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निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए। [2 × 4 = 8]
(क) ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं।
(ख) कैवि अपने मन को ‘छाया मत छूना’ कहकर क्या समझाना चाहता है ?
(ग) “छू गया तुमसे कि झरने लगे शेफालिका के फूल’ उक्त पंक्ति को आशय नागार्जुन की कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
(घ) स्मृति को पाथेय बनाने से जयशंकर प्रसाद का क्या आशय है?
(ङ) परशुराम को लक्ष्मण ने वीर योद्धा के क्या लक्षण बताए हैं?
(क) उक्त पंक्ति में यह संदेश दिया गया है कि ससुराल में बहुएँ घर गृहस्थी में फँसकर, अत्याचारों को सहते हुए स्वयं को नुकसान न पहुचाएँ और न ही दूसरों के द्वारा किए गए जुल्मों को सहन करें। वे अपनी कमजोरियों के प्रति सचेत रहें एवं मजबूर बनें। क्योंकि आज भी नारियों पर जुल्म किए जाते हैं और उन्हें जलाया जाता है।
(ख) कवि अपने मन को ‘छाया मत छूना’ कहकर समझाना चाहता है कि ‘अतीत की सुखद यादों को याद न करना’। बीती यादों को स्मरण करने से वर्तमान के यथार्थ का सामना करना मुश्किल हो सकता है और दुखः अधिक प्रबल हो सकता है। विमत-सुख को याद कर वर्तमान के दुख को ओर बढ़ाना तर्कसंगत नहीं है।
(ग) उक्त पंक्ति में कवि नागार्जुन ने यह भाव दर्शाया है कि शिशु का प्रेम रूपी स्पर्श इतना कोमल और हृदयस्पर्शी होता है कि बांस और बबूल जैसे कठोर और कांटेदार पेड़ों से भी शेफालिका के फूल बरसने लगे अर्थात् कठोर व्यक्ति का हृदय कोमल हो जाये।
(घ) स्मृति को पाथेय बनाने से जयशंकर प्रसाद का आशय यह है कि वह जीवन भर मुश्किलों से घिरा हुआ रहा है उसकी स्थिति थके हुए पथिक की तरह कष्टदायक है और स्मृति में कई सुखों के क्षण सजे हुए हैं जो जीने का आधार है। वह इन्हीं स्मृतियों के सहारे जीवन की निराशाजनक स्थितियों का सामना करना चाहता है।
(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम को वीर योद्धा की विशेषताएँ बताते हुए कहा कि शूरवीर रणक्षेत्र में शत्रु के समक्ष पराक्रम दिखाते हैं न कि अपनी वीरता का बखान करते हैं। शूरवीर ब्राह्मण, देवता, गाय और हरिभक्त पर भी अपनी वीरता नहीं दिखाते हैं। क्योंकि इन्हें मारने पर पाप लगता है।
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छबि आपके सामने उभर कर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।
मैं लौटुंगी नहीं
मै एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूँगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूँगी नहीं
प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित कविता ‘कन्यादान’ से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता श्री ऋतुराज हैं। वर्तमान में जीवन मूल्य बदल गए हैं। माँ अपनी बेटी के लिए केवल भावुकता को महत्वपूर्ण नहीं मानती बल्कि अपने संचित अनुभवों की पीड़ा का ज्ञान भी उसे देना चाहती है। वह उसे भावी जीवन का यथार्थ पाठ पढ़ाना चाहती है।
व्याख्या- कवि कहता है कि माँ ने अपना जीवन जीते हुए जिन दुःखों को भोगा था; सहा था उसे अपनी लड़की का विवाह करते हुए कन्यादान के समय वह सब समझाना और उसे इसकी जानकारी देना बहुत अधिक आवश्यक था; सच्चा था। उसकी बेटी ही तो उसकी अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सारे सुख-दुःख वह अपनी बेटी के साथ ही तो बांटती थी। चाहे बेटी का विवाह वह कर रही थी पर अभी उसकी बेटी बहुत समझदार नहीं थी, उसने दुनियादारी को नहीं समझा था। वह अभी बहुत भोली और सीधी-सादी थी। वह दुख की उपस्थिति को महसूस तो करती थी लेकिन अभी उसे दुःखों को भली-भांति समझना और पढ़ना नहीं आता था। ऐसा लगता था कि अभी वह धुंधले प्रकाश में जीवन रूपी कविता की कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ना ही जानती थी पर उनके अर्थ समझना उसे नहीं आता था अर्थात् वह दुनियादारी की ऊँच नीच को अभी भली-भांति नहीं समझती थी। उसमें चालाकी अभी नहीं आई थी कि वह दुनिया के भेद-भावों को समझ कर स्वयं निर्णय कर पाती।
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अनुप्रास- दान में देते वक्त
उत्प्रेक्षा- जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित कविता कन्यादान’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री ऋतुराज हैं। कवि ने आधुनिक युग में समाज में आए परिवर्तनों के आधार पर विवाह के समय बेटी को माँ की ओर से शिक्षा दी है; उसे सचेत किया है। आज के बदलते इस समाज में कोरे आदर्शो की कमजोरी का कोई महत्व शेष नहीं बचा है।
व्याख्या- कवि के अनुसार माँ अपनी लड़की को कन्यादान के समय समझाते हुए कहती हैं कि पानी में झाँककर अपने चेहरे की सुंदरता की ओर केवल निहारते न रहना। केवल अपनी सुंदरता और बनाव-शृंगार की ओर ही ध्यान देना ही तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है बल्कि परछाई दिखाने वाले उस पानी की गहराई के बारे में जान लेना आवश्यक है। जो पानी परछाई दिखाता है और सुंदरता के प्रति तुम्हें आकर्षित करता है, वह डूबकर मृत्यु का कारण भी बन सकता है-उससे सावधान रहना आग केवल रोटियाँ सेंकने के लिए होती है। वह जलने और जलकर मर जाने के लिए नहीं होती-इसलिए उसका शिकार न बनना। नारी जीवन को भ्रम में डालने वाले तरह-तरह के वस्त्र और गहने हैं। ये शाब्दिक धोखे हैं जो स्त्री को जीवन में बांध देने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। माँ ने अपनी लड़की को समझाते हुए कहा कि तुम लड़की बने रहना पर कभी भी लड़की की तरह दिखाई न देना सजग और सचेत रहना। समाज में व्याप्त परिवर्तनों को भली-भांति समझना। यह संसार निर्मम है इसलिए उसे भली-भांति समझना।
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माँ ने कहा पानी में झाँक कर
अपने चेहरे पर मत रीझना।
विरोधाभास- • माँ ने कहा लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
उपमा-- • वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं स्त्री जीवन के।
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