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रजिया सज्जाद जहीर के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।
जीवन-परिचय: रजिया सज्जाद जहीर का जन्म 15 फरवरी, सन् 1917 को अजमेर (राजस्थान) में हुआ था। रजिया सज्जाद जहीर मूलत: उर्दू की कहानी लेखिका हैं। उन्होंने बी. ए. तक की शिक्षा घर पर रहकर ही प्राप्त की। विवाह के बाद उन्होंने इलाहाबाद से उर्दू में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1947 में वे अजमेर से लखनऊ आईं और वहाँ करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज में पढाने लगीं। सन् 1965 में उनकी नियुक्ति सोवियत सूचना विभाग में हुई। उनका निधन 18 दिसबर, 1979 को हुआ।
आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों लिखे हैं। उन्होंने उर्दू में बाल-साहित्य की रचना भी की है। मौलिक सर्जन के साथ-साथ उन्होंने कई अन्य भाषाओं से उर्दू में कुछ पुस्तकों के अनुवाद भी किए हैं। रजिया जी की भाषा सहज, सरल व मुहावरेदार है। उनकी कुछ कहानियाँ देवनागरी में भी लिप्यंतरित हो चुकी हैं।
रजिया सज्जाद जहीर की कहानियो में सामाजिक सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता और आधुनिक संदर्भो में बदलते हुए पारिवारिक मूल्यों को उभारने का सफल प्रयास मिलता है। सामाजिक यथार्थ और मानवीय गुणों का सहज सामंजस्य उनकी कहानियों की विशेषता है। उनकी कहानियों की मात्रा सहज सरल और मुहावरेदार है।
प्रमुख रचनाएँ: जर्द गुलाब (उर्दू कहानी संग्रह)।
सम्मान: सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, उर्दू अकादमी, उत्तर प्रदेश, अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
अब तक साफिया का गुस्सा उतर चुका था। भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी। नमक की पुड़िया ले तो जानी है, पर कैसे? अच्छा, अगर इसे हाथ में ले लें और कस्टमवालों के समाने सबसे पहले इसी को रख दें? लेकिन अगर कस्टमवालों ने न जाने दिया! तो मजबूरी है, छोंड़ देंगे। लेकिन फिर उस वायदे का क्या होगा जो हमने अपनी माँ से किया था? हम अपने को सैयद कहते हैं। फिर वायदा करके झुठलाने के क्या मायने? जान देकर भी वायदा पूरा करना होगा। मगर कैसे? अच्छा, अगर इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रख लिया जाए तो इतने कीनुओं के ढेर में भला कौन इसे देखेगा? और अगर देख लिया? नहीं जी, फलों की टोकरियाँ तो आते वक्त भी नहीं देखी जा रही थीं। उधर से केले, इधर से कीनू सब ही ला रहे थे, ले जा रहे थे। यही ठीक है, फिर देखा जाएगा।
1. साफिया पर गुस्सा क्यों चढ़ा था?
2. अब क्या स्थिति हो गई?
3. किसने, किससे क्या वायदा किया था? वायदे के प्रति उसका क्या दृष्टिकोण है?
4. साफिया ने किस चीज को कहाँ दिखाया?
1. साफिया पर गुस्सा इसलिए चढ़ा था क्योंकि उसके भाई ने लाहौरी नमक की पुड़िया को भारत ले जाने से मना कर दिया था। इससे उनकी बदनामी होने की संभावना थी। साफिया कानूनी अडचन जानकर गुस्सा हो गई थी।
2. कुछ देर बाद साफिया का गुस्सा उतर गया। तब उस पर भावना की जगह बुद्धि हावी हो गई। भाई के सम्मुख उस पर भावना हावी थी। अब वह बुद्धि से वह उपाय सोचने लगी कि नमक की पुड़िया को किस तरह ले जाया जाए। वह दो उपायों पर विचार करने लगी कि कस्टम वालों को बताकर ले जाए या टोकरी में छिपाकर ले जाए।
3. साफिया ने सिख बीबी से यह वायदा किया था कि वह उनके लिए लाहौरी नमक लेकर आएगी। वह बीबी को माँ मानती है और स्वयं को सैयद कहती है अत: वह हर हालत में वायदा पूरा करके ही रहेगी।
4. साफिया ने नमक की पुड़िया को टोकरी में कीनुओं के ढेर के नीचे छिपाया। उसने सोचा कि कीनुओं के ढेर में इसे भला कौन देख पाएगा। फलों की टोकरी की विशेष जाँच भी नहीं होती।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
वह चलने लगी तो वे भी खड़े हो गए और कहने लगे, “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।”
साफिया कस्टम के जंगले से निकलकर दूसरे प्लेटफार्म पर आ गई और वे वहीं खड़े रहे।
प्लेटफार्म पर उसके बहुत-से दोस्त, भाई रिश्तेदार थे, हसरत भरी नजरों, बहते हुए आँसुओं, ठंडी साँसों और भिचे हुए होठों को बीच में से काटती हुई रेल सरहद की तरफ बड़ी। अटारी में पाकिस्तान पुलिस उतरी, हिंदुस्तानी पुलिस सवार हुई। कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन थी, एक जबान थी, एक-सी सूरतें और लिबास, एक-सा लबोलहजा और अंदाज थे, गालियाँ भी एक ही-सी थीं जिनसे दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज रहे थे। बस मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बंदूकें दोनों के हाथों में थीं।
1. किसके चलने पर कौन खड़े हो गए? उन्होने क्या कहा?
