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फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ के जीवन का परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए तथा रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
जीवन-परिचय: श्री फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार हैं। इनका जन्म 1921 ई. में बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना नामक गाँव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। 1942 के ‘भारत छोड़ो आदोलन’ में सक्रिय भाग लिया और पढ़ाई बीच में ही छोड्कर राजनीति में रुचि लेने लगे। रेणु जी साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित थे। वे राजनीति में प्रगतिशील विचारधारा के समर्थक थे। फिर वे साहित्य-सृजन की ओर उन्मुख हुए। 1977 ई. में आपका देहान्त हो गया।
साहित्यिक-परिचय: रेणु जी हिन्दी के प्रथम आंचलिक उपन्यासकार हैं। उन्होंने अंचल-विशेष को अपनी रचनाओं का आधार बनाकर वहाँ के जीवन और वातावरण का सजीव अंकन किया है। इनकी रचनाओं में आर्थिक अभाव तथा विवशताओं से जूझता समाज यथार्थ के धरातल पर उभर कर सामने आता है। अपनी गहरी मानवीय संवेदना के कारण वे अभावग्रस्त जनता की बेबसी और पीड़ा भोगते से लगते हैं। इनकी रचनाओं में अनूठी संवेदनशीलता मिलती है।
सन् 1954 में उनका बहुचर्चित आंचलिक उपन्यास मैला आँचल प्रकाशित हुआ जिसने हिन्दी उपन्यास को एक नई दिशा दी। हिन्दी जगत में आंचलिक उपन्यासों पर विमर्श मैला चल सै ही प्रारंभ हुआ। आंचलिकता की इस अवधारणा ने उपन्यासों और कथा-साहित्य में गाँव की भाषा-संस्कृति और वहाँ के लोक जीवन को केन्द्र में ला खड़ा किया। लोकगीत, लोकोक्ति, लोकसंस्कृति, लोकभाषा एवं लोकनायक की इस अवधारणा ने भारी-भरकम चीज एवं नायक की जगह अंचल को ही नायक बना डाला। उनकी रचनाओं में अंचल कच्चे और अनगढ़ रूप में ही आता है इसीलिए उनका यह अंचल एक तरफ शस्य-श्यामल है तो दूसरी तरफ धूल भरा और मैला भी। स्वातंत्र्योत्तर भारत में जब सारा विकास शहर केन्द्रित होता जा रहा था ऐसे में रेणु ने अपनी रचनाओं से अंचल की समस्याओं की ओर भी लोगों का ध्यान खींचा। उनकी रचनाएँ इस अवधारणा को भी पुष्ट करती हैं कि भाषा की सार्थकता बोली के साहचर्य में ही है।
रेणु जी मूलत: कथाकार हैं किन्तु उन्होंने अनेक मर्मस्पर्शी निबंध भी लिखे हैं। उनके निबंधों में भी सजीवता और रोचकता बनी हुई है। रेणु जी की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं–
कहानी संग्रह: ‘ठुमरी’, ‘अग्निखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘तीसरी कसम’ आदि।
उपन्यास: ‘मैला आँचल’, ‘परती परिकथा’ आदि।
निबंध-संग्रह: ‘श्रुत अश्रुतपूर्व।’
भाषा-शैली: रेणु जी की भाषा अत्यंत सरल, सहज एवं प्रवाहपूर्ण है। उनकी भाषा में चित्रात्मकता एवं काव्यात्मकता का गुण है। वे वर्ण्य विषय का एक सजीव चित्र प्रस्तुत कर देते हैं। उनकी भाषा में कविता की सी गति कोमलता और प्रवाह मिलता है। उनकी भाषा में भावों को स्पष्ट कर देने की क्षमता भी विद्यमान है। भावना में आवेग के अवसरों पर उनकी वाक्य-रचना संक्षिप्त हो जाती है। कई स्थलों पर कुछ शब्द ही वाक्य का काम कर जाते हैं। उपयुक्त विशेषणों का चयन, सरस मुहावरे एवं लोकोक्तियों का प्रयोग तथा भावपूर्ण संवादों के प्रयोग ने उनकी भाषा-शैली को समृद्ध बनाया है। प्रकृति का मानवीकरण उनकी विशेषता है- “परती का चप्पा-चप्पा हँस रहा है।”
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलाखिलाकर हँस पड़ते थे।
सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी-कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज ‘हरे राम! हे भगवान!’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी।
कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।
1. पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
2. अंधेरी रात का दृश्य कैसा था?
3. गाँव का वातावरण कैसा था?
4. कुत्तों के विषय में लेखक क्या कहता है?
1. पाठ का नाम:पहलवान की ढोलक।
लेखक का नाम:फणीश्वरनाथ रेणु।
2. अँधेरी रात में आकाश में तारे चमक रहे थे, चारों ओर चुप्पी व्याप्त थी। यह शब्दहीनता दु:खों को दबाने का प्रयास करती है। पृथ्वी पर अंधकार छाया हुआ है। कोई तारा टूटकर धरती की तरफ चलता भी है तो उसकी ज्योति और शक्ति क्षीण होती जाती है और दूसरे तारे उस पर खिलखिलाकर हँसते हैं।
3. गाँव का वातावरण शांत था। कभी-कभी सियारों का क्रंदन और पेयक की डरावनी आवाज से शब्दहीनता भंग हो जाती थी कहीं-कहीं गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै (उल्टी) करने की आवाज सुनाई देती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकार कर रो पड़ते थे।
4. लेखक बताता कि कुत्तों में परिस्थिति को समझने की विशेष बुद्धि होती है। वे दिन के समय राख के घूरों (ढेरों) पर गठरी की तरह सिकुड़कर पड़े रहते हैं। रात को वे सब मिलकर रोते हैं।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की एक विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।
रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को, ताल ठोककर, ललकारती रहती थी-सिर्फ पहलवान की ढोलक! संध्या से लेकर प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती-’चट्-धा, गिड़-धा,… चट्-धा, गिड़-धा।’ यानी ‘आ जा भिड़ जा, आ जा, भिड़ जा।…’बीच-बीच में- ‘चटाक् चट्-धा, चटाक् चट्-धा।’ यानी ‘उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे!!’
