया कि कांग्रेस का आला कमान दूसरे सभी समुदाय और संस्कृतियों को पूरी तरह नष्ट करने तथा हिंदू राज्य कायम करने की फ़िराक में हैं। 1940 में जिन्ना ने अपने द्वि-राष्ट्रीय सिद्धांत को मुस्लिम जनता के सामने रखा। लीग का कहना था कि यदि भारत एक राज्य रहता है तो बहुमत के शासन के नाम पर सदा हिंदू शासन रहेगा। इसका अर्थ होगा इस्लाम के बहुमूल्य तत्व का पूर्ण विनाश और मुसलमानों की दासता। 1940 में लीग ने लाहौर में 'पाकिस्तान प्रस्ताव' पास किया। इससे स्थितियों में बदलाव आया। 
    3. वेवल योजना की विफलता: द्वित्य विश्वयुद्ध के पश्चात वायसराय वेवल ने अपनी कार्यकारिणी में भारतीयों को शामिल करने के लिए शिमला में एक सम्मेलन बुलाया गया। परंतु लीग की हठधर्मिता के कारण यह योजना असफल हो गयी। लीग की यह अपेक्षा थी परिषद के सभी मुस्लिम सदस्य उसके द्वारा चुने जाएँ जिस कारण कांग्रेस व लीग में कटुता बढ़ी। 
    4. कैबिनेट मिशन की असफलता: मुस्लिम लीग ने सांप्रदायिक समस्या के निवारण का एक मात्र हल पाकिस्तान की मांग को बताया था। किन्तु कैबिनेट मिशन ने पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर एक भारतीय संघ का प्रस्ताव रखा। इस योजना को कांग्रेस तथा लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया। यह विभाजन का एक संभावित विकल्प था। परंतु बाद में मतभेद उभर गए तथा लीग ने इसे अस्वीकार कर दिया। इसकी अस्वीकृति और असफलता के बाद विभाजन अपरिहार्य हो गया था।
    5. संप्रदायिक दंगे: कैबिनेट योजना की असफलता के पश्चात लीग ने 16 अगस्त,1946 को 'प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस' घोषित किया तथा 'लड़कर लेंगे पाकिस्तान' का नारा दिया। इसके साथ ही कोलकाता में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए जो 20 अगस्त तक चल रहे। साथ ही हजारों लोग विस्थापित हो गए। दंगों ने सारे देश को दहला दिया। कानून और व्यवस्था बिल्कुल चरमरा गई तथा देश में ग्रह-युद्ध जैसे हालत पैदा हो गए थे। इससे कांग्रेस की सोच में पूरी तरह बदलाव आ चूका था।

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