2. प्लेटफार्म पर क्या दृश्य था?
3. लेखिका की समझ में क्या बात नहीं आती थी?
4. इस गद्याशं में क्या बात उभर कर आती है?
1. साफिया के चलने पर अटारी के कस्टम ऑफिसर खड़े हो गए। उन्होंने नमक की पुड़िया को लौटाते हुए कहा कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून (महिला) को यह नमक देते हुए मेरी तरफ से यह कहना कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा। बाकी सब धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा।
2. प्लेटफार्म पर साफिया के बहुत से दोस्त, भाई और रिश्तेदार जमा थे। वे साफिया को हरसत भरी नजरों से देख रहे थे, उनकी आँखों में आँसू थे तथा ठंडी साँसें ले-छोड़ रहे थे। रेल सरहद की ओर बढ़ रही थी। अटारी में पुलिस की अदला-बदला हुई।
3. लेखिका की समझ में यह बात नहीं आती लाहौर कब खत्म हो जाता है और कब अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन, एक भाषा, एक-सी सूरतें, एक-सी वेशभूषा सभी कुछ समान था फिर देश कैसे बदल जाता है? लोगों के बोलने का अंदाज भी एक समान था।
4. इस गद्यांश से यह बात उभर कर आती है कि राजनीति ने लोगो को सीमाओं मे बाँधकर बाँट दिया है जबकि उनकी सभी बातें समान हैं। यह बँटवारा कृत्रिम है। लोगों के दिलों को नहीं बाँटा जा सकता।
साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया?
साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया भारत ले जाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि यह गैरकानूनी था। पाकिस्तान से लाहौरी नमक भारत ले जाना प्रतिबंधित था। उसके अनुसार नमक की पुड़िया निकल आने पर बाकी सामान की भी चिंदी-चिंदी बिखेर दी जाएगी। नमक की पुड़िया तो जा नहीं पाएगी, ऊपर से उनकी बदनामी मुफ्त में हो जाएगी।
नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में साफिया के मन में क्या द्वंद्व था?
नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में साफिया के मन में यह द्वंद्व था कि वह इस नमक की पुड़िया को चोरी से छिपाकर ले जाए या कहकर दिखाकर ले जाए। पहले वह नमक की पुड़िया को कीनुओं के नीचे छिपाकर टोकरी में रख देती है। तब उसने सोचा इस पर भला किसकी निगाह जाएगी। इसे तो सिर्फ वही जानती है। पर जब कस्टम की जाँच के लिए उसका सामान बाहर निकाला जाने लगा तब उसने अचानक फैसला किया कि वह मुहब्बत का यह तोहफा चोरी से नहीं ले जाएगी। वह नमक की पुड़िया को कस्टमवालों को दिखाएगी। उसने किया भी ऐसा ही।
जब साफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम ऑफिसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?