यही आवाज मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी।
लुट्टसिहं पहलवान!
यों तो वह कहा करता था- ‘लुट्टन सिंह पहलवान को होल इंडिया भर के लोग जानते हैं’, किन्तु उसके ‘होल-इंडिया’ की सीमा शायद एक जिले की सीमा के बराबर ही हो। जिले भर के लोग उसके नाम से अवश्य परिचित थे।
1. पाठ का नाम तथा लेखक का नाम बताइए।
2. कुत्तों के बारे में क्या बताया गया है?
3. रात्रि की भीषणता क्या थीं? इनको कौन, किस प्रकार ललकारता था?
4. कौन- सी आवाज क्या असर दिखाती थी?
1. पाठ का नाम: पहलवान की ढोलक।
लेखक का नाम: फणीश्वरनाथ ‘रेणु’।
2. कुत्तों के बारे में यह बताया गया है कि उनमें परिस्थितियों को ताड़ने की विशेष बुद्धि होती है। वे दिन भर राख के ढेर पर गठरी की तरह सिकुड़कर पड़े रहते हैं पर संध्या या रात में सब मिलकर रोते हैं।
3. रात्रि की भीषणताएँ यह थीं-जाड़े की रात थी, अमावस्या का अंधकार फैला था। ऊपर से मलेरिया और हैजे से पीड़ित- भयभीत रहते थे। इन सब विषमताओं को लुट्टन पहलवान की ढोलक की आवाज ललकारती थी। वह एक ही गति से बजती रहती थी और इन्हें ललकारती रहती थी।
4. ढोलक की आवाज-चटाक्-चद-धा-यानी उठाकर पटक दे- आवाज मृत गाँव में संजीवनी शक्ति भरती थी।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
एक बार वह ‘दंगल’ देखने श्याम नगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना-कुछ सोचे-समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे’ को चुनौती दे दी।
‘शेर के बच्चे’ का असल नाम था चाँव सिंह। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ, पंजाब से पहले-पहल श्याम नगर मेले में आया था। सुंदर जवान, अंग-प्रत्यंग से सुन्दरता टपक पड़ती थी। तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उप्र के सभी पट्टों को पछाड़कर उसने ‘शेर के बच्चे’ की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान, उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चाँदसिंह बीच-बीच में दहाड़ता फिरता था।
1. एक बार कौन, कहाँ गया? वहाँ का उस पर क्या प्रभाव पड़ा?
2. किस बात से उत्साहित होकर उसने किसे चुनौती दे डाली?
3. ‘शेर का बच्चा’ कौन था? उसके बारे में बताइए।
4. वह अपने टायटिल को सही प्रमाणित करने के लिए क्या करता था?
1. एक बार लुट्टन पहलवान दंगल देखने श्याम नगर मेला गया। वहाँ उसने पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखे। इन्हें देखकर उससे रहा नहीं गया।
2. जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती आवाज ने लुट्टन पहलवान की नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना सोचे-समझे दंगल में आए अन्य पहलवान ‘शेर के बच्चे’ को चुनौती दे डाली।
3. ‘शेर के बच्चे’ का असली नाम चाँदसिंह था। वह एक पहलवान था। वह अपने गुरु पहलवान बादलसिंह के साथ पंजाब से आया था। वह पहली बार श्याम नगर आया था। वह सुन्दर और जवान था। उसने कई पंजाबी और पठान पहलवानों को पछाड़कर ‘शेर के बच्चे’ की उपाधि प्राप्त की थी।
4. चाँद पहलवान दंगल के मैदान में लंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। वह अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए बीच-बीच में दहाड़ता रहता था।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-’पागल है पागल, मरा-ऐं!’ मरा-मरा!....पर वाह रे बहादुर। लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को संभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपए का नोट देकर कहने लगे- “जाओ, मेला देखकर घर जाओ।”
1. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली क्यों मच गई?
2. श्याम नगर के राजा का क्या नाम था? उसे क्या प्रिय लगता था?
3. राजा साहब ने बीच में ही कुश्ती क्यों रुकवा दी?
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को कितने रुपये का नोट दिया और क्यों?
