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ऋतुराज - कन्यादान

Question
CBSEENHN10001912

‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?

             मैं लौटुंगी नहीं
मै एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूँगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूँगी नहीं

Solution
इस कविता का ‘कन्यादान’ कविता से सीधा संबंध तो नहीं है पर स्त्री की जागरुकता और सजगता की दृष्टि से साम्य अवश्य है। स्त्री कहती है एक युगों से चली आने वाली सामाजिक रूढ़ियों को तोड़कर उसने घर से बाहर कदम निकालने सीख लिए हैं। वह उन कष्टों और पीड़ाओं से अब परिचित है जिसे आततायियों ने उसके बच्चों, पति और भाइयों को दी थी। उसके बच्चों को दहकती आग में जला दिया गया था। उसने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं। शृंगार के लिए पहने गहने उतार दिए हैं। वह जाग चुकी है। उसने अपने देश को आजाद कराने की राह देख ली है। वह अपना सब कुछ छोड़ कर आजादी की राह पर आगे बढ़ गई है। वह वापिस अपने घर नहीं लौटना चाहती। वह तो आजादी प्राप्त करने के लिए अड़ी हुई है। इस पंक्ति से स्त्री का क्रोध और मानसिक दृढ्‌ता का मनोभाव प्रकट हुआ है। उसने ज्ञान की प्राप्ति से ही ऐसा करना सीखा है।

Some More Questions From ऋतुराज - कन्यादान Chapter

‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?

पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छबि आपके सामने उभर कर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।

माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?

माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?

आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहीं तक उचित है?

‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?

             मैं लौटुंगी नहीं
मै एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूँगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूँगी नहीं

‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को किन परंपराओं से हटकर जीवन जीने की शिक्षा दी है?

कवि ने कविता के माध्यम से माँ की किस विशेषता को वाणी प्रदान की है?

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी बह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी बह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

अवतरण में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।