साफिया जब अमृतसर पुल पर चढ़कर दूसरी तरफ जा रही थी तब कस्टम आफिसर पुल की सबसे निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। उन्हें उस समय अपना वतन ढाका याद आ रहा था। वे यह अनुभव करने की कोशिश कर रहे थे कि अपने वतन में आकर कैसा लगता है। अपने वतन की चीजों का मजा ही कुछ और होता है।
इस प्रकार के उद्गार इस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं कि विस्थापन का दर्द व्यक्ति को जीवन भर सालता है। राजनैतिक कारणो से बँटवारे की खींची गई रेखाओं का अभी तक लोगों का अंतर्मन स्वीकार नहीं कर पाया है।
यह यथार्थ प्राकृतिक न होकर परिस्थितिवश आरोपित किया गया है। प्राकृतिक बात को व्यक्ति का मन स्वीकार कर लेता है पर आरोपित बात उसे स्वीकार्य नहीं हो पाती है। लोगों का मन अपनी पुरानी जगहों में ही भटकता रहता है।
नमक ले जाने के बारे में साफिया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
सिख बीबी के लिए लाहौर से नमक ले जाने के बारे में साफिया के मन में द्वंद्व उठता है। इस द्वंद्व से उसकी कई चारित्रिक विशेषताएँ उभरती हैं:
- साफिया अपने वायदे की पक्की है। वह सैयद है और सैयद कभी वायदा करके झुठलाते नहीं। वह जान देकर भी वायदा पूरा करने के प्रति संकलित है।
- अब प्रश्न उठता है कि वह नमक की पुड़िया को लाहौर से भारत कैसे ले जाए? वह पहले नमक को छिपाकर ले जाने का विचार करती है पर यह विचार उसे जँचता नहीं और वह कस्टम वालों को नमक की पुड़िया दिखा देती है। इससे पता चलता है कि वह लुका-छिपाकर काम करने में विश्वास नहीं करती।
- वह मानवीय रिश्तों में विश्वास करने वाली है। यही तर्क देकर वह अपने भाई को चुप कर देती है। इन्हीं रिश्तों की दुहाई देकर वह अटारी तथा अमृतसर में कस्टम अफसरों को अपने तर्कों से अपने पक्ष में करने में सफल हो जाती है।
राजनैतिक कारणों से मानचित्र पर एक लकीर खींचकर एक देश को दो भागों में बाँट दिया जाता है। नेता कहते हैं कि इससे जमीन और जनता का बँटवारा हो गया पर उनका यह कथन झूठ का पुलिंदा मात्र है। मानचित्र पर लकीर खींच देने मात्र से जमीन और जनता नहीं बँट जाती। मानचित्र पर खींची गई इस लकीर को लोगों ने अंतर्मन से स्वीकार नहीं किया। राजनैतिक यथार्थ के स्तर पर उनके वतन की पहचान भले ही बदल गई हो किंतु यह उनका हार्दिक यथार्थ नहीं बन पाया। एक बाध्यता ने उन्हें विस्थापित भले ही कर दिया हो, पर वह उनके दिलों पर कब्जा नहीं कर पाई है। जनता के दिल न आज तक बँटे हैं और न बँटेगे। लोगों के रिश्तेदार, भाई-बंद दोनों देशों में रहते हैं। सभी का अपने दिलों में जन्म स्थली के प्रति गहरा लगाव है। मानचित्र पर खींची गई लकीर लोगों के दिलों को नहीं बाँट सकती। यही इस कहानी का संदेश भी है।
भारत-पाक का विभाजन एक त्रासदी था। राजनैतिक इच्छाओं का दुष्परिणाम जनता को भोगना पड़ा था। जनता के ऊपर भेदभाव आरोपित कर दिए गए थे, जबकि दोनों देशों की जनता के बीच मुहब्बत का जज्बा था। अभी भी यह नमकीन स्वाद उनकी रगों में घुला हुआ है। नमकीन स्वाद मीठे से भी अधिक असरदार होता है। नमक का फर्ज जिम्मेदारी और निष्ठा को दर्शाता है। इस स्वाद में अपनापन होता है। यहाँ लाहौरी नमक को माध्यम बनाकर इस मुहब्बत की भावना को उजागर किया गया है। दोनों देशों के लोग अभी भी मुहब्बत की नजर से एक-दूसरे को देखते हैं।
क्या सब कानून हकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते?