1. एक बार श्यामनगर में मेला लगा हुआ था। लुट्टन सिंह भी वहाँ मेला देखने गया। वहाँ दंगल लगा हुआ था जिसमें शेर के बच्चे के नाम से एक मशहूर पहलवान आया हुआ था। आज तक उसकी बराबरी का कोई पहलवान नहीं था लेकिन ढोल की धुन से जोश में आकर लुट्टन सिंह ने उस शेर के बच्चे को चुनौती दे दी। इसी चुनौती को देखकर शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई।
2. श्यामनगर के राजा का नाम श्यामानंद था। उसे शिकार प्रिय लगता था। इसके साथ-साथ उसे दंगल का भी बहुत शौक था।
3. राजा साहब चाँद सिंह पहलवान को जानता था। वह उसके दावपेंच पहले भी देख चुका था। चाँद सिंह पहले ही शेर के बच्चे की उपाधि प्राप्त कर चुका था लेकिन लुट्टन सिंह पहली बार ही दंगल में लड़ा था। इसीलिए राजा साहब ने कुश्ती बीच में रुकवा दी।
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को दस रुपये का नोट दिया क्योंकि उसने ‘शेर के बच्चे’ नामक बलशाली पहलवान से लड़ने की हिम्मत की थी।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
“वहीं दफना वे, बहादुर!” बादल सिंह अपने शिष्य को उत्साहित कर रहा था।
लुट्टन की आँखें बाहर निकल रही थीं। उसकी छाती फटने-फटने को हो रही थी। राजमत, बहुमत चाँद के पक्ष में था। सभी चाँद को शाबाशी दे रहे थे। गन के पक्ष में सिर्फ ढोल की आवाज थी, जिसके ताल पर वह अपनी शक्ति और दाँव-पेंच की परीक्षा ले रहा था-अपनी हिम्मत को बढ़ा रहा था। अचानक ढोल की एक पतली आवाज सुनाई पड़ी- ‘धाक-धिना, तिरकट-तिना, धाक-धिना, तिरकट-तिना..!!’
कुछन को स्पष्ट सुनाई पड़ा, ढोल कह रहा था-”दाँव काटो, बाहर हो जा दाँव काटो, बाहर हो जा!!”
लोगों के आश्चर्य की सीमा नहीं रही, लुट्टन दाँव काटकर बाहर निकला और तुरन्त लपककर उसने चाँद की गर्दन पकड़ ली।
“वाह रे मिट्टी के शेर!”
1. बादलसिंह ने किससे. किसके लिए क्या कहा?
2. लुट्टन की क्या दशा हो रही थी?
3. लुट्टन को ढोल की क्या आवाज सुनाई दी और उसने उसका क्या अर्थ लिया?
4. लोगों को किस बात पर आश्चर्य हुआ?
1. बादलसिंह ने अपने शिष्य चाँदसिंह (शेर का बच्चा) से कहा कि वह लुट्टन को कुश्ती में वहीं दफना दे अर्थात् बुरी तरह पराजित कर दे l
2. लुट्टन की आँखें बाहर निकल रही थीं। उसकी छाती फटने को हो रही थी। उस समय सभी लोग चाँद के पक्ष में थे। वे उसी को शाबासी दे रहे थे।
3. लुट्टन ने ढोल पर एक पतली आवाज सुनी-’धाक-धिना, तिरकट-तिना धाक-धिना, तिरकट तिना’। लुट्टन ने ढोल की इस आवाज का यह अर्थ लिया-’दाँव काटो, बाहर हो जा, दाँव काटो बाहर हो जा।’
4. लुट्टन ने ढोल की आवाज के मुताबिक किया और दाँव काटकर चाँद की गर्दन पकड़ ली। लोगों को यह दृश्य देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उन्हें ऐसी उम्मीद न थी।
विजयी लुट्टन जूदता-फाँदता, ताल-ठोंकता सबसे पहले बाजे वालों की ओर दौड़ा और ढोलों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया। राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए। मैनेजर साहब ने आपत्ति की- 'हें-हें…अरे-रे!' किन्तु राजा साहब ने स्वयं उसे छाती से लगाकर गद्गद् होकर कहा- 'जीते रहो, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली!'
पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँदसिंह की आँखें पोंछ रही थी। लुट्टन को राजा ने पुरस्कृत ही नहीं किया, अपने दरबार में सदा के लिए रख लिया। तब से लुट्टन राज-पहलवान हो गया और राजा साहब उसे लुट्टन सिंह कहकर पुकारने लगे। राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया- 'हुजूर! जाति का दुसाध…सिंह…!'
मैनेजर साहब क्षत्रिय थे। ‘क्लीन-शेव्ड’ चेहरे को संकुचित करते हुए, अपनी शक्ति लगाकर नाक के बाल उखाड़ रहे थे। चुटकी से अत्याचारी बाल को रगड़ते हुए बोले- 'हाँ सरकार, यह अन्याय है!'
राजा साहब ने मुस्कुराते हुए सिर्फ इतना ही कहा-'उसने क्षत्रिय का काम किया है।'
A. कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने क्या किया? | (i) कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने ताल-ठोंककर, ढोल वालों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया। |
B. उसके व्यवहार पर किसने आपत्ति की और क्यों? | (ii) उसके इस प्रकार के व्यवहार पर मैनेजर साहब ने आपत्ति की क्योंकि इससे राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए थे। |
C. राजा ने लुट्टन के साथ क्या व्यवहार किया और उस पर किसने ऐतराज किया? | (iii) राजा ने लुट्टन को छाती से लगा लिया और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा था- “जीते रही, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली।” जब राजा ने लुट्टन को दरबार में रखने की घोषणा की तथा उसे लुट्टनसिंह कहकर पुकारा तब राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया और अपना ऐतराज प्रकट करते हुए कहा-यह तो जाति का दुसाध है। |
D. मैनेजर ने क्या कहकर विरोध किया? | (iv) मैनेजर ने यह कहकर विरोध किया-यह अन्याय है। |
E. मैनेजर ने क्या कहकर विरोध किया? | (v) राजा साहब ने यह कहकर लुट्टन का बचाव किया कि उसने काम तो क्षत्रिय का किया है। अत:वह इस सम्मान का अधिकारी है। |
A. कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने क्या किया? | (i) कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने ताल-ठोंककर, ढोल वालों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया। |
B. उसके व्यवहार पर किसने आपत्ति की और क्यों? | (ii) उसके इस प्रकार के व्यवहार पर मैनेजर साहब ने आपत्ति की क्योंकि इससे राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए थे। |
C. राजा ने लुट्टन के साथ क्या व्यवहार किया और उस पर किसने ऐतराज किया? | (iii) राजा ने लुट्टन को छाती से लगा लिया और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा था- “जीते रही, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली।” जब राजा ने लुट्टन को दरबार में रखने की घोषणा की तथा उसे लुट्टनसिंह कहकर पुकारा तब राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया और अपना ऐतराज प्रकट करते हुए कहा-यह तो जाति का दुसाध है। |
D. मैनेजर ने क्या कहकर विरोध किया? | (iv) मैनेजर ने यह कहकर विरोध किया-यह अन्याय है। |
रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकार कर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।
रात्रि में पहलवान की ढोलक किन्हें ललकार लगाती थी?