जब लेखिका के भाई ने लाहौर का नमक भारत ले जाने के बारे में कानून की मनाही के बारे में बताया तब लेखिका बिगड़ गई। उसका तर्क था कि हकूमत के बनाए कानून ही सब कुछ नहीं होते। कुछ कानून समाज भी बनाता है। समाज के बनाए कानून इंसानी रिश्तों, प्यार पर निर्भर होते हैं। इन कानूनों का भी महत्व होता है।
भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे हावी हो रही थी।
भाई के सामने तर्क करते समय साफिया पर भावना हावी थी। वह भावना में बहकर मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत की बातें कह रही थी। उस समय वह गुस्से में थी। जब उसका गुस्सा उतर गया तब भावना के स्थान पर बुद्धि उस पर हावी होती चली गई। वह नमक की पुड़िया को सही सलामत ले जाने का उपाय सोचने लगी। उसके सामने कई विकल्प थे-वह कस्टम वालों के सामने नमक की पुड़िया को रख दे अगर उन्होंने इसे न ले जाने दिया तो उसके द्वारा बीबी को किए गए वायदे का क्या होगा। फिर उसने बुद्धि का प्रयोग कर विचार किया कि इसे कीनुओं की टोकरी में नीचे रख ले। कीनुओं के ढेर में भला इसे कौन देख पाएगा। उसने बुद्धि का प्रयोग कर ऐसा ही किया।
मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।
साफिया नमक की पुड़िया पाकिस्तान के कस्टम आफिसर के सामने रख देती है। वह ऑफिसर देहली को अपना वतन बताता है और लेखिका स्वयं लखनऊ की है। वह सारी बात समझकर नमक की पुड़िया को साफिया के बैग में रखते हुए उपर्युक्त वाक्य कहता है। इस वाक्य के द्वारा वह मुहब्बत और कानून का अंतर स्पष्ट करता है।
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हमारी जमीन, हमारे पानी का मजा ही कुछ और है।
यह बात अमृतसर के कस्टम विभाग में तैनात सुनीलदास गुप्त द्वारा साफिया के सम्मुख अपने वतन ढाका के बारे में कही गई।
उस ऑफिसर को अमृतसर में रहकर भी ढाका का ढाभ, ढाका की जमीन और ढाका का पानी याद आता है। इन्हें याद करके वह भावुक हो उठता है। यही भावना अपने जन्म स्थान के प्रति लगाव को दर्शाती है। यह जीवन भर बनी रहती है।
फिर पलकों से कुछ सितारे टूटकर दूधिया आँचल में समा जाते हैं।
आँखों की कल्पनाएँ वास्तविकता की दुनिया में गुम हो जाती हैं। व्यक्ति अतीत की सुखद यादों का स्मरण कर उन्हीं में खो जाता है। उन्हें भूल नहीं पाता।
किसका वतन कहाँ है-वह जो कस्टम के इस तरफ है या उस तरफ।
वतन तो सभी का एक ही है। दिल तो वतन है, पर राजनीति ने लोगों के वतन को हिस्सो में बाँट दिया है। कस्टम आफिस का स्थापन इस बँटवारे को चिन्हित कर देता है। यदि कस्टम का बंधन न हो तो यह देश एक ही है।
‘नमक’ कहानी में हिंदुस्तान-पाकिस्तान में रहने वाले लोगों की भावनाओं, संवेदनाओं को उभारा गया है। वर्तमान संदर्भ में इन संवेदनाओं की स्थिति को तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
‘नमक’ कहानी में हिंदुस्तान-पाकिस्तान में रहने वाले लोगों की भावनाओं, संवेदनाओं को उभारा गया है।
वर्तमान संदर्भ में भी ये इसी प्रकार बनी हुई हैं। संवेदनाएँ मानवीय रिश्तों पर आधारित होती हैं। इनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं होता। अभी भी दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के यहाँ जाने के लिए लालायित रहते हैं। कलाकार एक-दूसरे के देश में जाते रहते हैं। पाकिस्तान के कई बच्चों का भारत में सफल ऑपरेशन हुआ है। विवाह की भी अनेक घटनाएँ हुई हैं। रेल और बस में भी यात्री भरकर चलते हैं। ये सभी बातें इस तथ्य को प्रकट करती हैं कि दोनों देशों के लोगों की संवेदनाओं में समानता है।
साफिया की मनःस्थिति को कहानी में एक विशिष्ट संदर्भ में अलग तरह से स्पष्ट किया गया है। अगर आप साफिया की जगह होते तो क्या आपकी मनःस्थिति भी वैसी ही होती? स्पष्ट कीजिए।
हाँ हमारी मन:स्थिति भी वैसी ही होती जैसी साफिया की थी। साफिया सरकारी कानून के ऊपर इंसानी, मानवीय, प्रेम-प्यार के बंधन को मानती है। अंतत: उसे इसमें सफलता भी मिलती है। हम भी साफिया के समान अपने वायदे को अवश्य पूरा करते। उसके लिए तरह-तरह के उपाय सोचते। हमारे ऊपर भी कभी भावना तो कभी बुद्धि हावी होती।
भारत-पाकिस्तान के आपसी संबंधों को सुधारने के लिए दोनों सरकारें प्रयासरत हैं। व्यक्तिगत तौर पर आप इसमें क्या योगदान ने सकते हैं?
यह सही है कि भारत-पाकिस्तान के आपसी संबंधों को सुधारने के लिए दोनों सरकारें प्रयासरत हैं। समय-समय पर अनेक उपायों की घोषणा की जाती रहती है। 13 अप्रैल, 2006 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भारत के युद्धबंदियों से उनके परिवारों को मिलने की छूट दी। कभी-कभी इन प्रयासों में बाधा भी आ जाती है।
व्यक्तिगत तौर पर हम इसमें यह योगदान दे सकते हैं कि पाकिस्तान के लोगों के साथ मित्रता के संबंध बनाएँ। वहाँ से आने वाले कलाकारों का स्वागत-सत्कार करें। हम भी पाकिस्तान की यात्रा करें, वहाँ खेलने जाएँ। वहाँ के खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाएँ। यदि हम भी चाहें तो दोनों देशों के संबंधों को मधुर बना सकते हैं। हम गीत-संगीत के कार्यक्रमों में हिस्सेदारी कर सकते हैं।
लेखिका ने विभाजन से उपजी विस्थापन की समस्या का चित्रण करते हुए साफिया व सिख बीबी के माध्यम से यह भी परोक्ष रूप से संकेत किया है कि इसमें भी विवाह की रीति के कारण स्त्री सबसे अधिक विस्थापित है। क्या आप इससे सहमत हैं?
यह बिल्कुल सही है कि विवाह के परिणामस्वरूप स्त्री को ही विस्थापित होना पड़ता है। विवाह के बाद स्त्री या तो दूसरे शहर में जाकर बसती हैं अथवा उसे दूसरे देश में जाकर रहना पड़ता है। पर इस विस्थापन और देश छोड्कर हुए विस्थापन में काफी अंतर होता है। विवाह के बाद का विस्थापन उतना नहीं सालता जितना देश-विभाजन के कारण हुआ विस्थापन।
विभाजन के अनेक स्वरूपों में बँटी जनता को मिलाने की अनेक भूमियाँ हो सकती हैं-रक्त सबंध, विज्ञान, साहित्य व कला इनमें से कौन सब से ताकतवर है और क्यों?
विभाजन के अनेक स्वरूप में बँटी जनता को मिलाने के अनेक रूप और उपाय हो सकते हैं। इनमें साहित्य और कला का माध्यम सबसे ताकतवर रूप में जाना जा सकता है। साहित्य और कला में वह क्षमता है जो विभिन्न देशों की जनता के मध्य पारस्परिक सौहार्द की भावना बढ़ाती है। सच्चे साहित्य में पारस्परिक भेदभाव, घृणा और हिंसा को मिटाने की क्षमता है। इससे दूरियाँ मिटती हैं। साहित्य और कला का संबंध हमारे हृदय से होता है।
मान लीजिए आप अपने मित्र के पास विदेश जा रहे/रही हैं। आप सौगात के तौर पर भारत की कौन-सी चीज ले जाना पसंद करेंगे/करेंगी और क्यों?
हम भारत की निम्नलिखित वस्तुएँ सौगात के तौर पर विदेशी मित्र को ले जाना चाहेंगे-
- ताजमहल की प्रतिकृति
- दस्तकारी की चीजें
- रामनामी चादर
- नटराज की मूर्ति
उपर्युक्त सभी चीजें भारतीय कला एवं संस्कृति से जुड़ी है।
(क) हमारा वतन तो जी लाहौर ही है।
(ख) क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं?
सामान्यत: ‘ही’ निपात का प्रयोग किसी बात पर बल देने के लिए किया जाता है। ऊपर दिए गए दोनों वाक्यों में ‘ही’ के प्रयोग से अर्थ में क्या परिवर्तन आया है? स्पष्ट कीजिए। ‘ही’ का प्रयोग करते हुए दोनों तरह के अर्थ वाले पाँच-पाँच वाक्य बनाइए।
(क) इसमें लाहौर पर बल है अर्थात् केवल लाहौर ही है।
(ख) यहाँ विरोधी अर्थ की प्रतीति होती है-सभी कानून हकूमत के ही नहीं होते।
पाँच-पाँच वाक्य
1. हमारा खाना तो दाल-रोटी ही है।
2. उसका घर तो उधर ही है।
3. मेरा जन्मस्थान बंगलूर ही है।
4. यह गीता की ही पुस्तक है।
5. उसकी कार काली ही है।
1. क्या तुम सब बातें मेरी ही मानते हो?
2. क्या रमेश अंग्रेजी ही पड़ता है?
3. क्या गेंद लड़के ही खेलते हैं?
4. क्या नृत्य में सभी लड़कियाँ ही भाग लेंगी?
5. क्या समाज के नियम प्रभावी होते ही नहीं?