‘सजीवनी शक्ति’ से लेखक का क्या आशय है?
ढोलक का गाँव के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता था?<...
रात्रि की विभीषिका को स्पष्ट कीजिए।
रात्रि में पहलवान की ढोलक रात्रि की विभीषिका को और गाँव वालों को ललकार लगाती थी।
ढोलक एक ऐसी संजीवनी शक्ति है जो अर्द्धमृत को जीवित कर दे जो बच्चे और बूढ़ों में स्फूर्ति उमंग ला दे अर्थात् मरते हुओं में भी जान डाल दे।
ढोलक गाँव वालों की संजीवनी शक्ति का काम करती और वहाँ के लोगों के हृदय में जो भय का सन्नाटा रहता दे उसे चीरती।
गाँव में गरीबी और कष्ट भरे थे। रात को सन्नाटा रहता था। महामारी ने उसकी विभीषिका को और डरावना बना दिया था। लोग रात भर जागते रहते थे।
रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकार कर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।
A. गद्याशं में रात्रि की किस विभीषिका की चर्चा की गई है? ढोलक उसको किस प्रकार की चुनौती देती थी? | (i) इस गद्यांश में मलेरिया और हैजे की विभीषिका की चर्चा की गई है। ढोलक उसको ललकार की चुनौती देती थी। उसकी आवाज महामारी की भीषणता को कम करती थी। |
B. किस प्रकार के व्यक्तियों को ढोलक से राहत मिलती थी? यह राहत कैसी थी? | (ii) ढोलक की आवाज से उन व्यक्तियों को राहत मिलती थी जो बीमारी के कारण अधमरे हो रहे थे जिन्हें न तो दवा मिल रही थी और न परहेज का खाना। ढोलक की आवाज से उनमें संजीवनी शक्ति आ जाती थी। |
C. ‘दंगल के दृश्य’ से लेखक का क्या अभिप्राय है? यह दृश्य लोगों पर किस तरह का प्रभाव डालता था? | (iii) बीमारी के कारण बूढ़े, बच्चों और जवानों की बुझी आँखों में ढोलक की आवाज पड़ते ही दंगल का सा दृश्य नाचने लगता था अर्थात् उनमें उत्साह का संचार हो जाता था। |
D. ढोलक की आवाज अपने गुण और शक्ति की दृष्टि से कहीं कम प्रभावकारी थी और कहीं अधिक-ऐसा क्यों? | (iv) ढोलक की आवाज अपने गुण तथा शक्ति की दृष्टि से कहीं अधिक प्रभाव दिखाती थी तो कहीं कम। ऐसा इसलिए था क्योंकि कहीं लोगों को ज्यादा राहत महसूस होनी थी तो कहीं कम। ढोलक की आवाज में सर्वनाश रोकने की शक्ति भले ही न हो पर उसका प्रभाव सभी पर कम-अधिक पड़ता था। |
A. गद्याशं में रात्रि की किस विभीषिका की चर्चा की गई है? ढोलक उसको किस प्रकार की चुनौती देती थी? | (i) इस गद्यांश में मलेरिया और हैजे की विभीषिका की चर्चा की गई है। ढोलक उसको ललकार की चुनौती देती थी। उसकी आवाज महामारी की भीषणता को कम करती थी। |
B. किस प्रकार के व्यक्तियों को ढोलक से राहत मिलती थी? यह राहत कैसी थी? | (ii) ढोलक की आवाज से उन व्यक्तियों को राहत मिलती थी जो बीमारी के कारण अधमरे हो रहे थे जिन्हें न तो दवा मिल रही थी और न परहेज का खाना। ढोलक की आवाज से उनमें संजीवनी शक्ति आ जाती थी। |
C. ‘दंगल के दृश्य’ से लेखक का क्या अभिप्राय है? यह दृश्य लोगों पर किस तरह का प्रभाव डालता था? | (iii) बीमारी के कारण बूढ़े, बच्चों और जवानों की बुझी आँखों में ढोलक की आवाज पड़ते ही दंगल का सा दृश्य नाचने लगता था अर्थात् उनमें उत्साह का संचार हो जाता था। |
D. ढोलक की आवाज अपने गुण और शक्ति की दृष्टि से कहीं कम प्रभावकारी थी और कहीं अधिक-ऐसा क्यों? | (iv) ढोलक की आवाज अपने गुण तथा शक्ति की दृष्टि से कहीं अधिक प्रभाव दिखाती थी तो कहीं कम। ऐसा इसलिए था क्योंकि कहीं लोगों को ज्यादा राहत महसूस होनी थी तो कहीं कम। ढोलक की आवाज में सर्वनाश रोकने की शक्ति भले ही न हो पर उसका प्रभाव सभी पर कम-अधिक पड़ता था। |
कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।
कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेच के बीच गहरा तालमेल था। कुश्ती के समय जब ढोल बजता था तब लुट्टन रगों में हलचल पैदा हो जाती थी। हर थाप पर उसका खून उबलने लगता था। उसे हर थाप पर प्रेरणा मिलती थी। उसके दाँव-पेंचों में अचानक फुर्ती बढ़ जाती थीं। उसे ढोलक पर हर ताल कुश्ती को दाँव बताती हुई महसूस होती थी।
कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में तालमेल-
1. ढोल: ‘धाक-धिना, तिरकट-तिना, धाक-धिना, तिरकट-तिना।’
इशारा: ‘दाँव काटो, बाहर हो जा, दाँव काटो बाहर हो जा।’
लुट्टन का दाँव-पेंच: लुट्टन दाँव काटकर निकल आया और उसने चाँद की गर्दन पकड़ ली।
2. ढोल: ‘चटाक्-चट्-धा.’चटाक्-चट्-धा’
इशारा: उठा पटक दे! उठा पटक दे।
लुट्टन का दाँव-पेंच: लुट्टन ने चालाकी से दाँव लगाकर चाँद को जमीन पर दे मारा।
3. ढोल ‘धिना-धिना,धिना-धिक।’
इशारा: चित करो, चित करो।
लुट्टन का दाँव-पेंच: लुट्टन ने चाँद को चारों खाने चित कर दिया।
कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?
लुट्टन जब नौ वर्ष का था तभी उसके पिता चल बसे थे। सौभाग्यवश उसकी शादी हो चुकी थी। उसका पालन-पोषण विधवा सास ने किया। बचपन में वह गाय चराता तथा गाय का ताजा दूध पीता था और कसरत करता था। लुट्टन के जीवन में कसरत की धुन सवार होने का भी एक कारण था। गाँव के लोग उसकी सास को तकलीफ दिया करते थे। उन लोगों से बदला लेने के लिए ही वह कसरत की ओर मुड़ा ताकि शरीर को मजबूत बना सके। गाँव में उसे पहलवान समझा जाने लगा।
उसके जीवन में अगला दौर तब शुरू हुआ जब उसने श्याम नगर के मेले में दंगल में पंजाब से आए ‘शेर के बच्चे’ चाँद पहलवान को धरती सुँघा दी। तब उसे राजदरबार का पहलवान बना दिया गया। फिर वह राजदरबार का दर्शनीय ‘जीव’ हो गया। उसने अनेक नामी पहलवानों को हरा दिया।
लुट्टन के जीवन के उत्तरार्द्ध में उसके बेटे भी पहलवानी के क्षेत्र में उतरे। वे भी राजदरबार में स्थान पा गए। लुट्टन उन्हें कुश्ती के दाँव-पेंच सिखाने लगा।
लुट्टन के जीवन का अंतिम भाग कष्टपूर्ण रहा। बूढ़े राजा के मरने पर राजकुमार ने दरबार से उसकी छुट्टी कर दी। अब उसे खाने के भी लाले पड़ गए। तभी गाँव में फैली महामारी ने उसके बेटों को लील लिया। वह उन्हें अपने कंधों पर लादकर नदी में बहा आया। इसके चार-पाँच दिन बाद उसने भी दम तोड़ दिया। सियारों ने उसकी जाँघ का माँस तक खा लिया था।
लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?
लुट्टन का कोई गुरु नहीं था। उसने पहलवानों के दाँव-पेंच स्वयं सीखे थे। जब वह दंगल देखने गया तो ढोल की थाप ने उसमें जोश भर दिया था। इसी ढोल की थाप पर उसने चाँद सिंह पहलवान को चुनौती दे डाली थी और उसे चित कर दिखाया था। ढोल की थाप से उसे ऊर्जा मिली और वह जीत गया। इसी कारण ववहढोल को ही अपना गुरु कहता था। ढोल की थाप ने ही उसे पहलवानों के गुरु सिखाए-समझाए थे अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था। लुट्टन पहलवान ने ऐसा इसलिए कहा होगा ताकि वह अपने पहलवान बेटों को ढोल के बोलों में छिपे अर्थ को समझना सिखा सके। यह सच भी था कि लुट्टन ने किसी गुरु से पहलवानी नहीं सीखी थी। उसने तो ‘शेर के बच्चे’ अर्थात् चाँद पहलवान को पछाड़ने के लिए ढोल के बोलों (ध्वनि में छिपे अर्थ) से ही प्रेरणा ली थी। हाँ, इतना अवश्य था कि वह इन आवाजों का मतलब पढ़ना जान गया था। ढोल की आवाज ‘धाक-धिना, तिरकट…तिना चटाक् चट् धा धिना-धिना, धिक-धिना’ जैसी प्रेरणाप्रद ध्वनि ने ही उसे चाँद को पछाड़ने का तरीका समझाया था। अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था।
गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?
गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल इसलिए बजाता रहा ताकि वह अपनी हिम्मत न टूटने का पता लोगों को दे सके। वह अंतिम समय तक अपनी बहादुरी और दिलेरी का परिचय देना चाहता था। ढोल के साथ उसके हृदय का नाता जुड़ गया था।
ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?
ढोलक की आवाज़ ही रात्रि की विभीषिका को चुनौती देती सी जान पड़ती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो पर ढोलक की आवाज गाँव के अर्धमृत औषधि-उपचार-पथ्य विहीन प्राणियों में संजीवनी शक्ति भरने का काम करती थी। ढोलक की आवाज सुनते ही बूढ़े-बच्चे-जवानों की कमजोर आँखों के सामने दंगल का दृश्य नाचने लगता था। तब उन लोगों के बेजान अंगों में भी बिजली दौड़ जाती थी। यह ठीक है कि ढोलक की आवाज में बुखार को दूर करने की ताकत न थी और न महामारी को रोकने की शक्ति थी पर उसे सुनकर मरते हुए प्राणियों को अपनी आँखें मूँदते समय (प्राण छोड़ते समय) कोई तकलीफ नहीं होती थी। तब वे मृत्यु से नहीं डरते थे।ड
महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?
महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूँखते-कराहते अपने-अपने घरों से निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे। वे बचे रह गए लोगों को रोकर दु:खी न होने को कहते थे।
सूर्यास्त होते ही लोग अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते थे और चूँ तक न करते थे। तब उनके बोलने की शक्ति भी जा चुकी होती थी। पास में दम तोड़ते हुए पुत्र को अंतिम बार ‘बेटा’ कहकर पुकारने की हिम्मत माताओं को नहीं होती थी।
कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था।
(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?
(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?
(क) अब कोई राजा या रियासत नहीं है।
(ख) हाँकी, क्रिकेट और फुटबॉल।
(ग) गाँवों में कुश्ती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पहलवानों को आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
आशय स्पष्ट करें-
आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
इसमें रात्रिकालीन प्रकृति का चित्रण है। अमावस्या की काली ठंडी रात है। आकाश में तारे चमक रहे थे पर धरती पर कहीं रोशनी न थी। आकाश का कोई तारा चाहकर भी पृथ्वी तक नहीं आ पाता था क्योंकि उसकी रोशनी और ताकत रास्ते में ही समाप्त हो जाती थी। अन्य तारे उसके इस प्रयास का मजाक उड़ाते थे।
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पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।
मानवीकरण के अंश
- अँधेरी रात चुपचाप आलू बहा रही थी।
रात का मानवीकरण किया गया है क्योंकि उसे मानव की तरह आँसू बहाते दर्शाया गया है। [शोक का वातावरण था।]
- तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
तारों का मानवीकरण: उन्हें हँसते दर्शाया गया है। [मजाक उड़ाने का भाव]
- ढोलक लुटकी पड़ी थी।
ढोलक का मानवीकरण-लुढ़कना मानवीय क्रिया है।
पाठ में मलेरिया और हैजे़ से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसी किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करे और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगे?
गाँव में डेंगू फैला हुआ है। मच्छरों ने गाँव के अधिकांश लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। लोग साधारण बुखार को भी डेंगू समझकर भयभीत हो रहे हैं। डॉक्टरों के पास मरीजो की लंबी कतारें लगी हैं। प्लेटलेट्स की भारी कमी हो गई है।
हम ऐसी स्थिति से निपटने के लिए घरों में सफाई रखने पर ध्यान देंगे। घरों में कहीं भी मच्छरों को पनपने नहीं देंगे। पूरी बाँहों के कपड़े पहनेंगे। बीमारी के लक्षण देखते ही तुरंत डॉक्टर के पास जाकर डेंगू की जाँच करवाएँगे। लोगों की मदद भी करेंगे।
ढोलक संगीत कला का अनिवार्य वाद्ययंत्र है। इसकी थाप हमारे मन में उत्साह का संचार कर देती है। कला के साथ जीवन का गहरा संबंध है। कला के दो रूप हैं- Plastic Art और Performing Art। पहले रूप में चित्रकला, वास्तुकला आदि आती हैं तो दूसरे रूप में संगीत, नृत्य, अभिनय आदि हैं। इन सभी का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। कला विहीन मनुष्य पशु के समान होता है।
हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए-
चिकित्सा
क्रिकेट
न्यायालय
अपनी पसंद का कोई क्षेत्र।
क्रिकेट: विकेट, गेंद, क्षेत्ररक्षण, बल्लेबाजी, कैच रन आउट।
न्यायालय: जज वकील पेशी दंड साक्षी, केस।
शिक्षा: शिक्षक विद्यालय, पुस्तक, विद्यार्थी श्यामपट्ट।
पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न सर्जनात्मकता केवल भाषागत सृजनात्मकता को बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों, वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवत: वह अर्थगत चमत्कार और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
● फिर बाज़ की तरह उस पर टूट पड़ा।
● राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।
● पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।
इन विशिष्ट भाषा-प्रयोगों का प्रयोग करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।
दंगल के अंदर पहले तो थोड़ा झुका फिर बाज की तरह दूसरे पहलवान पर टूट पड़ा। उस पर राजा की कृपा-दृष्टि गई। राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। उसे दरबार में स्थान मिल गया। उस पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों (पुत्रों) को पैदा कर स्वर्ग सिधार गई। वे दोनों पहलवान भी पुष्ट शरीर वाले थे।
जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है वैसे ही इसमें कुश्ती की कमेंट्री की गई है? आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई पड़ता है?
जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है वैसे ही इसमें कुश्ती की कमेंट्री की गई है। आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई पड़ता है?
लुट्टन का बचपन कैसे बीता?