नीचे दिए गए शब्दों के हिंदी रूप लिखिए-
मुरौवत, आदमियत, अदीब, साडा, मायने, सरहद, अक्सर, लबोलहाजा, नफीस
मुरौवत = संकोच
आदमियत = मनुष्यता
अदीब = साहित्य
साडा = हमारा
मायने = अर्थ
सरहद = सीमा
अक्स = प्रभाव, प्रतिच्छाया
लबोलहजा = बोलचाल का ढंग
नफीस = सुरुचिपूर्ण
1. दो वर्ष यों बीत गए कि पता ही न चला।
2. रात यों गुजर गई कि दिन निकलने का पता न चला।
3. वह यों चला गया कि पता ही नहीं चला।
4. वसंत ऋतु यों निकल गई कि पता ही न चला।
5. दीपावली का पर्व यों आया और कब चला गया कि पता ही न चला।
‘नमक’ कहानी को लेखक ने अपने नजरिए से अन्य पुरुष शैली में लिखा है। आप साफिया की नजर से/उत्तर पुरुष शैली में इस कहानी को अपने शब्दों में कहें।
मैं एक सिख बीबी के यहाँ कीर्तन में गई हुई थी। बीबी लाहौर की रहने वाली थी और अब तक लाहौर को ही अपना वतन बताती थीं। जब उन्हें पता चला कि मैं कल लाहौर जाने वाली हूँ तो उन्होंने लाहौरी नमक की फरमाइश कर दी। मैंने इसका उनसे वायदा कर दिया। लाहौर पहुँचने पर मेरा प्रेमपूर्वक स्वागत हुआ। मेरा भाई वहाँ की पुलिस में है। मैंने उसे लाहौरी नमक की पुड़िया दिखाकर उसे भारत ले जाने की बात कही तो उसने साफ इनकार कर दिया। उसने इस काम को गैरकानूनी बताया, पर मैं तो नमक ले जाने पर तुली थी। मैंने कीनुओं की टोकरी में नमक की पुड़िया को छिपा लिया। पर मेरे मन में द्वंद्व था। मैं कोई भी काम चोरी-छिपे करने के विरुद्ध हूँ अत: मैंने अटारी में कस्टम आफिसर को नमक दिखाकर सारी बात बता दी। वह देहली का रहने वाला था और देहली को ही अपना वतन मानता था अत: उसने मुझे नमक ले जाने की इजाजत दे दी। मेरी गाड़ी अमृतसर जा पहुँची। वहाँ का कस्टम आफिसर ढाका का रहने वाला था और ढाका को ही अपना वतन मानता था। वह भी सहृदय निकला और उसने नमक लाने पर आपत्ति नहीं की। इस प्रकार मैं लाहौरी नमक भारत लाने में सफल हो गई। यह इंसानी रिश्तों की जीत थी।
साफिया लाहौर में कितने दिन रुकी? वहाँ उसका क्या सम्मान हुआ? उसके सामने क्या समस्या आई?
साफिया लाहौर में 15 दिन रुकी। पंद्रह दिन यों गुजरे कि पता ही नही चला। जिमखाना की शामें दोस्तों की मुहब्बत, भाइयों की खातिरदारियाँ-उनका बस न चलता था कि बिछुड़ी हुई परदेसी बहिन के लिए क्या कुछ न कर दें! दोस्तों, अजीजों की यह हालत कि कोई कुछ लिए आ रहा है कोई कुछ। कहाँ रखें, कैसे पैक करें, क्योंकर ले जाएँ-एक समस्या थी। सबसे बड़ी समस्या थी बादामी कागज की एक पुड़िया की जिसमें कोई सेर भर लाहौरी नमक था।
साफिया ने नमक की पुड़िया कहाँ और किस प्रकार छिपाई? उस समय वह क्या सोच रही थी?
साफिया ने कीनू कालीन पर उलट दिए। टोकरी खाली की और नमक की पुड़िया उठाकर टोकरी की तह में रख दी। एक बार झाँककर उसने पुड़िया को देखा और उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसने अपने किसी प्यारे को कब्र की गहराई में उतार दिया हो! कुछ देर उकडूँ बैठी वह पुड़िया को तकती रही और उन कहानियों को याद करती रही जिन्हें वह अपने बचपन में अम्मा से सुना करती थी, जिनमें शहजादा अपनी रान चीरकर हीरा छिपा लेता था और देवों, खौफनाक भूतों तथा राक्षसों के सामने से होता सरहदों से गुजर जाता था। इस जमाने में ऐसी कोई तरकीब नहीं हो सकती थी वरना वह अपना दिल चीरकर उसमें यह नमक छिपा लेती। उसने एक आह भरी।
साफिया और उसके भाई के विचारों में क्या अंतर था? ‘नमक’ पाठ के आधार पर बताइए।
साफिया हृदय प्रधान थी, उसका भाई विचार प्रधान।
साफिया के लिए इंसान से बढ्कर कुछ नहीं था जबकि भाई जिम्मेदारी को निभाने से बढ्कर कुछ नहीं मानता था।
साफिया को इंसानियत पर विश्वास था जबकि उसका भाई कस्टम अधिकारियों की जिम्मेदारी पर।
साफिया का भाई कोई भी गैर कानूनी काम करने में विश्वास नहीं रखता था। यही कारण है कि वह अपनी बहन साफिया को लाहौरी नमक भारत ले जाने से रोक रहा था। साफिया अपना वायदा निभाने को अधिक महत्त्व देती थी।
सिख बीबी ने साफिया को अपने बारे में क्या बताया?