लुट्टन जब नौ वर्ष का था तभी उसके माता-पिता उसे अनाथ बनाकर चल बसे थे। तब तक उसकी शादी हो चुकी थी, वरना वह भी माँ-बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल-पोस कर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराता, धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ दिया करते थे; लुट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार हुई थी। नियमित कसरत ने किशोरावस्था में ही उसके सीने और बाँहों को सुडौल तथा मांसल बना दिया था। जवानी में कदम रखते ही वह गाँव में सबसे अच्छा पहलवान समझा जाने लगा। लोग उससे डरने लगे और वह दोनों हाथों को दोनों ओर 45 डिग्री की दूरी पर फैलाकर पहलवानों की भाँति चलने लगा। वह कुश्ती भी लड़ता था।
कहानी के प्रारंभ में रात के वातावरण का चित्रण किस प्रकार किया गया है?
रात के सुनसान वातावरण का चित्रण करते हुए बताया गया है कि उस समय सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी-कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव को झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज ‘हरे राम! हे भगवान!’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी।
दंगल में ढोल की आवाज सुनते ही लुट्टन पहलवान क्या गतिविधियाँ शुरू कर देता था?
दंगल में ढोल की आवाज सुनते ही वह अपने भारी- भरकम शरीर का प्रदर्शन करना शुरू कर देता था। उसकी जोड़ी तो मिलती ही नहीं थी, यदि कोई उससे लड़ना भी चाहता तो राजा साहब लुट्टन को आज्ञा ही नहीं देते। इसलिए वह निराश होकर, लंगोट लगाकर देह में मिट्टी मल और उछालकर अपने को साँड या भैंसा साबित करता रहता था। बूढ़े राजा साहब देख-देखकर मुस्कुराते रहते।
लुट्टन के कितने पुत्र थे? वे किस प्रकार के थे? उन्हें लुट्टन ने क्या शिक्षा दी?
लुट्टन के दो पुत्र थे। लुट्टन पहलवान की स्त्री दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी। दोनों लड़के पिता की तरह ही गठीले और तगड़े थे। दंगल में दोनों को देखकर लोगों के मुँह से अनायास ही निकल पड़ता-”वाह! बाप से भी बढ्कर निकलेंगे यह दोनों बेटे!”
दोनों ही लड़के राज-दरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे। अत: दोनों का भरण-पोषण दरबार से ही हो रहा था। प्रतिदिन प्रात:काल पहलवान स्वयं ढोलक बजा-बजाकर दोनों से कसरत करवाता। दोपहर में, लेटे-लेटे दोनों को सांसारिक ज्ञान की भी शिक्षा देता-”समझे! ढोलक की आवाज पर पूरा ध्यान देना। हाँ, मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है, समझे! ढोल की आवाज के प्रताप से ही .मैं पहलवान हुआ। दंगल में उतरकर-सबसे पहले ढोलों को प्रणाम करना, समझे!” …ऐसी ही बहुत-सी बातें वह कहा करता। फिर मालिक को कैसे खुश रखा जाता है कब कैसा व्यवहार करना चाहिए, आदि की शिक्षा वह नित्य दिया करता था।
राजा के मरने के बाद लुट्टन के साथ क्या व्यवहार किया गया?
बूढ़े राजा स्वर्ग सिधार गए। नए राजकुमार ने विलायत से आते ही राज्य को अपने हाथ में ले लिया। राजा साहब के समय शिथिलता आ गई थी, राजकुमार के आते ही दूर हो गई। बहुत से परिवर्तन हुए। उन्हीं परिवर्तनों की चपेटाघात में पहलवान भी पड़ा। दंगल का स्थान घोड़े की रेस ने ले लिया।
पहलवान तथा दोनों भावी पहलवानों का दैनिक भोजन-व्यय सुनते ही राजकुमार ने कहा-”टैरिबुल!”
नए मैनेजर साहब ने कहा-”हैरिबुल”।
लुट्टन पहलवान को साफ जवाब मिल गया, राज-दरबार में उसकी आवश्यकता नहीं। उसको गिड़गिड़ाने का भी मौका नहीं दिया गया।
दरबार से जवाब मिलने के बाद लुट्टन पहलवान ने क्या काम किया?
जब लुट्टन पहलवान को दरबार से जवाब मिल गया तो उसी दिन वह ढोलक कंधे से लटकाकर, अपने दोनों पुत्रों के साथ अपने गाँव में लौट आया और वहीं रहने लगा। गाँव के एक छोर पर, गाँव वालों ने एक झोंपड़ी बाँध दी। वहीं रहकर वह गाँव के नौजवानों और चरवाहों को कुश्ती सिखाने लगा। खाने-पीने का खर्च गाँव वालों की ओर से बँधा हुआ था। सुबह-शाम वह स्वयं ढोलक बजाकर अपने शिष्यों और पुत्रों को दाँव-पेंच वगैरा सिखाया करता था।
गाँव के किसान और खेतिहर-मजदूर के बच्चे भला क्या खाकर कुश्ती सीखते! धीरे-धीरे पहलवान का स्कूल खाली पड़ने लगा। अंत में अपने दोनों पुत्रों को ही वह ढोलक बजा-बजाकर लड़ाता रहा-सिखाता रहा। दोनों लड़के दिन भर मजदूरी करके जो कुछ भी लाते, उसी में गुजर होती रही।
जिस दिन लुट्टन के दोनों बेटे मर गए उस दिन पहलवान ने राजा श्यामानन्द की दी हुई रेशमी जांघिया पहन ली। सारे शरीर में मिट्टी मलकर थोड़ी कसरत की फिर दोनों पुत्रों को कंधों पर लादकर नदी में बहा आया। लोगों ने सुना तो दंग रह गए। कितनों की हिम्मत टूट गई।
किंतु, रात में फिर पहलवान की ढोलक की आवाज प्रतिदिन की भाँति सुनाई पड़ी। लोगों की हिम्मत दुगुनी बढ़ गई। संतप्त पिता-माताओं ने कहा-”दोनों पहलवान बेटे मर गए, पर पहलवान की हिम्मत तो देखो, डेढ़ हाथ का कलेजा है!”