सिख बीबी ने अपने बारे में साफिया को बताया कि वह लाहौर की रहने वाली है। जब विभाजन हुआ तब वे यहाँ आ गए। अब यहाँ कोठी है, व्यवसाय है। इसके बावजूद लाहौर की याद अब भी आती है। वह बार-बार घूम-फिर कर उसी जगह पर आ जाती है- ‘साडा लाहौर’। वह कहती है कि हमारा वतन तो लाहौर ही है।
इस कहानी में किस बात को उभारा गया है?
‘नमक’ कहानी में हिंदुस्तान-पाकिस्तान में रहने वाले लोगों की भावनाओं, संवेदनाओं को उभारा गया है।
वर्तमान संदर्भ में भी ये इसी प्रकार बनी हुई हैं। संवेदनाएँ मानवीय रिश्तो पर आधारित होती हैं। इनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं होता। अभी भी दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के यहाँ जाने के लिए लालायित रहते हैं। कलाकार एक-दूसरे के देश में जाते रहते हैं। पाकिस्तान के कई बच्चों का भारत में सफल ऑपरेशन हुआ है। विवाह की भी अनेक घटनाएँ हुई हैं। रेल और बस में भी यात्री भरकर चलते हैं। ये सभी बातें इस तथ्य को प्रकट करती हैं कि दोनों देशों के लोगों की संवेदनाओं में समानता है।
साफिया ने रात के वातावरण का वर्णन किस प्रकार किया है? लाहौर में उसका कौन-कौन था?
लेखिका ने रात के वातावरण का वर्णन करते हुए बताया है-
रात को तकरीबन डेढ़ बजे थे। मार्च की सुहानी हवा खिड़की की जाली से आ रही थी। बाहर चाँदनी साफ और ठंडी थी। खिड़की के करीब लगा चंपा का एक घना दरख्त सामने की दीवार पर पत्तियाँ के अक्स लहका रहा था। कभी किसी तरफ से किसी की दबी हुई खाँसी की आहट। दूर से किसी कुत्ते के भौंकने या रोने की आवाज, चौकीदार की सीटी और फिर सन्नाटा! यह पाकिस्तान था। यहाँ उसके तीन सगे भाई थे, बेशुमार चाहने वाले दोस्त थे, बाप की कब्र थी, नन्हे-मुन्ने भतीजे-भतीजियाँ थीं जो उससे बड़ी मासूमियत से पूछते ‘फूफीजान, आप हिंदुस्तान में क्यों रहती हैं, जहाँ हम लोग नहीं आ सकते।’ उन सबके और साफिया के बीच में एक सरहद थी और बहुत ही नोकदार लोहे की छड़ों का जंगला, जो कस्टम कहलाता था।
साफिया ने भाई से क्या पूछा और उसने क्या उत्तर दिया?
साफिया ने भाई से पूछा-”क्यों भैया, मैं नमक ले जा सकती हूँ?” भाई हैरान होकर बोला, “नमक? नमक तो नहीं ले जा सकते, गैर कानूनी है और.. और नमक का आप क्या करेंगी? आप लोगों के हिस्से में तो हमसे बहुत ज्यादा नमक आया है।” साफिया झुँझला गई, “मैं हिस्से-बखरे की बात नहीं कर रही हूँ, आया होगा। मुझे तो लाहौर का नमक चाहिए, मेरी माँ ने यही मँगवाया है।”
भाई की समझ में कुछ नहीं आया। माँ का क्यों जिक्र था, वे तो बँटवारे से पहले ही मर चुकी थी। जरा नरमी से समझाने के अंदाज में बोला, “देखिए बाजी! आपको कस्टम से गुजरना है और अगर एक भी ऐसी-वैसी वस्तु निकल आई तो आपके सामान की चिंदी-चिंदी बिखेर देंगे कस्टम वाले।”
भाई ने अदीबों (साहित्यकारों) पर क्या व्यंग्य किया और साफिया ने क्या जवाब दिया?