श्याम नगर दंगल में शुरू में क्या हुआ? राजा ने लुट्टन को क्या सलाह दी और लुट्टन ने क्या उत्तर दिया?
शुरू में श्याम नगर के दंगल और शिकार-प्रिय वृद्ध राजा साहब चाँद सिंह को दरबार में रखने की बातें कर ही रहे थे कि लुट्टन ने शेर के बच्चे को चुनौती दे दी। सम्मान-प्राप्त चाँद सिंह पहले तो किंचित, उसकी स्पर्धा पर मुस्कराया फिर बाज की तरह उस पर टूट पड़ा।
शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-’पागल है पागल, मरा-ऐं! मरा-मरा!... पर लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को सँभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुट्टन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपए का नोट देकर कहने लगे-”जाओ मेला देखकर घर जाओ।…’ लुट्टन ने इसका उत्तर देते हुए राजा से कहा-
“नहीं सरकार, लड़ेंगे…हुकुम हो सरकार…!”
पहलवान लुट्टन के सुखचैन भरे दिनों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
लुट्टन पहलवान का पालन-पोषण उसकी विधवा। सास ने किया था। जब वह नौ वर्ष का था तभी उसके माता-पिता। चल बसे थे। तब तक उसकी शादी हो चुकी थी। किशोरावस्था में लुट्टन का शरीर मजबूत बन गया था। जवानी की तरंगें उसके शरीर में उठने लगीं थीं। लुट्टन ने चाँद पहलवान को हराकर राजा साहब से पुरस्कार पाकर राजदरबार में अपना स्थान बना लिया था। उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई थी। अब वह आनंद एवं सम्मान का जीवन जी रहा था। वह पंद्रह वर्ष तक अजेय पहलवान होने का सुख भोगता रहा। फिर उसने अपने दोनों पुत्रों को पहलवानी के क्षेत्र में उतार दिया।
लुट्टन के राज पहलवान लुट्टन सिंह बन जाने के बाद की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए।
लुट्टन पहलवान चाँद सिंह को हराकर राज पहलवान लुट्टन सिंह बन गया। उसे राज दरबार मैं सम्मान मिलने लगा। वह राज-दरबार का ‘दर्शनीय जीव’ हो गया। उसकी दहाड़ पर उसे ‘राजा का बाघ बोला’ जाता था। मेलों में वह घुटनों तक का लंबा चोगा पहने, अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँध कर मतवाले हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे बुलाकर मिठाई खिलाते थे। वह मौज-मस्ती का जीवन जी रहा था। उसका शरीर तो बढ़ गया था, पर बुद्धि घट गई थी। इसी प्रकार उसके जीवन के पंद्रह वर्ष बीत गए।
‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लुट्टन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
‘पहलवान-की ढोलक’ पाठ में लुट्टन एक प्रमुख पात्र है। वह ऐसा केंद्र बिंदु है जिसके इर्द-गिर्द समस्त कथाचक्र घूमता है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- आकर्षक व्यक्तित्व: लुट्टन नौ वर्ष की आयु में ही अनाथ हो गया। तब तक उसकी शादी हो चुकी थी। किशोरावस्था में ही उसकी बाँहें और सीना सुड़ौल हो गया था। वह एक अच्छा पहलवान समझा जाता था। वह लंबा चोगा पहनता और पगड़ी बाँधता था।
- साहसी: लुट्टन अत्यंत साहसी पुरुष था। वह प्रत्येक परिस्थिति का डटकर सामना करता था। महामारी की विभीषिका का भी उसने डटकर सामना किया था।
- भाग्यहीन: लुट्टन प्रारंभ से ही भाग्यहीन था। बचपन में ही उसे माता-पिता छोड्कर चल बसे। बाद में उसके दोनों बेटे महामारी के शिकार हो गए। राजा की मृत्यु के बाद उसकी दुर्दशा हो गई।
- निडर: लुट्टन एक निडर पुरुष था। वह श्यामनगर के दंगल में प्रसिद्ध पहलवान चाँदसिंह से तनिक भी नहीं डरा। वह महामारी से भी नहीं डरा।
- सहयोगी: लुट्टन एक संवेदनशील व्यक्ति था। वह सुख-दुख में गाँव वालों का पूरा साथ देता था। वह बीमारों के घर-घर जाकर उनका हाल-चाल पूछता था और उन्हें धैर्य देता था।
“ ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के प्रारम्भ में चित्रित प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करता है” -इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
कहानी के प्रारंभ में प्रकृति की भयावहता का चित्रण सफलतापूर्वक किया. गया है। लेखक रात के सुनसान वातावरण का चित्रण करते हुए बताता है कि उस समय सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी-कभी निस्तब्धता को भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज सुनाई पड़ रही थी। हे भगवान! हरे राम! की टेर सुन जाती थी। बच्चे माँ-माँ पुकारकर रो पडते थे, पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में विशेष बाधा नही पड़ती थी।
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