साफिया के भाई ने अदीबों पर व्यंग्य करते हुए कहा-”अब आपसे कौन बहस करे। आप अदीब ठहरीं और सभी अदीबों का दिमाग थोड़ा-सा तो जरूर ही घूमा हुआ होता है। वैसे मैं आपको बताए देता हूँ कि आप ले नहीं जा पाएँगी और बदनामी मुफ्त में हम सबकी भी होगी। आखिर आप कस्टमवालों को कितना जानती हैं?”
साफिया ने गुस्से से जवाब दिया, “ कस्टमवालों की जानें या न जानें, पर हम इंसानों को थोड़ा-सा जरूर जानते हैं और रही दिमाग की बात सो अगर सभी लोगों का दिमाग हम अदीबों की तरह घूमा हुआ होता तो यह दुनिया कुछ बेहतर ही जगह हो जाती, भैया।”
अमृतसर में साफिया को जो कस्टम अफसर मिला वह कहाँ का रहने वाला था? उसने किताब दिखाकर क्या बात बताई?
अमृतसर में साफिया को जो कस्टम अफसर मिला वह ढाका का रहने वाला सुनील दास गुप्त था। उसे 1946 में उसके दोस्त शमसुलइ सलाम ने एक किताब प्यार के साथ भेंट की थी। गुप्त ने जो बात बताई वह यह थी-”जब डिवीजन हुआ तभी आए, मगर हमारा वतन ढाका है, मैं तो कोई बारह--तेरह साल का था। पर नजरुल और टैगोर को तो हम लोग बचपन से पड़ते थे। जिस दिन हम रात यहाँ आ रहे थे उसके ठीक एक वर्ष पहले मेरे सबसे पुराने, सबसे प्यारे, बचपन के दोस्त ने मुझे यह किताब दी थी। उस दिन मेरी सालगिरह थी-फिर हम कलकत्ता (कोलकाता) रहे, पढ़े, नौकरी भी मिल गई, पर हम वतन आते-जाते थे।”
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‘नमक’ कहानी में भारत व पाक की जनता के आरोपित भेदभावों के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला हुआ है, कैसे?
भारत-पाक का विभाजन एक त्रासदी था। राजनैतिक इच्छाओं का दुष्परिणाम जनता को भोगना पड़ा था। जनता के ऊपर भेदभाव आरोपित कर दिए गए थे, जबकि दोनों देशों की जनता के बीच मुहब्बत का जज्बा था। अभी भी यह नमकीन स्वाद उनकी रगों में घुला हुआ है। नमकीन स्वाद मीठे से भी अधिक असरदार होता है। नमक का फर्ज जिम्मेदारी और निष्ठा को दर्शाता है। इस स्वाद में अपनापन होता है। यहाँ लाहौरी नमक को माध्यम बनाकर इस मुहब्बत की भावना को उजागर किया गया है। दोनों देशों के लोग अभी भी मुहब्बत की नजर से एक-दूसरे को देखते हैं।
‘नमक’ कहानी का प्रतिपाद्य क्या है?
रजिया सज्जाद जहीन की ‘नमक’ शीर्षक कहानी भारत-पाक विभाजन के बाद सरहद के दोनों-तरफ के विस्थापित-पुनर्वासित जनों के दिलों को टटोलती एक मार्मिक कहानी है।
साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया?
साफिया का भाई पाकिस्तान में पुलिस अफसर था। साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया भारत ले जाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि यह गैरकानूनी था। पाकिस्तान से लाहौरी नमक भारत ले जाना प्रतिबंधित था। उसके अनुसार नमक की पुड़िया निकल आने पर बाकी सामान की भी चिंदी-चिंदी बिखेर दी जाएगी। नमक की पुड़िया तो जा नहीं पाएगी, ऊपर से उनकी बदनामी मुफ्त में हो जाएगी।
साफिया को अटारी में समझ में नहीं आया कि कहाँ लाहौर खत्म हुआ और किस जगह अमृतसर शुरू हो गया, ऐसा क्यों?
साफिया को लाहौर और अमृतसर में कोई विशेष अंतर प्रतीत नहीं हुआ। इसका कारण यह था कि दोनों शहरों की जमीन, बोली, पहनावा, बात करने का ढंग एक जैसा था। दोनों तरफ के लोग एक ही प्रकार से मिल-जुलकर बतिया रहे थे। लेखिका को कहीं कोई अंतर नहीं लगा।
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